जनार्दन रेड्डी ने नई पार्टी बनाई, बागियों को टिकट देंगे, भाइयों पर कन्फ्यूजन

साल 1999 था, BJP नेता सुषमा स्वराज ने कर्नाटक के बेल्लारी से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला किया। सुषमा हार गईं, लेकिन यहां उन्हें मिले गली करुणाकर रेड्डी, गली जनार्दन रेड्डी और गली सोमशेखर रेड्डी। इसके बाद से लगातार 10 साल तक हर साल सुषमा बेल्लारी में वारा महालक्ष्मी की पूजा में जाती थीं। रेड्डी भाई सुषमा को थाई यानी मां कहते थे।
अब कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा, जी. जनार्दन रेड्डी इस बार कर्नाटक में BJP के लिए ही मुसीबत बनते नजर आ रहे हैं। उन्होंने नई पार्टी कल्याण राज्य प्रगति पक्ष (KRPP) बना ली है और चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। उनके दो विधायक भाई करुणाकर रेड्डी और सोमशेखर रेड्डी फिलहाल BJP में ही हैं। उनके खास दोस्त श्रीरामुलु भी कर्नाटक की BJP सरकार में मंत्री हैं। तीनों भाइयों में सबसे ज्यादा मजबूत जनार्दन रेड्डी हैं। कारोबार के हेड भी वही हैं।
सुषमा और रेड्डी भाइयों की कहानी बेपटरी तब हुई, जब कर्नाटक में लोकायुक्त रहे जस्टिस संतोष हेगड़े की एंट्री हुई। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि रेड्डी भाइयों ने अवैध खनन के जरिए देश के 10 बंदरगाहों से चीन को तकरीबन 16,500 करोड़ रुपए का लौह अयस्क गैरकानूनी तरीके से निर्यात किया था। इन आरोपों के बाद सुषमा ने साल 2011 में रेड्डी भाइयों को एक संदेश भेजकर साफ कर दिया कि अब वे उनकी ‘मां’ नहीं हैं।
1999 के लोकसभा चुनाव में रेड्डी बंधुओं ने सुषमा स्वराज के लिए प्रचार किया था। कहा जाता है कि सुषमा स्वराज के कहने पर ही वे BJP में आए थे। पार्टी को इसका फायदा भी मिला।
1999 के लोकसभा चुनाव में रेड्डी बंधुओं ने सुषमा स्वराज के लिए प्रचार किया था। कहा जाता है कि सुषमा स्वराज के कहने पर ही वे BJP में आए थे। पार्टी को इसका फायदा भी मिला।
अवैध माइनिंग केस में जेल काटकर आ चुके जनार्दन रेड्डी से 2018 में ही BJP ने दूरी बना ली थी। तब अमित शाह खासतौर से उनसे नाराज बताए गए थे। रेड्डी बंधुओं को कर्नाटक में खनन कारोबार का बादशाह कहा जाता है। आंध्रप्रदेश से सटी कर्नाटक बॉर्डर वाले एरिया में अब भी इनका अच्छा खासा प्रभाव बताया जाता है।
जनार्दन रेड्डी के एक करीबी नेता ने नाम न बताते हुए कहा कि हम 2018 से ही चुनावी तैयारियां शुरू कर चुके थे। सोशल मीडिया पेज बनाए, ग्राउंड सर्वे करवाए। सर्वे से मिले रिजल्ट के बाद ही नई पार्टी बनाई है। जनार्दन रेड्डी गंगावती से चुनाव लड़ेंगे, इसका डिसीजन भी सर्वे में आए रिजल्ट के हिसाब से ही हुआ है।
सीनियर जर्नलिस्ट महेश गोडर कहते हैं- ’गंगावती में रेड्डी कम्युनिटी डिसीजन मेकर होती है। वहां जनार्दन रेड्डी का प्रभाव भी है, इसलिए वे गंगावती जीत सकते हैं। इसका अंदाजा इससे भी लगता है कि जिस दिन उन्होंने गंगावती से चुनाव लड़ने का ऐलान किया, उसी दिन BJP के सिटिंग MLA संगठन मंत्री से मिलने पहुंच गए
सीनियर जर्नलिस्ट अशोक चंदारगी के मुताबिक ‘राज्य में जब-जब सत्तासीन पार्टी से नाराज होकर किसी नेता ने नई पार्टी बनाई है, तब-तब सरकार चला रही पार्टी को हार मिली है। 1983 में एस बंगारप्पा ने कांग्रेस से अलग होकर कर्नाटक क्रांति रंगा दल बनाया था। उस वक्त उन्होंने जनता पार्टी का समर्थन किया और कर्नाटक में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी।
