क्या आपने कभी खरीदारी के किसी विषय पर अपने मित्र से बात की और कुछ ही समय में उसी वस्तु के विज्ञापन फोन स्क्रीन पर नजर आने लगे। आजकल लगभग सभी लोग अपने साथ ऐसा होने की बात कह रहे हैं। शक जा रहा है हमारे हाथों में मौजूद स्मार्टफोन पर। अनुमान है कि कई वेबसाइट और एप फोन में लगे माइक्रोफोन के जरिए हमारे वार्तालाप सुन रहे हैं।
यह संयोग नहीं हो सकता कि हम जिन चीजों की खरीद न करने की बात कर रहे हैं। उनसे जुड़े हुए विज्ञापन हमें हमारे टारगेटेड मार्केटिंग के जरिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म या अन्य जगहों पर भेजे जाने लगते हैं।
कई बार तो हम तक यह विज्ञापन पहुंचाने के लिए फोन को वार्तालाप सुनने की भी जरूरत नहीं। मेल्बर्न के स्विनबर्न तकनीकी विश्वविद्यालय की डैना रेजाजडेगन के अनुसार, खुद नागरिक की वेबसाइट पर किस की अनुमति देकर यह जानकारियां ऑनलाइन विज्ञापन के लिए बनी कंपनियों तक पहुंचा रहे हैं।
हर जानकारी सहेज रहे कुकीज
अधिकतर वेबसाइट और एप कुकीज के जरिए हमारी ऑनलाइन गतिविधियों को ट्रैक करने की अनुमति ले रही हैं यह वेबसाइट को याद रखने में मदद करती है कि हमने इस साइट पर क्या किया।
इनका काम लॉग-इन सहित सर्च की गई चीजों को सहेजना ही है। इन्हीं जानकारियों को थर्ड पार्टी और तौर पर कंपनियां उपयोग कर रही हैं। संबंधित वेबसाइट से बकायदा समझौते कर विज्ञापन भेजे जा रहे हैं।
दिनचर्या- जरूरत सब है पता
कंपनी के पास हमारे जीवन की हर एक तस्वीरें हैं। इसमें दिनचर्या पसंद, जरूरत भी शामिल हैं।
विज्ञापन कंपनियां उपभोक्ताओं की उम्र, लिंग, ऊंचाई, काम, वजन, शौक श्रेणियों में भी बांटकर उत्पादों की लोकप्रियता जान सकती हैं। इससे वे सही उपभोक्ता को विज्ञापन पहुंचाने का दावा करती हैं।
एआई आसान कर रहा बाकी काम
ऑल इंफोर्समेंट लर्निंग कर्व इस्तेमाल समझदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के जरिए स्थान का विश्लेषण किया जाता है मशीन लर्निंग प्रोग्राम इन के आधार पर विज्ञापन पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
इंफोर्समेंट लर्निंग (आरएल) का भी इस्तेमाल बढ़ा है जो किसी छोटे बच्चे द्वारा सामान्य गतिविधियों को बार-बार दोहराकर और गलतियों को सुधार कर सीखने जैसी हैं।
भारी डाटा जमा करने की क्षमता
अब परिवार मित्रों के डाटा पर भी नजर एआई के एल्गोरिदम मार्केटिंग कंपनियों को हर व्यक्ति का भारी मात्रा में डाटा जमा करने की क्षमता दे रहे हैं। इसमें सोशल मीडिया से लेकर सामान्य इंटरनेट सर्फिंग से मिला डाटा शामिल भी है।
यही नहीं परिवार व मित्रों के डाटा को भी जोड़कर ज्यादा बेहतर ढंग से विज्ञापन देने की कोशिश की जा रही है। उदाहरण के लिए किसी मित्र ने हाल में फोन खरीदा तो संभव आपको भी उसी मोबाइल स्मार्टफोन विज्ञापन फेसबुक प्रोफाइल पर दिखाई जाने लगें।
अपनी जरूरत के अनुसार शर्तों के साथ ही ने मंजूरी ईमेल से करें लॉग-इन
-भारत में निजता को व्यक्ति के बुनियादी अधिकार में शामिल किया गया है। अधिकतर वेबसाइट व एप अपनी सेवाएं देते समय यूजर से इस बारे में अनुमति लेती है। इन्हें कई बार समझे या बिना पढ़े रजामंदी दे चुके होते हैं।
-कानूनी शर्तों से बचने के लिए आपको जरूरत के अनुसार, अनुमति देने का विकल्प चुना जा सकता है। जैसे व्हाट्सएप या किसी डाटा कॉलिंग एप पर कैमरा या माइक्रोफोन को अनुमति दी जा सकती है।
-ई-बुक या ऑनलाइन शॉपिंग एप इस तरह के अनुमति मांगे तो इंकार किया जा सकता है।
-कई बार एप लॉग-इन का विकल्प मांगते हैं, कोशिश करें कि सोशल मीडिया अकाउंट की बजाए ईमेल से लॉगिन करें।
-संभव हो तो वैकल्पिक ई मेल एड्रेस अपने फोन में रखें। अगर शक है कि आपकी बातचीत सुनकर विज्ञापन दिए जा रहे हैं, तो -माइक्रोफोन के परमिशन एप को जरूरत के अनुसार ही अनुमति दें।
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