‘लोकतंत्र में शासक असहमति को बर्दाश्त करता है, यही सबसे बड़ी परीक्षा’: नितिन गडकरी

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पुणे में एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी में आयोजित एक पुस्तक विमोचन समारोह में हिस्सा लिया। उन्होंने इस समारोह को संबोधित भी किया। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा यह है कि शासक को अपने खिलाफ सबसे मजबूत राय को भी सहन करना पड़ता है। उन्होंने आगे कहा कि लेखकों और बुद्धिजीवियों को खुद को निडर होकर व्यक्त करना चाहिए। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, “लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा यह है कि शासक अपने खिलाफ व्यक्त की गई सबसे मजबूत राय को भी बर्दाश्त करे और इस पर आत्मचिंतन करे।” उन्होंने आगे कहा कि भारत में अलग-अलग राय रखने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन यहां राय की कमी की समस्या है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री ने कहा, “हम न तो दक्षिणपंथी हैं और न ही वामपंथी। हम केवल अवसरवादी हैं। लेखकों और बुद्धिजीवियों से भी उम्मीद की जाती है कि वे बिना डरे अपनी राय रखें।” उन्होंने यह भी कहा कि जब तक देश में छुआछूत और श्रेष्ठता की धारणा बनी रहेगी, तब तक राष्ट्र निर्माण का कार्य पूरा नहीं हो सकता है। इससे पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नागपुर के समारोह में प्रधानमंत्री पद को लेकर खुलासा किया था। उन्होंने बताया था कि एक नेता ने उनके सामने प्रस्ताव रखा था कि अगर वे प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनका समर्थन किया जाएगा। हालांकि, उन्होंने यह खुलासा नहीं किया कि प्रस्ताव रखने वाले नेता किस पार्टी से थे। इस समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने यह किस्सा सुनाया। गडकरी ने कहा, एक घटना मुझे याद आती है। एक नेता थे। मैं उनका नाम नहीं बताऊंगा। उन्होंने मुझसे कहा कि अगर आप प्रधानमंत्री बनते हैं तो हम आपका समर्थन करेंगे। तब मैंने उनसे कहा कि आप मेरा समर्थन क्यों करेंगे? और मैं आपसे समर्थन क्यों लूंगा? प्रधानमंत्री बनना मेरे जीवन का लक्ष्य नहीं है। मैं अपनी संस्था और अपने दृढ़ विचारों के लिए प्रतिबद्ध हूं। मैं किसी पद के लिए उससे समझौता नहीं करूंगा। मेरा दृढ़ संकल्प मेरे लिए सर्वोपरि है। मुझे लगता है कि दृढ़ निश्चय होना ही लोकतंत्र की ताकत है।