काशी और अयोध्या के बाद अब मथुरा को धार्मिक पर्यटन नगरी बनाने की तैयारी है। धार्मिक पर्यटन नगरी वह अब भी है। वर्षों से है, लेकिन बड़े स्तर पर कायाकल्प इसी साल से शुरू होने वाला है। जैसे काशी विश्वनाथ मंदिर को गंगा से जोड़ा गया है, वैसे ही अब मथुराधीश मंदिर को यमुना से जोड़ा जाएगा। पिछले कुछ सालों में धर्मस्थलों का जिस तरह कायाकल्प किया गया है, वह ऐतिहासिक या कहें अभूतपूर्व है। महाकाल की नगरी उज्जैन को ही ले लीजिए। पहले से कहीं ज़्यादा श्रद्धालु आने लगे हैं। लोगों को भी अपनी आस्था के केंद्र पर आना अच्छा लग रहा है और पूरे उज्जैन शहर का भी एक तरह से कायाकल्प हो गया है।
काशी में भी ऐसा ही हुआ। यहाँ गंगा से सीधे आप विश्वनाथ मंदिर जा सकते हैं। ख़ूबसूरती देखो तो ऐसी जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
अयोध्या में जहां भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है, वहाँ भी अगले साल ही रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है। इस मंदिर के उद्घाटन की भव्य और विस्तृत तैयारी की जा रही है।
सवाल उठ सकता है कि चुनाव पूर्व अयोध्या में मंदिर का उद्घाटन किया जा रहा है, लेकिन मंदिर तो पहले से बनना तय ही था। उद्घाटन पहले हो या बाद में, इसे चुनावों से जोड़ना फ़िलहाल ठीक नहीं। काशी, अयोध्या और उज्जैन में जिस तरह की भव्यता लाई गई है, वह अविस्मरणीय है।
इन सबको तो चुनाव से नहीं जोड़ा जा सकता। आख़िर ये चारों धर्मस्थल भारत के अपार श्रद्धालुओं की आस्था के बड़े केंद्र हैं।
अयोध्या के लिए तो कितना बड़ा आंदोलन हुआ था और कितना लम्बा संघर्ष! कोर्ट ने आख़िर सब के पक्ष में फ़ैसला दिया था। तब जाकर वहाँ मंदिर निर्माण का रास्ता खुला था।
मथुरा की भव्यता भी देखते ही बनती है। यह मंदिर परिसर और ज़्यादा भव्य होने जा रहा है। शहर भी काफ़ी बड़ गया है। पहले मथुरा से वृंदावन जाना हो तो सात किलोमीटर चलना होता था। अब तो मथुरा और वृंदावन पूरी तरह एक चुके हैं।
मथुरा से चलो तो कब वृंदावन पहुँच गए, पता ही नहीं चलता। लगता है जैसे मथुराधीश और बाल- गोपाल या कन्हैया दोनों एकाकार हो चुके हों। मथुरा मंदिर कॉरिडोर बनने के बाद अब कभी मथुराधीश कृष्ण यमुना किनारे जाकर विहार करेंगे, तो कभी गोपालक कन्हैया वृंदावन से आकर गैया चराएँगे। यह संयोग अविस्मरणीय होगा और सुंदर भी।