प्राथमिक शिक्षा किसी भी देश व उसके नागरिक की मजबूत आधारशिला हेतु ज्ञान की नींव है ।
जिसमें ज्ञान , सूचना , कौशल , सामाजिक नैतिकता के प्रारंभिक तत्व शामिल होते हैं । जिन्हें बच्चों के समक्ष प्रदर्शित कर सिखाया जा सकता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी 5 वर्ष की आयु तक बच्चों का दिमाग लगभग पूरी तरह विकसित हो जाता है । अतः प्राथमिक शिक्षा हेतु जब बच्चा विद्यालय में प्रवेश करता है तो कोरी स्लेट की तरह होता है । जिस पर शिक्षक को सबसे अच्छा ज्ञान , नैतिकता , देशभक्ति भावना को कहानियों व अन्य माध्यम से उसके मन मस्तिष्क पर अंकित करने के साथ साथ शिक्षा के प्रति आकर्षण पैदा कर देना चाहिए, मगर हमारे देश में किन्ही कारणों से प्राथमिक शिक्षा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है ।
एक विद्यालय में 200 से 250 के आस पास बच्चें उस विद्यालय में 2 शिक्षक तथा शैक्षिक सत्र के दौरान प्रशिक्षण , कई प्रकार की ड्यूटी ऐसे में बच्चों की पढ़ाई बाधित होना स्वभाविक है जिससे शिक्षिकों का उत्साह गिरता है । बच्चों को लगता है शिक्षक पढ़ाते नहीं अभिभावकों को लगता है विद्यालय खराब है कहि और नाम लिखवाएंगे । दूरस्थ अंचल में कोई शिक्षक जाना नहीं चाहता यदि प्रथम नियुक्ति में भेज भी दिया जाए तो मौका मिलते ही स्थानांतरण करवा लेता है । ऐसे कई विद्यालयों में एक या दो शिक्षकों पर विद्यालय की सभी कक्षाओं व विद्यालय प्रबंधन की ज़िम्मेदारी होती है । हाल के दिनों में विद्यालयों के शिक्षकों पर सूचनाओं व आंकड़ो का बोझ बढ़ा है साथ ही अन्य ड्यूटी व प्रशिक्षण भी ।
अधिकांशतः सभी प्रकार की ड्यूटी में प्राथमिक शिक्षकों को ही सौप दी जाती है । प्रशासन को भी विश्वास रहता है कि इनसे अच्छे व सटीक परिणाम कोई अन्य न दे सकेगा । यह पूर्ण ईमानदारी से अपने दायित्वों का निर्वहन भी करेंगे । उनके इस विश्वास को हम नमन करते है किंतु इससे बच्चों की गुणवत्ता प्रभावित होती है शिक्षा का माहौल खराब होता है ।
विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षक होना सफल संचालन की पहली नितांत आवश्यक शर्त है। संसाधन के अभाव में तमाम लक्ष्यों से शिक्षिकों को समझौता करना पड़ता है जिसके लिए केवल शिक्षक को दोषी मान लेना नितांत अनुचित ही है ।
भारत में एकल व बंद विद्यालयों की स्थिति बताती है कि आने वाले दस सालों में यथावत स्थिति सुधरने वाली नहीं है जिसके लिए सरकार ही नहीं कई तकनीकी खामियां व अपरिहार्य कारणों से न्याय में देरी भी है , जिससे भर्तियां सालों साल अधर में लटकी रहती है । अपनी 13 साल के सेवा काल में यह लगातार देखने को मिल रहा है ।
गौर-ए-तलब है कि प्राथमिक शिक्षा में सुधार हेतु सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति द्वारा पूर्व प्राथमिक शिक्षा को लागू किया जाना सराहनीय कदम है जो कि मील का पत्थर साबित होगा किंतु इसको धरातल पर उतारने की आवश्यकता होगी जिसके लिए पर्याप्त संसाधन , कक्षाकक्ष , स्थान , बजट व शिक्षकों की आवश्यकता होगी । जिसका कि इस संबंध में प्राप्त प्रशिक्षणों से अभाव प्रतीत हो रहा है ।
वैसे भी कोविड 19 की महामारी ने देश की प्राथमिक शिक्षा की तो मानों कमर ही तोड़ दी हो , कक्षा एक में नामांकित बच्चा कक्षा 3 में आ चुका है किंतु उसके पास न्यूनतम अधिगम स्तर नहीं है । इस महामारी में शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर बनाये रखने के लिए सरकार ने ई-पाठशाला , ऑनलाइन क्लास , मोहल्ला क्लास इत्यादि व डी .टी .एच . कार्यक्रम के प्रसारण हेतु जी सेट -15 उपग्रह का प्रयोग , NCRT के साथ मिलकर शिक्षा मंत्रालय द्वारा ई पाठशाला ऑनलाइन पोर्टल और मोबाइल ऐप लॉन्च कर शिक्षा क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये गए ।
लेकिन ग्रामीण परिवेश में बिजली आपूर्ति , इंटरनेट कनेक्टिविटी , मोबाइल , टी.वी. , लैपटॉप , टेबलेट का न होना , डेटा न होना , शिक्षक – छात्रों का डिजिटल कौशल न होना बाधा बना हुआ है ।
डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने का यह आशय कदापि नहीं कि शिक्षक आधारित शिक्षण समाप्त कर दिया जाएं , वास्तव में शिक्षा अवधारणाओं की अधिक स्पष्टता के लिए शिक्षिकों का होना ही अत्यंत प्रभावकारी व लाभप्रद सिद्ध होता है ।
