लोकसभा चुनाव 2019 चुनाव से जुड़ी वो बातें जो जानना ज़रूरी हैं

11 अप्रैल को पहले चरण के लिए वोट डाले गए जबकि 19 मई को सातवें चरण के लिए वोट डाले जाएंगे. मतों की गिनती 23 मई को होगी. लोकसभा के साथ ही ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और आंध्र प्रदेश विधानसभा के चुनाव भी होंगे.

तीन बड़े राज्य उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में सातों चरणों में मतदान होगा.

सुनील अरोड़ा अपने दो सहयोगियों के साथ आम चुनाव की तिथियों को लेकर प्रेस कांफ्रेंस में चुनाव की तैयारियों को लेकर भी काफ़ी कुछ जानकारी दी.

17वीं लोकसभा के गठन के लिए 90 करोड़ लोग वोट डालेंगे. 18 से 19 साल के डेढ़ करोड़ वोटर इस चुनाव में पहली बार हिस्सा लेंगे. मुख्य चुनाव आयुक्त के मुताबिक आठ करोड़ 43 लाख नए मतदाता इस बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे.

10 लाख पोलिंग बूथ पर वोट डाले जाएंगे. हर पोलिंग बूथ पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया जाएगा.

1950 टोल फ़्री नंबर पर वोटिंग लिस्ट से जुड़ी जानकारी ले सकेंगे.

कोई भी शख्स आचार संहिता के उल्लंधन की जानकारी एक एंड्रॉयड एप के जरिए दे सकता है. शिकायतकर्ता की पहचान उजागर नहीं की जाएगी. और इस पर जांच करक एक्शन लिया जाएगा.

इसके अलावा ईवीएम मशीन को जीपीएस के जरिए ट्रैक किया जाएगा.

वोटिंग के 48 घंटे पहले लाउडस्पीकर पर बैन. हर संवेदनशील स्थान पर सीआरपीएफ तैनात होगी.

चुनाव आयोग राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों के सोशल मीडिया प्रचार पर भी नज़र रखेगा. इसके साथ ही चुनाव आयुक्त ने बताया कि फेसबुक-गूगल ने भी चुनाव को देखते हुए कंटेट की खास निगरानी करने का हमें पूरा आश्वासन दिया है.

पिछले यानी 2014 के लोकसभा चुनाव का ऐलान पाँच मार्च 2014 को किया गया था. मतदान 7 अप्रैल को शुरू होकर नौ चरणों में 12 मई को ख़त्म हुए थे. 16 मई को नतीजों में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत हासिल हुआ था और दूसरे सहयोगी दलों के साथ एनडीए की सरकार बनी. भाजपा को इन चुनाव में 282 सीटें मिली थीं.

लोकसभा में कितनी सीटें हैं?

संविधान के मुताबिक़ लोकसभा सीटों की अधिकतम संख्या 552 हो सकती है. फ़िलहाल लोकसभा सीटों की संख्या 545 है, जिनमें से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 543 सीटों के लिए आम चुनाव होते हैं. इनके अलावा अगर राष्ट्रपति को लगता है कि एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व काफ़ी नहीं है तो वह दो लोगों को नामांकित भी कर सकते हैं.

कुल सीटों में से 131 लोकसभा सीटें रिज़र्व होती हैं. इन 131 में अनुसूचित जाति के लिए 84 और अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीटें रिज़र्व हैं. यानी इन सीटों पर कोई अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं.

किसी भी पार्टी को बहुमत के लिए कम से कम 272 सीटें चाहिए होती हैं. अगर बहुमत से कुछ सीटें कम भी पड़ जाएं तो दूसरे दलों के साथ गठबंधन करके भी सरकार बनाई जा सकती है. राजनीतिक दलों का गठबंधन चुनाव से पहले भी हो सकता है और नतीजों के बाद भी. लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद लेने के लिए विपक्षी पार्टी के पास कम से कम कुल सीटों की 10 फ़ीसदी संख्या होनी चाहिए यानी 55 सीटें. 2014 के आम चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को सिर्फ़ 44 सीटें ही मिल पाई थीं.

भाजपा ने 2014 में 282 सीटों के साथ बहुमत तो पाया था लेकिन फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के 268 सदस्य ही लोकसभा में रह गए हैं. कुछ सीटों को बीजेपी ने उपचुनाव में गंवा दिया. पार्टी के कुछ लोकसभा सदस्यों ने जैसे बीएस येदियुरप्पा और बी श्रीरामुल्लू ने विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए लोकसभा से इस्तीफ़ा दे दिया था. लेकिन फिर भी गठबंधन वाले राजनीतिक दलों के सहयोग से बीजेपी की सरकार सुरक्षित है.

भारतीय चुनाव प्रक्रिया किस मॉडल पर आधारित है?

भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था ब्रितानी वेस्टमिन्स्टर मॉडल पर आधारित है. ब्रिटेन में आम चुनाव के लिए एक ही दिन मतदान होता है, शाम होते-होते एग्ज़िट पोल आ जाते हैं और रातों-रात मतगणना करके अगली सुबह तक लोगों को चुनाव नतीजे भी मिल जाते हैं.

मगर भारत में ऐसा नहीं होता है. मतदान के दौरान सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए इतने बड़े देश में कई चरणों में मतदान कराए जाते हैं. हर चरण के मतदान के बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम को मतगणना तक सुरक्षित रखा जाता है.

चुनाव आयोग के निर्देशानुसार अब अंतिम चरण का मतदान समाप्त होने के बाद ही एग्ज़िट पोल प्रसारित हो सकते हैं. उसके भी कुछ दिन बाद मतगणना सुबह से शुरू होती है.

पहले जब मतपत्रों से चुनाव होते थे तब रुझान आने में शाम हो जाती थी और नतीजे साफ़ होते-होते काफ़ी वक़्त लगता था मगर अब ईवीएम के चलते दोपहर तक रुझान स्पष्ट हो जाते हैं और शाम तक नतीजे भी लगभग पता चल जाते हैं.