जग्गू दादा उर्फ जैकी श्रॉफ आज 67 साल के हो चुके हैं। मुंबई की तीन बत्ती चॉल में जन्मे जैकी आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। गरीबी का वो आलम था कि एक 10 बाय 10 के कमरे में 4 लोग गुजारा करते थे और कमाई का जरिया था मूंगफली बेचना और सड़कों पर पोस्टर चिपकाना।
जैकी कभी थिएटर के बाहर मूंगफली बेचते थे, कभी फिल्मों के पोस्टर चिपकाते थे। एक दिन बस स्टैंड पर एक आदमी ने इन्हें देखा और कहा मॉडलिंग करोगे क्या? जैकी ने सवाल के बदले सवाल पूछा- पैसे दोगे क्या? इन दो सवालों में हुई बातचीत ने चॉल के मामूली लड़के को बॉलीवुड का स्टार बना दिया।
फिल्मों में आने के बाद भी जैकी ने अपना ठिकाना नहीं बदला। सेट पर जाने के लिए भी वो चॉल के बाथरूम में घंटों लाइन में खड़े रहते थे, जहां 30 लोगों के बीच सिर्फ 3 ही बाथरूम थे। बड़े-बड़े प्रोड्यूसर चॉल, तो कभी बाथरूम के बाहर खड़े उनका इंतजार करते थे।
आज उनका ठिकाना तो बदल चुका है, लेकिन जैकी कहते हैं कि उन्हें सुकून की नींद चॉल में ही आती है। जैकी को इंडस्ट्री का सबसे डाउन टु अर्थ एक्टर कहना गलत नहीं होगा। जहां जाते हैं हाथ में पौधा होता है, चाहे कोई नामी अवॉर्ड फंक्शन हो, या राम मंदिर का उद्घाटन। कभी पुराने दिनों को याद करने के लिए घंटों चॉल के 10 बाय 10 के कमरे में रहने जाते हैं, तो कभी पुराने लोगों से मुलाकात करते हैं। चॉल के जग्गू दादा, लोगों की मदद के लिए हमेशा आगे रहते हैं। कोई मदद का मोहताज न रहे, इसलिए उन्होंने भिखारियों को अपना पर्सनल नंबर दे रखा है।
कहानी शुरू होती है, बॉम्बे से। 1 फरवरी 1957 को जैकी श्रॉफ का जन्म तीन बत्ती चॉल में हुआ। इसी चॉल में उनके मां-बाप रीटा और काकूभाई की प्रेम कहानी भी शुरू हुई थी। दरअसल, 1936 के आसपास कजाकिस्तान में हुए तख्तापलट के बीच 10 साल की रीटा 7 भाई-बहनों और मां के साथ, जान बचाकर पहले लाहौर फिर दिल्ली आ पहुंची थीं। कुछ समय बाद उनका परिवार दिल्ली से बॉम्बे आ पहुंचा। पैसे नहीं थे, तो पूरा परिवार तंगहाली में तीन बत्ती चॉल में ही आकर बस गया। वहीं दूसरी तरफ रईस परिवार में जन्मे काकूभाई, शेयर मार्केट में पैसे डूबने से गरीबी की मार झेलकर चॉल में रहने आ गए।
तीन बत्ती चॉल में रीटा और काकूभाई की मुलाकात हुई और दोनों ने शादी कर ली। इस शादी से कपल को दो बेटे हुए। चार लोगों का परिवार चॉल की एक छोटी सी खोली में रहता था। 7 खोलियों में 30 लोगों के बीच सिर्फ 3 ही बाथरूम हुआ करते थे, जिनमें रोजाना लंबी कतारों में लोग खड़े रहते थे।
चॉल में हर साल बड़ी धूमधाम से दिवाली मनाई जाती थी। दीये जलाए जाते थे और पटाखों से पूरा चॉल जगमगा उठता था, लेकिन जैकी को पटाखों से खूब डर लगता था। वो छिपने के लिए बिस्तर के नीचे घुस जाया करते थे। ऐसे में जब मां जैकी को परेशान होते देखती थीं, तो पड़ोस के बच्चों की पिटाई कर दिया करती थीं।
जैकी श्रॉफ के बड़े भाई उनसे 7 साल बड़े थे। तीन बत्ती इलाके में उनके नाम का सिक्का चलता था। जब भी किसी को कोई दिक्कत होती थी, तो वो सीधे जैकी के बड़े भाई के पास आकर शिकायत करता था और वो उनकी परेशानियां सॉल्व करते थे। आसपास के इलाके के लोग उन्हें दादा कहकर बुलाते थे।