शिक्षकों के लिए इस प्रकार प्रशिक्षित करने की आवश्यकता अवश्य है कि वे पारंपरिक कक्षा के अलावा ऑनलाइन इंटरनेट के माध्यम से भी छात्रों की सहायता कर सकें ।
प्राथमिक शिक्षा में गुणात्मक सुधार हेतु सुझाव
प्रत्येक विद्यालय में पर्याप्त शिक्षक , कक्षाकक्ष व सभी आवश्यक संसाधनों का होना जिनके किसी एक के अभाव में प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्यों की पूर्ति असंभव प्रतीत होती है ।
दूरस्थ नियुक्त शिक्षिकों हेतु विशेष सुविधा, प्रोत्साहन भत्ते तथा सुरक्षा व्यवस्था जो कि मुख्यालय पर नियुक्त शिक्षकों से अधिक हो ।
सफल संचालन वाले विद्यालयों के समस्त शिक्षक कर्मचारियों का सम्मान , दोषपूर्ण प्रणाली वाले संचालन के लिए भी सभी शिक्षक कर्मचारी की जबाबदेही तय हो ।
विद्यालय में कक्षा वार शिक्षकों की नियुक्ति अवश्य हो , यदि संभव हो तो हर विद्यालय में एक क्लर्क व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी अवश्य हो ।
हर शिक्षक अपने निजी स्थान से लगभग 15 से 20 किलोमीटर के दायरे से बाहर नियुक्त हो , विशेष परिस्थितियों को छोड़ कर ,क्योंकि अत्यधिक नज़दीक होने से शिक्षक अपनी मनमानी पर आ जाता है और हेड या अन्य शिक्षक परेशान होते है
बेसिक शिक्षा के सुधार हेतु शिक्षक की ज़िम्मेदारी तय करने हेतु नए नए आदेश व निर्देश समय समय पर मिलते है जिनके तहत बहुत से शिक्षक शिक्षिकाओं का आर्थिक व मानसिक शोषण भी होता है -किन्तु यह भी आवश्यक है कि ज़िम्मेदारी अवश्य तय होनी ही चाहिए लेकिन साथ ही बच्चों के अभिभावकों की ज़िम्मेदारी तय हो जैसे विद्यालय न भेजने या नामांकित न करवाने पर सरकारी सुविधाओं से वंचित किया जाना व कुछ कानूनन कार्यवाही किये जाना ।
शिक्षक या शिक्षिकाओं द्वारा बच्चों के प्रति या बच्चों का बच्चों के प्रति जातिवादी दृष्टिकोण , भावना का समाप्त होना , जिसके लिए प्रवेश के समय जाति धर्म का कोई कॉलम न हो । न ही जातिगत प्रश्न पूछे जाए । ताकि बच्चें इस भावना का शिकार होकर विद्यालय न छोड़े या उनकी उपेक्षा न हो , यदि किसी पर इस प्रकार का कार्य किया जाना सिद्ध होता है तो कार्यवाही सुनिश्चित हो ।
खेल आधारित या पहेली आधारित शिक्षा ताकि शिक्षा के प्रति बच्चों में दिलचस्पी पैदा हो सके ।
अनेक बच्चें घर के वातावरण को सहते हुए हिंसा व बाल अत्याचार को सहते है साथ ही विद्यालयी समय में घरेलू कार्यो में उनका लगाया जाना प्राथमिक शिक्षा के लिए घातक सिद्ध होता है अतः इसके लिए व उन अभिभावकों के लिए स्पष्ट नीति या कानून बने जो बच्चों को विद्यालय न भेज कर घरेलू कार्यो में लगाए रखते है ।
कक्षा कक्ष में होम लैंग्वेज को स्थान देना होगा जिससे कक्षा एक व दो के बच्चें अपने अनुभवों को साझा कर सकें , जिससे बच्चों को नई भाषा सीखने व सिखाने में मदद मिलेगी व बच्चें निसंकोच संवाद कर सकेंगे ।
पुस्तकालय का उपयोग कक्षा एक व दो के बच्चों को भी करने दिया जाए ताकि उनका भी विकास हो सके और अपने स्तर की पुस्तकों के चित्रों से व पढ़ कर कल्पना व संवाद कर सकें ।
शिक्षक व छात्रों में गुरु शिष्य के रिश्ते में थोड़ा बदलाव हो तथा नो गैप प्रणाली लागू हो , जिसमें शिक्षक बच्चों को मित्रवत व्यवहार के साथ सिखाएं ।
एक मां का विश्वास होता है शिक्षक । कोई मां अपने 5 साल के बच्चें को किसी के पास छोड़ने में संकोच करती है किन्तु शिक्षक के पास अपने दृढ़ विश्वास के साथ छोड़ती है ।
अतः शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त पूर्वाग्रहों को कम करने के लिए लम्बा सफर व समय के साथ बदलाबों को अपनाते हुए करना होगा । प्राथमिक शिक्षा बच्चें के जीवन की दिशा व दशा को निर्धारित करने में मील का पत्थर साबित होती है ।
अतः देश को हर क्षेत्र में सर्वोत्तम व विश्वगुरु बनाने के लिए प्राथमिक शिक्षा व प्राथमिक शिक्षा में कार्यरत गुरुजनों की स्थिति , समस्याओं का निदान करना होगा । सरकारी व निजी के भेदभावों वाले नज़रिए को त्याग कर कार्य करने होंगे ।
महेंद्र प्रताप सिंह
(राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षक)