2012 में बीएस येदियुरप्पा ने BJP से नाराज होकर कर्नाटक जनता पार्टी बनाई थी। इसका नतीजा ये हुआ कि 2013 में BJP सत्ता से बाहर हो गई और कांग्रेस को जीत मिली। इसी तरह इस बार जनार्दन रेड्डी ने नई पार्टी बनाई है। सभी जानते हैं कि वे चुनाव नहीं जीतेंगे, लेकिन यदि इन्होंने 4 से 5% वोट भी ले लिए तो कई सीटों पर जीत-हार का गणित बदल जाएगा। बेल्लारी, विजयनगर, कोप्पल, रायचूर, यादगिर, बीदर में जनार्दन रेड्डी की मजबूत पकड़ है।
जनार्दन रेड्डी के करीबी एक नेता ने बताया कि, ‘हम उन लोगों को टिकट देंगे, जिनके टिकट BJP और कांग्रेस से कटेंगे। कैंडीडेट्स के नाम फाइनल होने के बाद असंतुष्ट नेता खुद हमारी पार्टी को एप्रोच करेंगे, क्योंकि जिन्हें भी टिकट दिया जाएगा, उन्हें भी चुनाव लड़ने के लिए 5-5 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। पार्टी 8 से 10 सीटें भी जीत लेती है तो किंगमेकर की भूमिका में आ जाएगी। इसलिए अभी कैंडीडेट्स के नाम फाइनल करने में कोई जल्दबाजी नहीं है। पार्टी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, अभी इस पर फैसला नहीं लिया गया है।’
कर्नाटक की पॉलिटिक्स में रेड्डी परिवार काफी ताकतवर माना जाता है। बेल्लारी, कोप्पल, रायचूड़ और विजयनगर जिले की 23 सीटों पर इसका असर है। ये कुल सीटों का 10% हैं।
कर्नाटक की पॉलिटिक्स में रेड्डी परिवार काफी ताकतवर माना जाता है। बेल्लारी, कोप्पल, रायचूड़ और विजयनगर जिले की 23 सीटों पर इसका असर है। ये कुल सीटों का 10% हैं।
जनार्दन रेड्डी और BJP के रिश्तों में अब भले ही दरार आ गई है, लेकिन BJP को कर्नाटक में पहली बार सत्ता का स्वाद चखाने में सबसे बड़ा रोल जनार्दन रेड्डी ने ही निभाया था। 2008 में BJP ने 224 में से 110 सीटें जीती थीं। बहुमत के लिए पार्टी को सिर्फ 3 सीटें चाहिए थीं। रेड्डी बंधुओं की मदद से BJP ने कांग्रेस के तीन और JDS के चार विधायकों का इस्तीफा करवा दिया। ये विधायक BJP में शामिल हो गए थे।
उपचुनाव में BJP के 7 में से 5 उम्मीदवार जीत गए और पार्टी का आंकड़ा 115 पर पहुंच गया था। विधायकों को तोड़ने का आरोप रेड्डी ब्रदर्स पर लगा था। 2008 से 2013 तक BJP सत्ता में रही। इस दौरान उसे तीन मुख्यमंत्री बदलने पड़े। यही वो दौर था, जब रेड्डी का विशाल एम्पायर टूटना शुरू हुआ। 2011 में उन्हें 16 हजार करोड़ के माइनिंग स्कैम में गिरफ्तार किया गया। उस वक्त केंद्र में UPA की सरकार थी।
जनार्दन रेड्डी पर अवैध माइनिंग के अलावा करीब 600 करोड़ के पॉन्जी इन्वेस्टमेंट घोटाले का भी आरोप लगा। क्राइम ब्रांच ने उन्हें अरेस्ट किया और तीन साल तक वे जेल में रहे।
सिर्फ कर्नाटक नहीं, आंध्रप्रदेश में भी पकड़
रेड्डी भाइयों की सिर्फ कर्नाटक नहीं, बल्कि आंध्रप्रदेश में भी मजबूत पकड़ रही है। आंध्रप्रेदश के मुख्यमंत्री रहे YSR रेड्डी से उनके काफी अच्छे संबंध थे। 2001 में उन्होंने 10 लाख रुपए लगाकर ओबुलापुरम माइनिंग कंपनी शुरू की थी। इसके बाद से ही वे कर्नाटक-आंध्रप्रदेश में माइनिंग के बिजनेस में एक्टिव थे। 5 साल में उनकी कंपनी का टर्नओवर 3 हजार करोड़ रुपए हो गया था।

2006 में जनार्दन रेड्डी ने पॉलिटिक्स में सीधे तौर पर एंट्री ली। तब BJP ने उन्हें कर्नाटक लेजिस्लेटिव काउंसिल में चुना गया था। 2008 में येदियुरप्पा सरकार में जनार्दन अपने दोनों भाइयों और दोस्त श्रीरामुलु के साथ मंत्री बने। मंत्री बनने के एक साल के अंदर ही उन्होंने बेल्लारी में चल रहे माइनिंग के बिजनेस पर पूरी तरह कंट्रोल कर लिया था।
1999 तक रेड्डी बंधु कांग्रेस में थे। दोस्त श्रीरामुलु को टिकट न मिलने से नाराज होकर तीनों भाई BJP में आए थे। करुणाकर रेड्डी (बीच में) और जनार्दन रेड्डी (बाएं) येदियुरप्पा सरकार में मंत्री भी रहे।
