यूक्रेन पर आक्रमण को लेकर रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनातनी का नई दिल्ली एक केंद्र के तौर पर स्थापित हो रहा है। भारतीय कूटनीति के लिए दोनों पक्षों के बीच समीकरण संतुलित करना दिनों दिन चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। ऐसे में अगले कुछ दिनों के दौरान रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और ब्रिटेन की विदेश मंत्री एलिजाबेथ ट्रूस भारत के दौरे पर होंगे। दोनों विदेश मंत्रियों की इस यात्रा के दौरान द्विपक्षीय वार्ता में यूक्रेन का मुद्दा ही सबसे महत्वपूर्ण रहने की उम्मीद है। भारत ने अभी तक इस पूरे घटनाक्रम में अपने हितों का ख्याल रखते हुए तटस्थ रहने की नीति अपना रखी है।
रूस के विदेश मंत्री लावरोव की यात्रा की तिथि अभी तय नहीं है, लेकिन उनके इस सप्ताहांत तक नई दिल्ली पहुंचने की संभावना है। जबकि ब्रिटिश विदेश मंत्री ट्रूस 31 मार्च को यहां पहुंच रही हैं। ट्रूस विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ द्विपक्षीय मुद्दों पर बात करेंगी और भारत ब्रिटेन स्ट्रेटजिक फीचर्स फोरम में भी शिरकत करेंगी। ब्रिटेन अभी रूस के खिलाफ लामबंदी में जुटे अमेरिका का सबसे मुखर सहयोगी देश है, जो स्वयं रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा चुका है। माना जा रहा है कि विदेश मंत्री ट्रूस भारतीय नेताओं के सामने रूस संबंधी नीति को लेकर पश्चिमी देशों के रुख को रखेंगी।
इसके पहले पिछले दिनों जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने अपने भारत दौरे के दौरान और आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्काट मारिसन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ वर्चुअल शिखर बैठक में रूस के खिलाफ लामबंदी की कोशिश कर चुके हैं। इन दोनों नेताओं ने रूस के खिलाफ बेहद सख्त कार्रवाई करने की मांग की थी जिसे कूटनीतिक जगत में भारत पर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देखा गया
लावरोव की भारत यात्रा को रूस की तरफ से अपनी यूक्रेन नीति के पक्ष में अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने के तौर पर देखा जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों पर वोटिंग के दौरान कम से कम तीन अवसरों पर अनुपस्थित रहा है, जबकि एक बार वह रूस की तरफ से लाए गए प्रस्ताव पर भी अनुपस्थित रहा है।
अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश भारत के इस व्यवहार को रूस के समर्थन के तौर पर देख रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और कुछ यूरोपीय देशों के राजनेता भारत को लेकर अपनी गहरी नाराजगी भी दिखा चुके हैं। दूसरी तरफ विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यूक्रेन और रूस के बीच हालात से उपजी स्थिति पर भारत की नीति को लेकर हाल ही में संसद में बयान दिया था कि भारत सिर्फ अपने हितों के मुताबिक कदम उठाएगा। भारत इस पूरे विवाद का समाधान आपसी बातचीत व कूटनीति के जरिये करने की भी सलाह दे रहा है
बहरहाल, माना जा रहा है कि लावरोव की यात्रा के दौरान अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की वजह से रूस-भारत के बीच कारोबार की राह निकालने के विकल्पों और पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद को लेकर भी बातचीत होगी।