कोरोना महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी चोट पहुंचाया था। हालांकि, अब स्थिति बदलती दिख रही है। चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में दो अंकों की वृद्धी देखी गई है। यह आंकड़ा अब 13.5% हो चुका है। भारत के लिए राहत की बात यह है कि उसके जीडीपी में सुधार ऐसे समय में हुआ है जब दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं संघर्ष करती दिख रही रही हैं। चीन तो मंदी की ओर जा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि मार्च 2020 में देश की अर्थव्यवस्था के महामारी की चपेट में आने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने राजकोषीय और मौद्रिक उपायों की कई कैलिब्रेटेड खुराक दी, जिसका सकारात्मक असर अब दिखने भी लगा है।
सरकारी अधिकारियों और विशेषज्ञों का कहना है कि पीएम गरीब कल्याण योजना, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए आसान ऋण, पूंजीगत व्यय के लिए सार्वजनिक धन में वृद्धि और निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के सरकार के उपायों ने इसमें काफी मदद की है।
एक ने कहा, “वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही के दौरान मोदी सरकार का पूंजीगत व्यय 1.75 लाख करोड़ रुपये है, जो कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान 2013-14 के पूरे वित्तीय वर्ष के पूंजीगत व्यय के बराबर है।”
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारत का निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) 22 लाख करोड़ है। महामारी से पूर्व यानी 2019-20 में यह 20 लाख करोड़ के करीब था। इसमें भी 10% की वृद्धि हुई है। यह निरंतर वृद्धि का संकेत देता है।
एक ने कहा, ”भारतीय जीडीपी 36.85 लाख करोड़ रुपये है, जो न केवल पूर्व-कोविड स्तरों को पार कर गया है, बल्कि यह पूर्व-महामारी के स्तर से 3.83% अधिक है। यह सरकार की विवेकपूर्ण आर्थिक नीति का परिणाम है कि भारत अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में मुद्रास्फीति के न्यूनतम प्रभाव के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है।”
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार इस समय में दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों की अर्थव्यवस्था के हालात काफी खराब हैं। अप्रैल-जून, 2022 के लिए चीन (0.4%), जर्मनी (1.7%), यूएस (1.7%), फ्रांस ( 4.2%), इटली (4.6%) और कनाडा (4.8%) की जीडीपी का खस्ता हाल रहा। चीन का बैंकिंग और रियल एस्टेट क्षेत्र गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। कोरोना महामारी के बाद देश में लागू किए गए कठोर शून्य कोविड लॉकडाउन को इसका कारण बताया जाता है। शी जिनपिंग शासन ने ताइवान और क्वाड देशों के खिलाफ अपनी कूटनीति के साथ आर्थिक प्रभाव को और खराब कर दिया है। बीजिंग के बेल्ट रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में शामिल श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार और केन्या जैसे देश दिवालियापन का सामना कर रहे हैं। एक अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा, “भारत में विकास अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत है जो मंदी के संकेत दिखा रहे हैं। इससे वैश्विक निवेशकों का विश्वास बढ़ाने और अर्थव्यवस्था में निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी।” आपको यह भी बता दें कि भारत की खुदरा मुद्रास्फीति (सीपीआई-सी) जुलाई 2022 में पांच महीने के निचले स्तर 6.71 प्रतिशत पर आ गई है।
विशेषज्ञों को उम्मीद है कि भारत इस वित्त वर्ष में 7% से अधिक की वृद्धि हासिल कर सकता है। उन्होंने कहा, “हम मानते हैं कि वित्त वर्ष 2013 में 7% से अधिक की वार्षिक वृद्धि अभी भी पर्याप्त नीति समर्थन के साथ संभव है, जो व्यापार, होटल, परिवहन आदि में निरंतर विकास की गति को सुनिश्चित करता है। मांग पक्ष पर सरकारी पूंजीगत व्यय में वृद्धि करके इस क्षेत्र को पूरक बनाया गया है।”
इंडिया इंक भी भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को लेकर आश्वस्त है। आईआईसी के सीईओ चंद्रजीत बनर्जी ने कहा, “मौजूदा वैश्विक अनिश्चितता के बावजूद उद्योग आशावादी बना हुआ है, क्योंकि सरकार की सुविधाजनक नीतियों के कारण घरेलू विकास की संभावनाएं मजबूत रहने की उम्मीद है।”