1967 में उनके भाई को एक नौकरी मिल गई। परिवार को लगा ही था कि अब उनकी गरीबी दूर हो जाएगी, लेकिन एक हादसे से सब बर्बाद हो गया। दरअसल, जैकी के भाई अपने एक दोस्त को बचाने के लिए समुद्र में कूद गए थे, जबकि उन्हें खुद तैरना नहीं आता था। ये मंजर 10 साल के जैकी ने देखा था, जिससे वो बुरी तरह टूट गए थे। भाई की मौत के बाद वो खुद चॉल के जग्गू दादा बनकर लोगों की मदद करने लगे।
जैकी के पिता ज्योतिषी थे। उनकी कमाई से परिवार का गुजारा करना बेहद मुश्किल था। जब गरीबी में जैकी की 10वीं की पढ़ाई पूरी करवाने के पैसे नहीं बचे, तो उनकी मां ने अपनी साड़ियां बेच दीं। घर में तंगी का ये आलम था कि जैकी 11वीं के बाद पढ़ाई नहीं कर सके। पढ़ाई छोड़ने के बाद जैकी 2 सालों तक कुछ नहीं कर सके। कुछ समय बाद वो अपने दोस्तों के साथ मिलकर चॉल के पास सिनेमाघरों में पोस्टर लगाने का काम करने लगे। खाली समय में वो थिएटर के बाहर मूंगफली भी बेचते थे।
कुछ समय बाद जैकी ने ताज होटल में शेफ बनने की कोशिश की, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली। फ्लाइट अटेंडेंट बनने के लिए भी अप्लाई किया, लेकिन वो नौकरी भी नहीं मिली। कुछ समय बाद हाथ-पैर मारते हुए जैकी को रामपट रोड की ट्रेड विंग्स नाम की एक ट्रैवल एजेंसी में नौकरी मिल गई।
एक दिन जैकी श्रॉफ बस स्टैंड पर खड़े थे कि अचानक एक शख्स उनके पास आकर खड़ा हो गया। उस आदमी ने पूछा कि आप क्या करते हैं। जैकी ने बातचीत में अपने बारे में सब बता दिया। वो शख्स एडवर्टाइजमेंट एजेंसी के लिए काम करता था। जैकी बेहद हैंडसम थे, तो उसने झट से उन्हें भी मॉडलिंग का ऑफर दे दिया। जब उसने बताया कि सिर्फ तस्वीरें क्लिक करवाने के पैसे दिए जाते हैं, तो जैकी ने तुरंत उससे काम मांग लिया। उस आदमी ने जैकी को अगले दिन दफ्तर बुला लिया।
अगले दिन दफ्तर में ही उनका नाप लिया गया और जवाब मिला, हम आपको मॉडल बना रहे हैं। पहली ही मुलाकात में एजेंसी से जैकी को 7 हजार रुपए का साइनिंग अमाउंट मिला। ट्रैवल एजेंसी में दिन भर मेहनत करने के बाद भी जैकी को हजार रुपए नहीं मिलते थे, ऐसे में इकट्ठे 7 हजार रुपए मिलना उनके लिए बड़ी बात थी। जैकी तुरंत घर गए और मां के हाथों में सारे पैसे थमा दिए। जैकी ने मां ने कहा था कि वो नौकरी छोड़कर अब मॉडलिंग ही करना चाहते हैं। मां मान गईं और जैकी नौकरी छोड़कर मॉडल बन गए। एजेंसी से जुड़ने के बाद जैकी को लगातार काम मिलने लगा।
मॉडलिंग के ही दिनों में आशा के. चंद्रा ने जैकी का टैलेंट परखते हुए उन्हें अपना एक्टिंग स्कूल जॉइन करने को कहा। पहले तो जैकी ने इनकार कर दिया, लेकिन जब आशा ने बताया कि उनके स्कूल में देव आनंद के बेटे सुनील आनंद भी आते हैं, तो जैकी झट से मान गए। दरअसल, जैकी श्रॉफ देव आनंद के फैन हुआ करते थे। साथ एक्टिंग क्लासेस लेते हुए जैकी और सुनील की दोस्ती गहरी होती चली गई।
