राज्यों में अंदरूनी घमासान बना कांग्रेस नेतृत्व के लिए चुनौती

कांग्रेस के शीर्ष संगठन के चुनाव को लेकर असमंजस का दौर कायम है, लेकिन राज्यों के संगठनात्मक ढांचे में बदलाव को को जारी रखते हुए हाईकमान अपनी पकड़ मजबूत बनाने में जुटा है। हालांकि इस सियासी कसरत के क्रम में नेतृत्व को फिलहाल कम से कम आधा दर्जन राज्य इकाईयों में भारी अंदरूनी घमासान की सिरदर्दी से रुबरू होना पड़ रहा है।पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से आगे का सियासी भविष्य तैयार करने की योजना के तहत हाईकमान ने नवजोत सिंह सिद्धू को भारी मशक्कत के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तो बना दिया लेकिन सिद्धू अपनी निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को जिस रफ्तार से बाउंड्री के पार पहुंचाने के अंदाज में दिख रहे हैं वह अब नेतृत्व के लिए ही चुनौती बन गया है। सिद्धू के रुख ने पंजाब में संगठन पर पकड़ बनाने की नेतृत्व की कसरत को डांवाडोल कर दिया है क्योंकि वे तो हाईकमान के अंकुश को मानने के लिए तैयार नहीं दिख रहे।

कांग्रेस के दूसरे मजबूत गढ़ केरल में भी पार्टी नेतृत्व ने बड़ी तेजी से तीन महीने पहले के सुधाकरण को प्रदेश अध्यक्ष तो वीडी सतीशन को विपक्ष का नया नेता नियुक्त कर ओमेन चांडी और रमेश चेन्निथला जैसे दिग्गजों को झटका दिया। प्रदेश नेतृत्व के लिए हाईकमान की पसंद के इस बदलाव की आंच अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि पिछले हफ्ते हुए जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में भी यही फार्मूला अपनाया गया। इसको लेकर केरल कांग्रेस में घमासान का आलम यह है कि सूबे के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है तो कई चेतावनी दे रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस का यह बदलाव चाहे हाईकमान के हाथ को मजबूत बनाए मगर केरल की सियासी जमीन पर पार्टी के आधार को अभी नुकसान पहुंचाती दिख रही है।
छत्तीसगढ़ में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष की नियुक्ति पहले हो गई थी और इसलिए संगठन के ढांचे में हाईकमान के लिए कोई सिरदर्दी भले नहीं है लेकिन सूबे की सत्ता में अस्थिरता की हलचल जरूर शुरू हो गई है। ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री के वादे को लेकर पार्टी नेतृत्व राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव को पहले अहमियत दी और फिर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मजबूत राजनीतिक पेशबंदी और पकड़ को देखते हुए कदम खींच लिए। छत्तीसगढ़ में अपनी सियासत का प्रभाव नापने की नेतृत्व की इस कसरत से पार्टी संगठन और सरकार को मजबूती तो नहीं ही मिली है, उल्टे सूबे में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल पैदा होने की आशंका जरूर बढ़ गई है।

राजस्थान में एक साल से भी अधिक समय से सरकार और संगठन के बीच समन्वय बनाने की कोशिश हो रही है मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अब भी अपने प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट और उनके समर्थकों को सत्ता-संगठन में मौका देने को राजी नहीं हैं। हाईकमान की यहां दिक्कत यह है कि गहलोत और सचिन दोनों उसके लिए दाई और बाई आंख जैसे हैं और यहां किसी एक के पक्ष में निर्णय लेना उसके लिए चुनौती है।

महाराष्ट्र में हाईकमान ने छह महीने पूर्व नाना पटोले को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंप दी मगर सूबे के कई बड़े नेता या तो नाराज चल रहे या फिर उनसे तालमेल नहीं बिठा पा रहे। उत्तराखंड में चुनाव को देखते हुए गणेश गोंदियाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। गोंदियाल प्रदेश कांग्रेस के चुनावी चेहरा हरीश रावत के निकट माने जाते हैं और तभी पार्टी का एक वर्तेग इस पर अपनी नाखुशी जाहिर कर चुका है।