यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद भारत की स्थिति को मॉस्को समर्थक के तौर पर बताई गई है। हालंकि नई दिल्ली ने अभी तक स्पष्ट रूप से मॉस्को की निंदा नहीं की है और यूनाइटेड नेशंस में संबंधित वोटिंग पर भाग नहीं लिया। भारत ने रूसी हथियार और तेल की खरीद नहीं करने को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही भारत ने रूसी विदेशी मंत्री सर्गेई लावरोव की मेजबानी की है। लावरोव ने पीएम मोदी से मुलाकात भी की है। तो क्या भारत रूस के खेमे में है?
तन्वी मदन दुनियावी मामलों की एक्सपर्ट्स हैं। उन्होंने इकोनॉमिस्ट में लिखा है कि भारत रूसी खेमे में नहीं है। भारत ने न रूसी आक्रमण का समर्थन किया है और न ही विरोध किया है। हां यह जरूर है कि मॉस्को द्वारा कीव पर आक्रमण किए जाने के कारण भारतीय हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। रूसी हमले के कारण 20 हजार से अधिक नागरिक का जीवन खतरे में था, जिसमें से एक की मौत भी हो गई।
रूसी हमले के कारण भारत की चीन को लेकर भी चिंताएं बढ़ गई हैं। भारतीय सेना हथियारों के लिए रूस पर बड़े स्तर पर निर्भर है और यूक्रेन युद्ध के कारण इस सेक्टर में भी असर पड़ा है। इसके साथ ही भारत और यूक्रेन के संबंध भी खराब हो गए हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के कारण भारत की इकॉनमिक स्थिति पर भी असर पड़ रहा है। कच्चे और खाद्य तेलों के साथ ही उर्वरक आदि की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। यह मोदी सरकार के लिए उनकी राजनीतिक समस्याएं भी खड़ी करती है।
तन्वी ने लिखा है कि चीन को लेकर भारत की चिंताओं से रूस अवगत है। नई दिल्ली यूरेशिया सहित कई क्षेत्र में बीजिंग को रोकने के लिए मॉस्को की मदद चाहता है लेकिन यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद बीजिंग को मॉस्को से दूर ले जाने के भारत की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। क्योंकि दिल्ली के एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि यूक्रेन हमले के बाद रूस चीन पर और अधिक निर्भर हो सकता है। भारत में इसके प्रभावों को लेकर कई सवाल हैं। सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि यदि बीजिंग मॉस्को से नई दिल्ली के खिलाफ कार्रवाई करने को कहता है तो क्रेमलिन क्या स्टैंड लेगा? क्या बीजिंग उम्मीद कर सकता है कि रूस इंडो-पैसिफिक में अधिक सक्रिय रूप से चीन का पक्ष लेगा?
यूक्रेन युद्ध के कारण भारत के अमेरिका, जापान सहित यूरोप के देशों के साथ संबंधों पर भी असर पड़ा है। ये साझेदार भारत के लिए सुरक्षा, कूटनीति और आर्थिक तौर बेहद महत्वपूर्ण हैं। लेकिन रूस शायद उस सबसे अधिक। लेकिन चिंता इस बात की भी है कि युद्ध के कारण भारत के उन साझेदारों का ध्यान भारत की प्राथमिकताएं जैसे कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र और चीन द्वारा दी जा रही चुनौती से भटक सकती है।
भारत रूस का साथ नहीं छोड़ना चाहता है। रूस की निंदा नहीं करने के बावजूद नई दिल्ली को डर है कि क्या रूस भारत के पक्ष में रहेगा? दिल्ली को यह चिंता भी है कि मॉस्को हथियार और उसके स्पेयर-पार्ट्स को भेजने में स्पीड कम कर सकता है या फिर भारत-चीन के बीच जारी गतिरोध में तटस्थ मॉस्को बीजिंग की ओर झुक सकता है। आसान भाषा में कहा जाए तो मॉस्को इस्लामाबाद और बीजिंग के साह मिलकर भारतीय हितों का खेल बिगाड़ सकता है। इसके इतर रूस भारत के लिए रक्षा, व्यापार और टेक्नोलॉजी के साथ-साथ परमाणु और अंतरिक्ष क्षेत्रों में एक भागीदार के रूप में प्रासंगिक बना हुआ है। भारत सरकार आम तौर पर अपने सहयोगियों की प्रत्यक्ष निंदा करने से बचती है।
हालांकि हाल के दिनों में दिल्ली का सख्त होता हुआ दिख रहा है। संसद और यूनाइटेड नेशंस में भारत के बयान पहले के मुकाबले अधिक आलोचनात्मक नजर आए हैं जिसमें भारत ने कहा है कि नई दिल्ली संघर्ष के खिलाफ है। भारत ने विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने पर जोर दिया है। एक्सपर्ट्स यह भी मानते हैं कि भारतीय टॉप पॉलिसीमेकर्स आक्रमण को लेकर अपनी नाराजगी जताई होगी। युद्ध जितना लंबा चलेगा भारत के लिए दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाना और मुश्किल होता जाएगा।