एक दिन जैकी श्रॉफ की जिद पर सुनील उन्हें देव आनंद से मिलवाने ले गए। देव आनंद ने उन्हें देखते ही कहा, आज सुबह-सुबह तुम्हारी तस्वीर देख रहा था और शाम को तुम मेरे सामने खड़े हो, मैं तुम्हें फिल्म में रोल दूंगा। एक मुलाकात में ही देव आनंद ने जैकी को अपनी फिल्म स्वामी दादा में सेकेंड लीड रोल दे दिया। रोल मिलने से जैकी बेहद खुश थे, लेकिन फिर 15 दिनों बाद देव आनंद ने वो रोल मिथुन को दे दिया। ऐसे में जैकी को शक्ति कपूर के चेले का रोल मिल सका। जब शुरुआत में जैकी ठीक तरह से एक्टिंग नहीं कर सके, तो उन्हें सेट पर खूब डांट पड़ती थी, लेकिन समय के साथ जैकी भी माहिर होते चले गए।
जैकी श्रॉफ अपने अंदाज से हर किसी का ध्यान खींच लिया करते थे, ऐसे में जब सुभाष घई अपनी फिल्म हीरो के लिए नए चेहरे की तलाश में थे, तो अशोक खन्ना ने उन्हें जैकी के नाम का सुझाव दिया। 1983 की फिल्म हीरो से जैकी रातोंरात स्टार बन गए और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
कई फिल्मों में नजर आने के बाद भी जैकी चॉल में ही मां के साथ रहते थे। उन्हें यहां बाथरूम जाने के लिए घंटों तक लाइन में खड़ा रहना पड़ता था, क्योंकि पूरे चॉल में सिर्फ 3 ही बाथरूम थे। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि डायरेक्टर उनके इंतजार में कई घंटों तक चॉल तो कभी बाथरूम के बाहर इंतजार करते थे। जैकी भी बड़ चालाकी से चॉल वालों को शूटिंग का बहाना कर कई बार लाइन तोड़कर बाथरूम चले जाते थे।
स्टार बनने के बाद जैकी ने गरीबों के हित में कई बड़े काम किए। कई बच्चों का स्कूल में एडमिशन करवाया। कई जरूरतमंद लोगों का इलाज करवाया। आज जैकी की बदौलत करीब 100 परिवारों का गुजारा होता है। जैकी ने पुराने घर की जगह तीन बत्ती से पाली हिल स्थित घर के बीच वाले रास्ते में रहने वाले कई भिखारियों को अपना पर्सनल मोबाइल नंबर दे रखा है। कई भिखारी उन्हें आज भी मदद के लिए कॉल करते हैं और जैकी उन्हें तुरंत मदद पहुंचाते हैं।
जैकी श्रॉफ ने फिल्मों में आने के बाद 1987 में आएशा से शादी की थी, हालांकि उन्होंने आएशा दत्त से शादी करने का फैसला 1973 में ही कर लिया था। आएशा एक रईस खानदान की लड़की थीं और जैकी उस समय तीन बत्ती की चॉल में रहने वाले मामूली लड़के। दोनों की पहली मुलाकात तब हुई जब आएशा 13 साल की थीं। एक दिन स्कूल बस के गेट पर खड़ी हुईं आएशा पर जैकी की नजर गई। जैकी दौड़कर पास गए और अपना परिचय दे दिया। दूसरी मुलाकात दोनों की कैसेट रिकॉर्डिंग शॉप में हुई जहां आएशा कुछ रिकॉर्डिंग लेने पहुंची थीं। जैकी ने उनकी मदद की तो आएशा भी इंप्रेस हो गईं। उन्होंने सोच लिया वो इसी लड़के से शादी करेंगी।
सिमी गरेवाल के चैट शो में जैकी श्रॉफ ने बताया था कि आएशा से पहले वो किसी और लड़की से प्यार करते थे। वो लड़की पढ़ाई के लिए यूएस चली गई थी, लेकिन जैकी चाहते थे कि जब वो लड़की वापस आएगी तो दोनों शादी करेंगे। ये बात जैकी ने आएशा को भी बताई थी। जैसे ही आएशा को ये पता चला तो उन्होंने जैकी से उस लड़की को लेटर लिखने की इजाजत मांगी।
