राजनीतिक दलों में जरूरी है आंतरिक लोकतंत्र : आदर्श कुमार

यह हमारी घिसी-पिटी राजनीति के बारे में आत्मावलोकन, सच्चाई जानने, और सबक लेने का समय है, जिसमें लगता है कि पुरानी व्यवस्था बदल कर नई व्यवस्था को जन्म दे रही है किंतु फिर भी कोई बदलाव नहीं होता। कई बार भारतीय मतदाताओं के दिमाग में ये सवाल जरूर आता होगा कि कई राजनीतिक दलों के अध्यक्ष पद पर एक ही व्यक्ति का निर्वाचन निर्विरोध सुनिश्चित होता है तो फिर राजनीतिक दल में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव क्यों कराया जाता है? असल में भारत में कई राजनीतिक दल अपने आंतरिक लोकतंत्र को लेकर उतने पारदर्शी नहीं हैं, जितना भारतीय लोकतांत्रिक भावना के तहत उन्हें होना चाहिए। आज राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र के मुद्दे को उठाया जाना चाहिए। देश के तमाम राजनीतिक दल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह हो गए हैं। इतना ही नहीं, अब तो परिवारवाद के बचाव में तरह-तरह के तर्क भी दिए जाने लगे हैं। यदि राजनीतिक दल और अधिक प्रभावी होना चाहते हैं तो यह आवश्यक है कि वे पार्टी संचालन के मौजूदा तौर-तरीकों को और अधिक लोकतांत्रिक बनाएं।

राजनीतिक दलों में लोकतंत्र की कमी के चलते वंशवाद की राजनीति, राजनीतिक दलों की केंद्रीकृत संरचना, कानून की कमी, आंतरिक चुनावों को अप्रभावी करना जैसी समस्याएं पनपी हैं। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र किस रूप में हो, यह सदैव एक कठिन सवाल रहा है। इस सवाल पर विचार-विमर्श तो बहुत हुआ, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका। यही कारण है कि वाम दलों और भाजपा को छोड़कर अन्य राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र न के बराबर है। अधिकांश क्षेत्रीय दलों की स्थिति वैसी ही है जैसी राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की है। ऐसे दलों में नेता या उसका परिवार ही पार्टी का पर्याय होता है।

मजे की बात तो ये है कि भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से कहीं इस बात का जिक्र नहीं है कि देश में राजनीतिक दलों का संचालन किन दिशा निर्देशों के अनुसार हो। और, उनका नियमन कैसे किया जाना चाहिए। बल्कि, सच तो ये है कि हमारे संविधान में राजनीतिक दलों का भी जिक्र नहीं है। केवल 1951 के जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 (ए) में ये लिखा हुआ है कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण किया जाना चाहिए। भारत का चुनाव आयोग भी राजनीतिक दलों के संचालन में कोई भूमिका निभाने के लिए सशक्त नहीं है।

किसी भी लोकतंत्र में हुकूमत की बागडोर राजनीतिक दलों के हाथ में होती है। ऐसे में केवल राजनीतिक दलों के भीतर, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। तभी भारत के राजनीतिक दलों को किसी भी लोकतांत्रिक देश की अपेक्षाओं के अनुरूप ढाला और लोकतांत्रिक बनाया जा सकेगा। देश की राजनीतिक पार्टियों के अंदर आंतरिक लोकतंत्र का अध्ययन किया जाना चाहिए, ताकि सच्चे लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत किया जा सके। इस लिए समय आ गया है कि सच्चे लोकतंत्र को बनाए रखा जाए और पार्टियों का लोकतंत्रीकरण तथा राजनीति में सुधार लाया जाए अन्यथा हम राजनीतिक हाई कमान के रसातल में ही पड़े रहेंगे और लोकतंत्र को अलविदा कह देंगे। विकल्प आपके समक्ष हैं।

Adarsh Kumar