अंतिम चरण में इन 24 सीटों पर होगा कड़ा मुकाबला, 2014 में हार-जीत का अंतर था बेहद कम

लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में 59 सीटों पर होने वाले मतदान में 24 सीटें ऐसी हैं जहां पिछली बार जीतने वाली पार्टी की सीट खतरे में पड़ सकती है. ये वो सीटें हैं जहां पिछले चुनाव में जीत का अंतर काफी कम था. अगर गठबंधन या किसी अन्य स्थानीय वजहों से वोटिंग पैटर्न में बदलाव हुआ तो इन सीटों पर नतीजा बदल सकता है. खतरे वाली इन 24 सीटों में आठ बीजेपी की, चार-चार सीटें शिरोमणि अकाली दल और तृणमूल कांग्रेस की हैं. इन पार्टियों के अलावा आम आदमी पार्टी, जेएमएम और कांग्रेस की दो-दो सीटें हैं. जेडीयू और आरएलएसपी की एक-एक सीटें हैं.

 

2014 के चुनाव में इन 59 सीटों में 30 पर बीजेपी जीती थी, जबकि तृणमूल कांग्रेस के पास इनमें से 9 सीटें हैं. शिरोमणि अकाली दल के पास 4, आम आदमी पार्टी के पास 4 और कांग्रेस के ​पास तीन सीटें हैं. सभी पार्टियां अपनी मौजूदा स्थिति सुधारने के लिए जोर लगा रही हैं.

वाराणसी सीट से बीजेपी प्रत्याशी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए राह काफी आसान लग रही है, लेकिन अंतिम चरण में 8 सीटें ऐसी हैं जहां पर भाजपा प्रत्याशियों की राह आसान नहीं होगी. चुनावी आंकड़े कहते हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव में इन आठ सीटों पर भाजपा ने बेहद कम अंतर से जीत हासिल की थी.

अंतिम चरण के चुनाव में 59 सीटों पर मतदान होना है, इनमें से 30 सीटें बीजेपी के पास हैं. इनमें से 8 सीटें बेहद कम मार्जिन वाली हैं, जिनपर बीजेपी के लिए मुश्किल होगी. ये यूपी, बिहार, पंजाब, पश्चिम बंगाल और झारखंड की अलग-अलग सीटें हैं.

पंजाब में बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल और तृणमूल कांग्रेस भी चार-चार सीटों पर कड़ी चुनौती का सामना कर रही हैं. दूसरी पार्टियां जैसे आम आमदी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा भी दो-दो सीटों पर कड़ी चुनौतियों का सामना कर रही हैं.

पंजाब

इस चरण में पंजाब में 13 सीटों पर वोटिंग होनी है. इनमें से 9 सीटें ऐसी हैं जहां पर परिवर्तन होने की संभावना है. पिछले चुनाव में जीत के अंतर का आंकड़ा कहता है कि वोटिंग पैटर्न में अगर साधारण बदलाव भी होता है तो शिरोमणि अकाली दल की चार, आम आदमी पार्टी की दो और बीजेपी की एक सीट फंस सकती है.

पंजाब में अकाली दल भाजपा के साथ गठबंधन के तहत 13 में से 10 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है. अकाली दल के लिए बठिंडा, आनंदपुर साहिब, खडूर साहिब और फिरोजपुर सीट पर वापसी के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी. 2014 के चुनाव में बठिंडा सीट पर अकाली दल प्रत्याशी और पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर ने कांग्रेस प्रत्याशी मनप्रीत सिंह बादल को दो फीसदी से भी कम वोटों के अंतर से हराया था. इस बार हरसिमरत सिंह कौर को कांग्रेस के अमरिंदर सिंह राजा और आप के प्रोफेसर बलजिंदर कौर कड़ी चुनौती दे रहे हैं.

अकाली दल के दूसरे प्रत्याशी प्रेम सिंह चंदू माजरा ने आनंदपुर साहिब सीट पर कांग्रेस की अंबिका सोनी को तीन फीसदी से कम वोटों के अंतर से हराया था. इस बार उनका कांग्रेस के मनीष तिवारी से कड़ा मुकाबला है. अकाली दल फिरोजपुर और खडूर साहिब में भी इसी तरह की चुनौती का सामना कर रहा है.

अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर ​बादल ने फिरोजपुर में अपने मौजूदा सांसद शेर सिंह गुबाया का टिकट काट दिया है. उन्होंने पिछली बार बेहद मामूली अंतर से जीत हासिल की थी. अकाली दल ने खडूर साहिब में भी अपना प्रत्याशी बदल दिया है. कपूरथला जिले के बालोठ से तीन बार के विधायक और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष  बीबी जागीर कौर को मौजूदा सांसद रंजीत सिंह की जगह लाया गया है. रंजीत सिंह ने पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी हरमिंदर सिंह गिल को 9.66 फीसदी वोटों के अंतर से हराया था. इस बार खडूर साहिब सीट पर अकाली दल के जागीर कौर के मु​काबले कांग्रेस ने जसबीर सिंह गिल और आम आदमी पार्टी ने मनजिंदर सिंह को उतारा है.