आएशा ने लेटर में लिखा था, जब तुम वापस आ जाओगी, हम दोनों जैकी से शादी करेंगे और बहनों की तरह रहेंगे। ये देखकर जैकी समझ गए कि आएशा उनसे बेहद मोहब्बत करती हैं। हीरो बनने के बाद दोनों ने 1987 में शादी की। इस शादी से कपल के दो बच्चे टाइगर श्रॉफ और कृष्णा श्रॉफ हैं।
कर्मा, त्रिमूर्ति, लज्जा, राम-लखन, परिंदा, रूप की रानी चोरों का राजा जैसी कई हिट फिल्मों में साथ नजर आ चुके जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर असल जिंदगी में अच्छे दोस्त हैं। एक समय में दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि जैकी का दिया गया पैंट लकी समझकर आज भी अनिल कपूर ने संभालकर रखा है। दरअसल, जैकी श्रॉफ अपने जमाने के फैशन आइकन समझे जाते थे। जब फिल्म विरासत के लिए अनिल को एक पैंट की जरूरत पड़ी तो उन्होंने जैकी की एक पैंट मांग ली, क्योंकि वो उन्हें बहुत पसंद आई थी। जैकी ने भी बिना सवाल किए पैंट दे दिया। जब फिल्म विरासत जबरदस्त हिट हुई तो अनिल ने इसका क्रेडिट जैकी की पैंट को दिया। अनिल को लगता था कि वो पैंट उनके लिए लकी है, ऐसे में उन्होंने हमेशा के लिए उस पैंट को सहेज कर रख लिया।
साल 1989 में रिलीज हुई फिल्म परिंदा में जैकी श्रॉफ, अनिल कपूर, माधुरी दीक्षित और नाना पाटेकर अहम किरदारों में थे। फिल्म ने 5 नेशनल अवॉर्ड जीते और इसे ऑस्कर भेजा गया था। फिल्म में जैकी श्रॉफ ने अनिल कपूर के बड़े भाई का रोल प्ले किया था। फिल्म के एक सीन के लिए जैकी को अनिल को थप्पड़ मारना था। डायरेक्टर विधु विनोद चोपड़ा परफेक्शन के लिए जाने जाते थे, ऐसे में उन्होंने जैकी से कहा कि वो अनिल को असली थप्पड़ मारें। एक परफेक्ट शॉट के लिए जैकी ने अनिल को 17 थप्पड़ मारे थे।
फिल्म परिंदा के क्लाइमैक्स में अनिल कपूर और माधुरी को मरता हुआ दिखाया गया था। इस फिल्म को बनाते हुए विधु विनोद चोपड़ा के पास पैसे कम पड़ गए थे। जब विधु विनोद चोपड़ा ने वो फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर्स को दिखाई तो एक डिस्ट्रीब्यूटर ने उन्हें कहा, मैं तुम्हें 10 लाख रुपए नकद दूंगा, बस क्लाइमैक्स में माधुरी, अनिल की जगह जैकी को मार दो। विधु विनोद चोपड़ा ने 10 लाख रुपए का ऑफर ठुकरा दिया, लेकिन जैकी को मरता हुआ नहीं दिखाया।
2003 की फिल्म बूम को जैकी श्रॉफ और उनकी वाइफ आएशा श्रॉफ ने प्रोड्यूस किया था। इस फिल्म में दोनों ने अपनी जिंदगी की सारी जमापूंजी लगा थी। ये कटरीना कैफ की पहली फिल्म थी वहीं इसमें अमिताभ बच्चन, गुलशन ग्रोवर, जीनत अमान जैसी बड़ी स्टारकास्ट थी। फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटर्स ने आखिरी समय में बैकआउट कर दिया और सारा नुकसान जैकी को हुआ।
फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हुई और जैकी के सारे पैसे डूब गए। गरीबी ऐसी आई कि घर का फर्नीचर, आर्टवर्क और पूरा घर तक बिक गया। टाइगर श्रॉफ ने उस समय अपनी मां से वादा किया था कि वो घर वापस खरीदेंगे। आज टाइगर ने मां के लिए घर खरीद लिया है।