कांग्रेस नेतृत्व की राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की पसंद को लेकर पार्टी में अंदरखाने भारी हलचल और नाखुशी है। असंतुष्ट खेमे के दिग्गजों को दरकिनार किए जाने के निर्णय को पार्टी का एक वर्ग पचाने के लिए तो तैयार है मगर राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों का शत प्रतिशत टिकट बाहरी नेताओं को देने का फैसला उसे भी रास नहीं आ रहा। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अगले साल होने वाले चुनाव को देखते हुए उम्मीदवारों के चयन की कसौटी और सियासी रणनीति दोनों पर सवाल उठाए जा रहे हैं। उत्तरप्रदेश के बाद लोकसभा में सीटों की संख्या के हिसाब से दूसरे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र से किसी स्थानीय चेहरे की बजाय इमरान प्रतापगढ़ी को मौका दिए जाने को पार्टी के हित के प्रतिकूल ठहराया जा रहा।
कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता तो राज्यसभा टिकट बंटवारे को उदयपुर चिंतन शिविर में तय एक परिवार, एक टिकट के नियम के खिलाफ होने का दावा कर रहे हैं। राज्यसभा के लिए कांग्रेस के 10 उम्मीदवारों की सूची के साथ ही रविवार को ही साफ हो गया था कि गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा जैसे असंतुष्ट नेताओं के लिए दरवाजा बंद हो गया है। झामुमो ने सोमवार को महुआ मांझी को उम्मीदवार घोषित कर आजाद के लिए आखिरी चमत्कार की गुंजाइश भी खत्म कर दी। हालांकि आजाद सरीखे नेताओं को इसका भान पहले ही हो गया था और तभी पार्टी के सियासी गलियारों में उम्मीदवारों के चयन को जमीनी राजनीति की कसौटी पर कसते हुए सवाल उठाए जा रहे थे।
राजस्थान के विधायक संयम लोढ़ा जैसे नेता ने जहां सूबे से एक भी स्थानीय नेता को उम्मीदवार नहीं बनाए जाने पर खुली नाराजगी जताई। वहीं पार्टी की चुनौतियों पर मुखर रहे वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने बेबाकी से कहा कि राज्यसभा को सियासी पार्किंग लॉट नहीं बनाया जाना चाहिए। कांग्रेस की सिकुड़ती जमीन को देखते हुए राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बाहरी चेहरों की भरमार पर उठे रहे सवाल तथ्यों की कसौटी पर प्रासंगिक हैं।
राजस्थान से राज्यसभा में बाहरी नेताओं को मौका देने का आंकड़ा चौंकाने वाला भी है। पार्टी ने अपनी मौजूदा तीनों सीटों पर रणदीप सुरजेवाला, प्रमोद तिवारी और मुकुल वासनिक को प्रत्याशी बनाया है जो राजस्थान के लिए बाहरी हैं। इससे पहले राजस्थान से कांग्रेस ने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को उच्च सदन में भेजा था। इस तरह 10 जून को होने वाले चुनाव के बाद एकलौते स्थानीय नेता नीरज डांगी के अलावा राजस्थान से राज्यसभा में कांग्रेस के छह में से पांच सांसद सूबे के बाहर के होंगे।
जबकि छत्तीसगढ़ में छाया वर्मा के रिटायर होने के बाद फूलो देवी नेताम ही एकलौती स्थानीय नेता होंगी। केटीएस तुलसी पहले से ही सदन में हैं और राजीव शुक्ल तथा रंजीत रंजन का अब चुना जाना तय है। यानि सूबे से कांग्रेस की चार राज्यसभा सीटों में तीन पर बाहरी नेता विराजमान होंगे।
राज्यसभा चुनाव में दूसरे सूबों के नेताओं को थोपे जाने पर सवाल उठाते हुए पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने कांग्रेस को इस मुश्किल दौर मे सत्ता दी है, फिर स्थानीय नेताओं को दरकिनार करने की राजनीति हैरान करने वाली है। इसमें साफ दिख रहा कि कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगाने का जोखिम लेते हुए नेतृत्व को राहत देने वाले नेताओं को तरजीह दी जा रही है।
हरियाणा में पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा की दस जनपथ से नजदीकी के बावजूद अनदेखी कर राहुल गांधी की पंसद दिल्ली के नेता अजय माकन और महाराष्ट्र में मिलिंद देवेड़ा सरीखे नेता की जगह उत्तरप्रदेश के इमरान प्रतापगढ़ी को उम्मीदवार बनाया जाना भी इससे अलग नहीं है। अभिनेत्री कांग्रेस नेता नगमा ने भी उनकी जगह प्रतापगढ़ी को मौका देने पर सवाला उठाया।
पार्टी कार्यसमिति के एक अन्य सदस्य ने यहां तक कहा कि उदयपुर चिंतन शिविर में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए हुए कई फैसलों को राज्यसभा उम्मीदवारों के चयन में पलट दिया गया है। पी चिदंबरम और प्रमोद तिवारी को उम्मीदवार बनाए जाने का हवाला देते हुए एक परिवार एक टिकट के फैसले के उलट बताया क्योंकि चिदंबरम के बेटे कार्ति लोकसभा में तो तिवारी की पुत्री अराधाना मिश्रा मोना उत्तरप्रदेश विधानसभा की सदस्य हैं। हालांकि एक परिवार एक टिकट का नियम पांच साल से अधिक पार्टी में काम करने वालों पर लागू नहीं होता और इस लिहाज से चिदंबरम और प्रमोद तिवारी पर यह नियम लागू नहीं होता।