आयकर उपायुक्त को कोर्ट की अवमानना मामले में सात दिन की सजा, 25 हजार का जुर्माना

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने अदालत के आदेश की जानबूझकर अवज्ञा करने के मामले में आयकर विभाग के उपायुक्त हरीश गिडवानी को अवमानना मामले में सात दिन के साधारण कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही उन पर 25 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया है। हाईकोर्ट की एकल पीठ के न्यायाधीश इरशाद अली ने यह आदेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत चंद्र द्वारा दायर की गई अवाना याचिका पर दिया है।
हाईकोर्ट के इस आदेश से अन्य अधिकारियों में भी खलबली मच गई है। अक्सर अधिकारी कोर्ट के आदेश में हीलाहवाली करते हैं और दांव-पेंच करके मामले को लटकाने के माहिर हो जाते हैं। मगर कोर्ट का यह फैसला उन तमाम अधिकारियों के लिए नजीर बन गया है, जो जानबूझकर अदालत की अवमानना करते हैं।
डिप्टी कमिश्नर को 7 दिनों की जेल भेजे जाने का यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल पीठ ने प्रशांत चंद्रा की ओर से दायर एक अवमानना याचिका पर पारित किया। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि वह (गिडवानी) 22 दिसंबर को अपराह्न तीन बजे अदालत के वरिष्ठ रजिस्ट्रार के समझ पेश हों, जहां से उन्हें सजा काटने के लिए जेल भेज दिया जायेगा। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यदि अवमानना करने वाले इस वरिष्ठ अधिकारी को दंडित न किया गया तो दूसरे अफसरों में गलत संदेश जाएगा और वे (अधिकारी) मान लेंगे कि अवमानना किया तो क्या होगा, अधिक से अधिक अदालत चेतावनी देगी या जुर्माना लगा देगी।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा था कि उसे लखनऊ में आयकर विभाग ने वर्ष 2011-12 के लिए करीब 52 लाख रुपये का मूल्‍यांकन नोटिस भेजा था, जबकि उन्होंने अपना आयकर दिल्‍ली से भरा था। उनकी याचिका पर उच्‍च न्‍यायालय ने 31 मार्च 2015 को उक्त नोटिस और उसके अनुक्रम में पारित अन्य आदेश रद्द कर दिये।
याचिका कर्ता ने आरोप लगाया कि उच्‍च न्‍यायालय के आदेश के बावजूद आयकर विभाग की वेबसाइट पर यह बकाया नोटिस सात महीने तक उपलब्ध रहा, जिस कारण उसके सम्मान पर काफी चोट लगी। याची के इस आरोप पर आयकर विभाग के अधिवक्ता मनीष मिश्रा ने अपने जवाब में माना कि बकाया नोटिस को वेबसाइट से सात माह बाद हटाया गया था।
इस पर बेंच ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि प्रस्तुत मामले में गिडवानी की जो भूमिका रही उससे साफ है कि उन्होंने आदेश के बावजूद याची को परेशान करने की नीयत से बकाया नोटिस वेबसाइट से नहीं हटाया, अतः इस मामले में केवल जुर्माना ही काफी नहीं है।