पिछले चुनाव में बहुत कम अंतर से जीत के चलते आम आदमी पार्टी की भी दो सीटें दांव पर हैं.

2014 में पटियाला सीट से डॉ. धरमवीर गांधी ने कांग्रेस प्रत्याशी और मौजूदा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परणीत कौर को दो फीसदी से कम वोटों के अंतर से हराया था. इस बार परणीत कौर को मजबूत प्रत्याशी माना जा रहा है. आम आदमी पार्टी ने उनके मुकाबले डॉ. गांधी को हटाकर नीना मित्तल को उतारा है.

कांग्रेस भी लुधियाना और जालंधर जैसी दो सीटों पर कड़े मुकाबले का सामना कर रही है. लुधियाना कांग्रेस का गढ़ माना जाता है और लंबे समय से उसका कब्जा है. 2009 में यहां से मनीष तिवारी यहां से सांसद चुने गए थे. 2014 में रवनीत सिंह बिट्टू ने आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी हरविंदर सिंह फुल्का को हराया था.

सूबे की होशियारपुर सीट फिलहाल बीजेपी के पास है, लेकिन यहां भी कड़ा मुकाबला होने की संभावना है. कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली यह सीट 2014 में बीजेपी ने जीती थी. मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री विजय सांपला ने इस आरक्षित सीट पर कांग्रेस के महिंदर सिंह को मात्र 1.41 फीसदी वोटों के अंतर से हराया था.

उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश की दो सीटों पर सबकी नजरें हैं. एक है कुशीनगर और दूसरी है मोदी के चुनाव क्षेत्र से सटी सीट गाजीपुर. इन दोनों सीटों पर बीजेपी बेहद मामूली अंतर से जीती थी. 2014 में केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा ने गाजीपुर सीट कड़े मुकाबले में जीती थी उन्हें सिर्फ साढ़े 3 फीसदी वोट ज्यादा मिले थे. उन्होंने सपा प्रत्याशी को हराया था. इस बार मामला उलटा है. जातीय समीकरण सिन्हा के खिलाफ जा रहे हैं, वहीं सपा-बसपा गठबंधन ने इस बार माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी को अपना प्रत्याशी बनाया है.

पिछली बार कम अंतर से जीती गई कुशीनगर सीट पर भी सपा बसपा गठबंधन ने बीजेपी प्रत्याशी के सामने कड़ी चुनौती पेश की है. 2014 में कांग्रेस प्रत्याशी आरपीएन सिंह को भाजपा के राजेश पांडेय ने दस फीसदी से कम वोटों के अंतर से हराया था.

बिहार

बिहार में बीजेपी को पाटलिपुत्र और सासाराम, इन दो सीटों पर कड़ा मुकाबला है.

सासाराम हाई प्रोफाइल सीट है जहां से पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष और बिहार के कद्दावर नेता जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार एक बार फिर मैदान में हैं. 2014 में छेदी लाल पासवान ने मीरा कुमार को 7.48 फीसदी वोटों के अंतर से हराया था. इसके पहले मीरा कुमार ने 2004 और 2009 में सासाराम सीट पर जीत दर्ज की थी.

पाटलिपुत्र सीट पर भाजपा के राम कृपाल यादव ने आरजेडी की मीसा भारती को 4.12 फीसदी वोटों के अंतर से हराया था. राम कृपाल यादव, जो कभी लालू यादव के करीबी हुआ करते थे, 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले ही वो बीजेपी में शामिल हो गए थे. इस बार पाटलिपु​त्र सीट पर मीसा भारती महागठबंधन की प्रत्याशी हैं और यादव को कड़ी टक्कर दे रही हैं.

झारखंड

झारखंड में बीजेपी की गोड्डा सीट पर कड़ा मुकाबला है. गोड्डा कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है, लेकिन 2014 में भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दुबे ने कांग्रेस प्रत्याशी फुरकान अंसारी को 6 फीसदी से कम वोटों के अंतर से हराया था. दुबे इस बार फिर से यहां जोर आजमाइश कर रहे हैं, इस बार गठबंधन ने संयुक्त उम्मीदवार प्रदीप यादव (जेवीएम-पी) को उतारा है जिससे मुकाबला कड़ा हो गया है.

इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड आंदोलन के पुरोधा शिबू सोरेन की सीट भी फंसी हुई है. साथ ही पार्टी राजमहल सीट पर फंस सकती है. जेएमएम ने पिछली बार चार सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन वह दुमका और राजमहल दो ही सीटें जीत पाई थी वह भी बहुत कम अंतर से. हालांकि, शिबू सोरेन दुमका लोकसभा सीट पर 1991 से ही जीत रहे हैं.

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की चार सीटें ऐसी हैं जहां पार्टी की वापसी मुश्किल हो सकती है. बसीरहाट, डायमंड हॉर्बर, जाधवपुर और जयनगर लोकसभा सीटें तृणमूल कांग्रेस ने कम अंतर से जीती थीं. इस बार इन सीटों पर कड़े त्रिकोणीय मुकाबले में तृणमूल को मुश्किल हो सकती है.

लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में सात राज्यों की 59 सीटों के लिए करीब 6 करोड़ मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे.