देश के बुद्धिजीवियों ने महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला के देश-विरोधी बयानों को लेकर चिंता जताई है। गुरुवार को जारी बयान में अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के खिलाफ जम्मू-कश्मीर में बने राजनीतिक गठजोड़ को ‘गुपकार गैंग’ बताया गया है। इनका मानना है कि ये लोग संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं। ये खुलेआम देश और संविधान का विरोध करने के साथ ही अलगाववाद को भी प्रोत्साहन दे रहे हैं।
लेफ्टिनेंट जनरल वीके चतुर्वेदी की अगुवाई में जारी साझा बयान में कुल 267 बुद्धिजीवियों के हस्ताक्षर हैं। इनमें राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, हाई कोर्ट के नौ पूर्व न्यायाधीश और रॉ के पूर्व प्रमुख संजीव त्रिपाठी के साथ ही पूर्व सैन्य अधिकारी, पूर्व नौकरशाह, शिक्षाविद व प्रशासक शामिल हैं।
इन बुद्धिजीवियों ने साफ कर दिया है कि किसी भी राजनीतिक दल से उनका कोई संबंध नहीं है। लेकिन संविधान द्वारा दी गई अभिव्यक्ति की आजादी का जिस तरह से दुरुपयोग कर राष्ट्रीय ध्वज का अपमान और दुश्मन देश के साथ मिलकर देश को तोड़ने की बात की जा रही है, उससे वे चिंतित हैं।
उन्होंने कहा है कि महबूबा मुफ्ती का राष्ट्रीय ध्वज की जगह पार्टी के झंडे के इस्तेमाल का बयान 1971 के राष्ट्रीय ध्वज अपमान निरोधक कानून का उल्लंघन है। इसके लिए उन्हें तीन साल की सजा हो सकती है। इसी तरह चीन की मदद से अनुच्छेद- 370 को वापस लाने का फारूक अब्दुल्ला का बयान देशद्रोह की श्रेणी में आता है। अनुच्छेद- 370 के निरस्त होने से कश्मीर में दशकों से खड़ा किया गया उनका लूट का तंत्र ध्वस्त हो गया है। अपने निहित स्वार्थो के लिए अब वे इस तरह के बयान दे रहे हैं।