कांवड़ियों का प्रिय स्थान
केदारनाथ के आसपास के प्राकृतिक वातावरण के चलते ये यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। ये अवधि जुलार्इ-अगस्त के मध्य पड़ने वाले सावन के महीने की भी होती है। इसलिए सावन में शिवभक्त बड़ी तादात में यहां दर्शन करने आते हैं। इसी क्रम में कांवड़िये भी केदारनाथ में जल चढ़ाने को उमड़ते हैं। देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसीलिए यह मान्यता है कि यहां जल चढ़ाने आैर शिव का अभिषेक करने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।
प्रमुख ज्योर्तिलिंग
केदारनाथ मन्दिर उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सर्वश्रेष्ठ माने जाने के साथ ही ये चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में ये कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के राजा जनमेजय ने कराया था। यहां स्थापित अति प्राचीन शिवलिंग को भी स्वयम्भू यानि स्वत: स्थापित कहा जाता है।
केदारनाथ धाम का इतिहास
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के इतिहास की चर्चा करते हुए कहा जाता है कि यह हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनकी प्रार्थनानुसार उन्हें ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान दिया। वहीं पंचकेदार के बारे में माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे, इसलिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। तब वे उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ गए। जिस पर पांडवों को दर्शन ना देने की इच्छा के चलते वे अंतर्ध्यान हो कर केदार आ गए, परंतु लगन के पक्के पांडव भी उनके पीछे केदार पहुंच गए। भगवान शंकर तब बैल का रूप धारण कर पशुओं में जा मिले, पांडवों ने उन्हें पहचान लिया आैर भीम ने विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिये। वहां से सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। बस भीम ने बलपूर्वक उनकी त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति आैर दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए, आैर उन्हें दर्शन देकर पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति के पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।