टीवी से एक्टिंग डेब्यू करने के बाद 18 साल की उम्र में घर-घर में पहचान बना लेना आसान नहीं होता

मात्र 15 साल की उम्र में टीवी से एक्टिंग डेब्यू करने के बाद 18 साल की उम्र में घर-घर में पहचान बना लेना आसान नहीं होता। पर इस नामुमकिन काम को मुमकिन कर दिखाया है 25 साल की एक्ट्रेस शिवांगी जोशी ने।
सिर्फ 10 साल के करियर में शिवांगी टीवी की हाईएस्ट पेड और पॉपुलर एक्ट्रेसेस में से एक बन चुकी हैं लेकिन इस मुकाम तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था। मजेदार बात तो यह है कि शिवांगी को कभी एक्ट्रेस बनना ही नहीं था, वो तो डॉक्टर बनना चाहती थीं पर किस्मत से वो एक्ट्रेस बन गईं। इस हफ्ते ‘स्टार टॉक्स’ में हम बात करेंगे शिवांगी जोशी की जो आज टीवी इंडस्ट्री का जाना-पहचाना नाम हैं।
शिवांगी ने टीवी शो ‘खेलती है जिंदगी आंख मिचोली’ से एक्टिंग डेब्यू किया था। हालांकि, उन्हें असल पहचान 3 साल तक स्ट्रगल करने के बाद टीवी शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ से मिली। अपने करियर के शुरुआत में शिवांगी बहुत बुरे दौर से गुजरी हैं। खराब आर्थिक स्थिति से लेकर सेट पर सीनियर एक्टर्स से ताना मिलने और बॉडी शेमिंग का शिकार होने तक एक्ट्रेस ने काफी कुछ फेस किया। हालांकि, अब उनका मानना है की हर किसी को अपनी जिंदगी में एक बार तो स्ट्रगल से गुजरना चाहिए।
शिवांगी ने बताया, ‘मैं डांस फील्ड में करियर बनाना चाहती थी। कोरियोग्राफर बनना चाहती थी और अगर कोरियोग्राफर ना बन पाती तो मेरे मन में दूसरा ऑप्शन डॉक्टर बनना था क्योंकि मैं पढ़ाई में काफी अच्छी थी। लेकिन कुछ ऐसी घटनाएं भी हुईं जब लोगों ने मुझे ताना मारा कि अरे ये तो एक्ट्रेस बनने वाली थी, इसे मुंबई जाना था… इसका क्या हुआ? एक्टर नहीं बन पाई क्या? बन ही नहीं सकती..। उस वक्त मैं 9th क्लास में थी और तभी मैंने डिसाइड किया कि मैं हर किसी को गलत साबित करूंगी। मैं हर किसी को दिखाउंगी कि मैं एक एक्ट्रेस बन सकती हूं। एक साल बाद हम मुंबई आ गए और यहीं से मेरी एक्टिंग जर्नी शुरू हुई।’
मुंबई में मेरा शुरुआती सफर बड़ा ही मजेदार था। दरअसल, छोटे शहरों के घरों की तुलना में यहां जगह बहुत कम है। हमें जो पहला फ्लैट मिला वो इतना छोटा था कि उसमें केवल एक कमरा था। वो पीजी सिस्टम था और वहां अन्य लड़कियां भी हमारे साथ रहती थीं। यकीन मानिये, मुंबई में मैं पहली रात सो ही नहीं पाई। अगले दिन मां ने वॉचमैन से बात की जिसकी मदद से हमें किसी और बिल्डिंग में एक अलग फ्लैट मिला जो बेहतर था।कुछ दिन सेटल होने के बाद हमने मुंबई में लोगों से पूछना शुरू किया कि ऑडिशन कहां होते हैं? जब कोई हमारी हेल्प करता था तो मैं जाकर ऑडिशन दे आती थी। कई बार तो मैंने एक दिन में कम से कम 4 ऑडिशन दिए। कुछ एक्टर्स लकी होते हैं कि उन्हें आते ही काम मिल जाता है। कई ऐसे भी होते हैं जो 10 साल स्ट्रगल करने के बाद भी वहां नहीं पहुंच पाते जहां वो पहुंचना चाहते हैं। शुरुआत में मुझे भी काफी स्ट्रगल करना पड़ा। हालांकि मैं अपने आप को खुश नसीब मानती हूं कि मेरा स्ट्रगल सिर्फ 6 महीनों तक ही रहा।
अपना पहला ब्रेक पाने के लिए मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी। उस वक्त मेरे दादाजी हॉस्पिटल में थे, उन्हें हार्ट अटैक आया था। मेरी मां मेरे सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई में मेरे साथ रहती थी। वहीं पापा और मेरे भाई-बहन उत्तराखंड में थे। हमारा परिवार बिखरा हुआ था और उस वक्त हमारी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी। हम बहुत परेशान थे।
एक वक्त तो ऐसा आया जब समझ ही नहीं आ रहा था कि मुंबई में रहें या फिर अपने होमटाउन लौट जाएं। हमने थोड़ी हिम्मत दिखाई। हार नहीं मानी। इस दौरान मेरी मां ने मेरा बहुत सपोर्ट किया। हम दोनों एक दूसरे को हौसला देते थे। मैं आज जिस मुकाम पर हूं उसका पूरा श्रेय अपनी मां को देती हूं। मुझे यकीन था कि मेरी ईमानदारी का फल मुझे जरूर मिलेगा और हुआ भी वहीं।