अवैध खनन के मामले में भी जनार्दन रेड्डी दोनों राज्यों में आरोपों से घिरे हुए हैं। जर्नलिस्ट चंदारगी कहते हैं, 2009 में आंध्रप्रदेश में कांग्रेस नेता YSR रेड्डी की हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत के बाद से ही रेड्डी की मुसीबतें शुरू हो गई थीं। इसके बाद उन पर फॉरेस्ट अफसरों को डरा-धमकाकर खदानें लेने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।

भारी आलोचनाओं के बाद आंध्रप्रदेश सरकार को रेड्डी के खिलाफ जांच के लिए तीन मेंबर्स की कमेटी बनानी पड़ी। इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ही CBI ने 2011 में रेड्डी को बेल्लारी में उनके घर से गिरफ्तार किया था। इसी साल कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने भी रेड्डी के अवैध माइनिंग बिजनेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि रेड्डी के अवैध खनन से राज्य को 25 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

इन आरोपों की वजह से येदियुरप्पा सरकार से जनार्दन रेड्डी को इस्तीफा देना पड़ा। उनके खिलाफ अवैध माइनिंग के 10 से 12 मामले कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में चल रहे हैं। वे 2015 तक जेल में रहे। अब भी अवैध माइनिंग केस में कोर्ट में ट्रायल चल रहा है। हालांकि वे सभी आरोपों को नकारते रहे हैं।
कर्नाटक BJP के प्रवक्ता कैप्टन गणेश कर्णिक का कहना है कि जनार्दन रेड्डी का कर्नाटक के बहुत सीमित इलाके में असर है। वो पिछले चुनाव में भी हमारे साथ नहीं थे, फिर भी हम चुनाव जीते। इसलिए उनके नई पार्टी बनाने और लड़ने से BJP को कोई फर्क नहीं पड़ता।
कर्नाटक में पिछले 20-25 साल में कई नेताओं ने नई पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा, लेकिन इसका सीधे तौर पर कोई बहुत असर नजर नहीं आया। 2013 में हमारी हार के कई कारण थे। हमने 2008 में 110 और 2018 में 104 सीटें जीती थीं, इस बार हमारा टारगेट 135 से 150 सीटें जीतने का है।
वहीं, कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वर्किंग प्रेसिडेंट ध्रुव नारायण का कहना है कि ‘जनार्दन रेड्डी BJP से जुड़े रहे हैं, इसलिए उनके नई पार्टी बनाने से BJP को नुकसान होगा। पार्टी के कार्यकर्ता डिवाइड होंगे, इसका कुछ फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। हालांकि उनके दो भाई और मंत्री दोस्त अब भी BJP में हैं, ऐसे में उन्होंने नई पार्टी क्यों बनाई, यह समझ नहीं आता।’
मिडिल क्लास फैमिली में पैदा हुए जनार्दन रेड्डी के पिता पुलिस में कॉन्स्टेबल थे। वे आजादी के बाद आंध्रप्रदेश से बेल्लारी आए थे। जनार्दन के दोनों भाई ग्रेजुएट हैं, लेकिन वो हाईस्कूल तक ही पढ़े हैं। 1990 में ही वे फाइनेंस बिजनेस में एक्टिव हो गए थे और उन्होंने इन्वेस्टमेंट कंपनी बना ली थी।
इसी वक्त श्रीरामुलु से मेलजोल हुआ, जो अभी कर्नाटक सरकार में ट्रांसपोर्ट और ट्राइबल वेलफेयर मिनिस्टर हैं। शुरूआत में रेड्डी बदर्स कांग्रेस में थे, लेकिन 1999 के चुनाव में श्रीरामुलु को कांग्रेस ने टिकट देने से इनकार कर दिया। इसके बाद श्रीरामुलु रेड्डी भाइयों के साथ BJP में शामिल हो गए।
1999 का साल रेड्डी बंधुओं के लिए टर्निंग पॉइंट रहा। तब बेल्लारी सीट पर हाई वोल्टेज चुनावी लड़ाई थी। मुकाबला कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और BJP की सीनियर लीडर सुषमा स्वराज के बीच था। उस वक्त बेल्लारी कांग्रेस का गढ़ था। सुषमा स्वराज को जिताने के लिए जनार्दन रेड्डी ने पूरी ताकत लगा दी थी।
सुषमा जीत नहीं सकीं, लेकिन इस चुनाव के बाद से रेड्डी बंधु सुषमा के काफी करीबी हो गए। वे उन्हें मां कहने लगे थे। सोनिया गांधी ने जीत के बाद बेल्लारी से दूरी बना ली, लेकिन सुषमा स्वराज एक्टिव रहीं और जनार्दन रेड्डी, श्रीरामुलु जैसे नेताओं का पॉलिटिकल करियर बनाने में अहम रोल निभाया।