शनिवार को एक बार फिर कांग्रेस में शामिल हो गए इमरान मसूद, जानिये कारण

इमरान मसूद पश्चिमी यूपी में कद्दावर नेताओं में गिने जाते हैं। मुस्लिम वोट बैंक के बीच उनकी पकड़ मजबूत है। कांग्रेस में भी स्थिति मजबूत थी, लेकिन जीत का समीकरण नहीं बन रहा था। इस कारण यूपी चुनाव से ऐन पहले पाला बदला। सपा में गए। टिकट नहीं मिला तो बसपा के साथ हो लिए। अब कांग्रेस में वापसी की है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभावशाली मुस्लिम चेहरा इमरान मसूद सालभर के भीतर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से होते हुए शनिवार को एक बार फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस से सपा जाते वक्त उन्होंने साफ किया था कि कांग्रेस में वह जितना वोट पाकर हार रहे हैं, उससे कम वोट पाकर लोग विधायक और सांसद बन रहे हैं। हालांकि, अब वह फिर कांग्रेस में वापस आ गए हैं। कांग्रेस के हालात तो वही हैं। कांग्रेस से सपा, बसपा और फिर कांग्रेस का एक चक्कर पूरा करने वाले इमरान मसूद अब स्थिति में बदलाव की बात कर रहे हैं। हालांकि, उनकी वापसी पर कई सवाल उठ रहे हैं। सवाल साफ है कि आखिर अब क्या सोचकर इमरान कांग्रेस में वापस आए हैं? क्या है उनकी कांग्रेस में वापसी के पीछे की गणित?
इमरान मसूद की पहचान एक ऐसे नेता के तौर पर है, जिनका अपना वोटबैंक है। यही वजह है कि वह प्रभावशाली नेताओं में गिने जाते हैं। हालांकि साल 2014 के बाद से बदली चुनावी राजनीति में उनका यह वोटबैंक उन्हें चुनाव जितवाने में नाकाफी रहा है। वजह है कि उनके चुनावी मैदान में उतरने से होने वाला ध्रुवीकरण। यह ध्रुवीकरण उनके उसी बयान के बाद से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी की बोटी-बोटी करने की बात कही थी। ऐसे में इमरान की तलाश किसी ऐसे दल की थी, जिसके वोट उनके अपने वोटबैंक में जुड़े और वोटों का आंकड़ा उनके जीत की इबारत लिख सके। इसी की तलाश में वह सपा गए थे।
माहौल सपा के पक्ष में था और आरएलडी उसके साथ थी। ऐसे में इमरान को लगा कि वहां जाने से उनकी बात बन जाएगी। लेकिन उन्हें चुनावी मैदान में ही नहीं उतारा गया। बसपा के पास भी अपना बेस वोट है तो वह बसपा में गए थे, लेकिन वहां भी उनकी दावेदारी को लेकर आनाकानी जैसी स्थिति रही। इसके बाद से ही इमरान बसपा से दूरी बनाने का इरादा करने लगे थे। आखिरकार बसपा ने खुद ही उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद इमरान के पास दो ही विकल्प बचे थे कि वह आरएलडी जाएं या कांग्रेस में दोबारा वापस आएं। संभावित इंडिया गठबंधन के स्वरूप के आकलन पर उन्होंने आरएलडी के ऊपर कांग्रेस को तरजीह दी।
विधान सभा चुनाव में सपा और आरएलडी का गठबंधन था। तब भी इमरान को टिकट नहीं मिला था। ऐसे में अगर वह आरएलडी जाते भी तो इस बात में संशय ही रहता कि उन्हें अगले साल प्रस्तावित लोकसभा चुनाव में मैदान में उतारा जाएगा। अगर सपा इमरान को टिकट देने के पक्ष में नहीं रहती तो शायद जयंत के लिए यह मुश्किल होता कि इमरान के टिकट की पुरजोर मांग कर सकें। ऐसे में इमरान को कांग्रेस ज्यादा बेहतर विकल्प लगी।
चूंकि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से इमरान के नजदीकी संबंध हैं तो उन्हें टिकट के लिए ज्यादा कोशिशें नहीं करनी होंगी। इसके अलावा I.N.D.I.A. गठबंधन में संभावित तौर पर सपा और आरएलडी दोनों के रहने की उम्मीद है तो उन्हें सपा और आरएलडी के अतिरिक्त वोट भी मिलेंगे, जिनसे इमरान को अपनी चुनावी राह आसान होती दिख रही है।
रशीद मसूद के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर इमरान ने अपने सियासी सफर की शुरुआत की तो उन्होंने रशीद की तरह ही अपना वोटबैंक संजोया। यही इमरान का सियासी कद तय करता रहा। इमरान ने कांग्रेस के टिकट पर दो बार लोकसभा चुनाव लड़ा है। पहली बार जब वह 2014 में चुनावी मैदान में थे तो 4 लाख 7 हजार वोट मिले थे और वह भाजपा के राघव लखनपाल से 55 हजार वोटों से हार गए थे। दूसरी बार जब 2019 में वह चुनाव लड़े थे तो सपा और बसपा के गठबंधन के बावजूद उन्हें 2 लाख 7 हजार वोट मिले थे। वह तीसरे नंबर पर रहे थे और सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी हाजी फजलुर्रहमान चुनाव जीते थे।
कांग्रेस के पास अपना कोई बेस वोटबैंक नहीं है। सभी जातियों से उसे कुछ वोट मिलते हैं। ऐसे में कांग्रेस वहां काफी कमजोर रहती है, जहां पर नेताओं का अपना व्यक्तिगत जनाधार नहीं होता। इमरान कांग्रेस की इस समस्या का समाधान हैं। चुनाव दर चुनाव उन्होंने साबित भी किया है कि उनके पास अपना वोटबैंक है, जो चुनावों में काफी अहम है। कांग्रेस इमरान के बूते ही पश्चिम यूपी के कई जिलों कुछ बेहतर करने की कोशिश में है। इस तरह का कोई और नेता कांग्रेस के पास है भी नहीं। ऐसे में पार्टी छोड़कर गए इमरान ने जब वापसी के लिए कांग्रेस का दरवाजा खटखटाया तो वहां से बिल्कुल भी आनाकानी नहीं हुई।