अपने पहले शो के सेट पर शूटिंग के पहले दिन मुझे बहुत क्रिटिसिज्म झेलना पड़ा। जब मैं अपना पहला शॉट दे रही थी तब मुझे कैमरा की उतनी समझ नहीं थी। मेरे डायरेक्टर बहुत हेल्पफुल थे, उन्होंने मुझे बहुत प्यार से सब कुछ समझाया। लेकिन सेट पर बैठे शो के कुछ सीनियर आर्टिस्ट ने मुझे काफी क्रिटिसाइज किया। उनकी बातें सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ लेकिन बाद में मेरी मां ने मुझे समझाया। उन्होंने कहा कि मुझे ईमानदारी से आगे बढ़ना होगा और कड़ी मेहनत करनी होगी। मैंने वहीं किया और आज वो ही सीनियर आर्टिस्ट मेरे काम की सरहाना करते हैं।
शिवांगी ने टीवी शो ये रिश्ता क्या कहलाता है में नायरा का किरदार निभाकर घर-घर में अपनी पहचान बनाई। शो में उनके पति कार्तिक का रोल एक्टर मोहसिन खान ने प्ले किया।
YRKKH (ये रिश्ता क्या कहलाता है) की नायरा के किरदार से मैं कभी अलग नहीं हो सकती। यह हमेशा मेरे दिल के करीब रहेगा। मुझे कभी-कभी लगता है कि मैं नायरा हूं, यह सिर्फ एक किरदार नहीं है। इस शाे के दौरान मुझे किक-बॉक्सिंग सीखने में बहुत मजा आया। शो से निकलने के बाद भी मैंने बॉक्सिंग सीखना जारी रखा। मैं घुड़सवारी सीख रही हूं और मुझे नई चीजें सीखना पसंद है।
आगे अपने करियर में मुझे एक वॉरियर प्रिंसेस का रोल प्ले करना है। ‘झांसी की रानी’ मेरी फेवरेट हैं। बचपन में मैं खुद को उस किरदार में कई बार इमेजिन करती थी। सोचती थी बड़े होकर ‘झांसी की रानी’ की तरह बनूंगी। मुझे याद है बचपन में मैं अपने दादाजी के साथ मिलकर ये शो देखा करती थी। वो भी कहते थे- तू मेरी झांसी की रानी है। ऐसा कुछ यादगार किरदार निभाना चाहती हूं।
शिवांगी को क्लासिकल डांस भी पसंद है, वे ट्रेंड कत्थक डांसर भी हैं। एक्ट्रेस बताती हैं, ‘मुझे क्लासिकल डांस बहुत पसंद हैं। ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के सेट पर मैं इसे बहुत एन्जॉय करती थी। कई बार तो इंतजार करती थी कि कब शो में कोई डांस सीक्वेंस हो। मैं आज भी डांस सिखने के लिए वक्त निकलती हूं। मुंबई में एक गुरुजी से मैं आज भी कत्थक सीखती हूं। बहुत छोटी थी तब मैंने ये डांस सीखा था। काम की व्यस्तता के चलते काफी कुछ भूल चुकी थी इसीलिए वापस इसे सीखना शुरू किया है। अब मैं कभी डांस करना बंद नहीं करूंगी।’
एक्टिंग के साथ-साथ, शिवांगी फेमस क्रिकेटर कपिल देव के NGO ‘खुशी’ से भी बतौर यूथ एम्बेसडर जुड़ी हुईं हैं। ये NGO देश के 12 राज्यों में काम करता है, जिसमें 48 सरकारी स्कूल और एजुकेशन सेंटर 45,000 बच्चों की हेल्प करते हैं।
शिवांगी कहती हैं, ‘मैं अपने करियर में कितनी भी सफलता हासिल क्यों ना कर लूं, मेरी कोशिश हमेशा यही रहेगी की बदले में मैं अपने देश के लिए भी कुछ अच्छा करूं। मैं बतौर इंसान प्रोग्रेस करना चाहती हूं और यही वजह है कि मैं कपिल देव सर के इस नेक काम से जुड़ी हूं। मैं कपिल सर से काफी इंस्पायर्ड भी हूं। वो लीजेंड हैं और उनके साथ जुड़ना मेरे लिए गर्व की बात है। हमारी कोशिश यही रहती है कि कोई भी बच्चा अपना बचपन ना खोए। पढ़ाई और खेल-कूद दोनों से ही अलग ना हो। हम उनके स्कूल की फीस देने में मदद करते हैं। कपिल सर काफी पॉजिटिव हैं। वो हमेशा मोटिवेट करते हैं। मैं उनके NGO से बतौर यूथ एम्बेसडर जुड़कर काफी सम्मानित महसूस करती हूं।’
जाते-जाते टीवी शो ‘बरसातें’ का एक्सपीरियंस शेयर करते हुए शिवांगी ने कहा- ‘इस शो की जर्नी को मैंने काफी एन्जॉय किया। शो में मैंने एक जर्नलिस्ट का किरदार निभाया जिसके बाद मुझे इस फील्ड के बारे में बहुत कुछ जानने-सीखने को मिला। इसे निभाने के बाद मुझे एहसास हुआ की एक जर्नलिस्ट को अपने फील्ड में कितनी मेहनत करनी पड़ती है। मेरी मन में सभी पत्रकारों के लिए काफी रेस्पेक्ट बढ़ गई।’