5 फीट के इस कलाकार का नाम हिंदी सिनेमा के सबसे छोटे कद वाले एक्टर्स में जरूर लिया जाता है, लेकिन टैलेंट में ये कई बड़े स्टार्स पर भारी थे। अपनी चुलबुली हंसी और जबरदस्त कॉमिक टाइमिंग से सबको हंसाने वाले मुकरी तकरीबन 600 फिल्मों में नजर आए।
छह दशक के अपने करियर में उन्होंने दिलीप कुमार से लेकर अमिताभ बच्चन तक हर दौर के बड़े स्टार के साथ काम किया। फिल्म शराबी का डायलॉग ‘मूंछें हों तो नत्थूलाल जैसी वर्ना न हो’ तो आपको याद ही होगा, ये इन्हीं पर फिल्माया गया था। 4 सितंबर 2000 को इनका निधन हो गया था।
इनका जन्म 5 जनवरी 1922 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के उरन में हुआ था। पिता का नाम हिसामुद्दीन उमर मुकरी था जो कि बच्चों को कुरान पढ़ाया करते थे और इनकी मां अमीना बेगम हाउसवाइफ थीं। माता-पिता ने इन्हें नाम दिया मोहम्मद उमर मुकरी।
मुकरी ने बताया था कि इनके पुरखे अफगानिस्तान से भारत आकर बसे थे। वो एक रूढ़िवादी कोंकणी मुस्लिम परिवार में जन्मे थे इसलिए किसी ने सोचा नहीं था कि मुकरी कभी अपने जमाने में इतने बड़े कॉमेडियन बनेंगे। मुकरी जब स्कूल में थे तभी इन्हें एक्टिंग करने का शौक चढ़ चुका था।
मुकरी के बड़े भाई मुंबई में रहा करते थे। उन्हीं के कहने पर मुकरी का मुंबई के अंजुमन इस्लाम नाम के स्कूल में दाखिला करवा दिया गया। इसी स्कूल में मुकरी की मुलाकात हुई हिंदी सिनेमा के भविष्य के एक बहुत बड़े सुपरस्टार से जो कि इस स्कूल में ही पढ़ाई कर रहा था।
ये कोई और नहीं बल्कि यूसुफ खान थे जिन्हें हम दिलीप कुमार के नाम से जानते हैं। दिलीप कुमार स्कूल में मुकरी से एक क्लास सीनियर थे जबकि दिलीप कुमार के भाई नासिर खान मुकरी के क्लासमेट हुआ करते थे, लेकिन नासिर से ज्यादा मुकरी की दोस्ती दिलीप कुमार से रही। अंजुमन हाई स्कूल में ही मुकरी को एक नाटक में काम करने का पहली बार मौका मिला था। इस नाटक में उन्होंने खान बहादुर का किरदार निभाया था।
इसी नाटक के बाद उन्होंने तय कर लिया था कि वो आगे जाकर एक्टिंग की दुनिया में नाम करेंगे। मुकरी ने लगातार उस नाटक में तीन साल वो किरदार निभाया और उन्हें स्कूल में बेस्ट एक्टर के अवॉर्ड से नवाजा गया।
मुकरी और दिलीप कुमार ने तय कर लिया कि वो फिल्मी दुनिया में किस्मत आजमाएंगे, लेकिन ये इतना आसान नहीं था क्योंकि दोनों ही जानते थे कि उनके परिवार कभी भी इस बात पर राजी नहीं होंगे कि वो फिल्मों में काम करें। हालांकि मुकरी और दिलीप कुमार ने फैसला कर लिया था कि कितनी भी दिक्कतें हों, वो फिल्मों में काम करने के अपने सपने को टूटने नहीं देंगे।
पढ़ाई पूरी करने के बाद मुकरी और दिलीप कुमार अपनी-अपनी जिंदगी में आगे बढ़े। कुछ समय तक परिवार के दबाव में मुकरी काजी बन गए। वो मदरसे में बच्चों को कुरान भी पढ़ाते थे। मुकरी इस काम से खुश नहीं थे क्योंकि वो तो एक्टिंग करना चाहते थे। इस काम को छोड़कर उन्होंने कुछ समय तक सरकारी नौकरी भी की।
वो दूसरे विश्व युद्ध का आखिरी दौर था। मुकरी का काम था कि वो लोगों को घर-घर जाकर काले पर्दे टांगने के लिए कहें। मुकरी ने जैसे-तैसे ये नौकरी की क्योंकि उनका मन अभी भी एक्टिंग की तरफ ही था। एक दिन मस्जिद में उनकी मुलाकात एक बार फिर अपने दोस्त दिलीप कुमार से हो गई
मुकरी ने अपने मन की बात दिलीप कुमार को बताई। दिलीप कुमार उन दिनों खुद भी फिल्मों में जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने किसी तरह मुकरी को महबूब खान और के.आसिफ जैसे फिल्ममेकर्स की फिल्मों में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम दिलवा दिया।
इस तरह फिल्मों में मुकरी की एंट्री हो गई। फिर जब दिलीप कुमार देविका रानी के प्रोडक्शन हाउस बॉम्बे टॉकीज से जुड़े तो उन्होंने मुकरी के लिए भी यहां जगह बनाई। कहा जाता है कि जब दिलीप कुमार ने मुकरी की मुलाकात देविका रानी से करवाई तो वो उनकी स्माइल और अंदाज से इम्प्रेस हो गईं। एक ओर जहां उन्होंने दिलीप कुमार को 1944 में ज्वार भाटा से बतौर हीरो लॉन्च किया।
वहीं, मुकरी की फिल्मों में बतौर आर्टिस्ट काम करने की इच्छा 1945 में फिल्म प्रतिमा से पूरी हुई। ये ज्वार भाटा के बाद बॉम्बे टॉकीज की दूसरी फिल्म थी। इस तरह हिंदी सिनेमा के पहले दौर के बेहतरीन कॉमेडियन मुकरी का फिल्मी सफर शुरू हुआ। इसके बाद मुकरी ने दिलीप कुमार की तकरीबन हर फिल्म में काम किया। इसके अलावा उन्होंने उस दौर के सुपरस्टार्स देव आनंद, राजकपूर, राजेंद्र कुमार और सुनील दत्त की फिल्में भी कीं।
एक जमाने में मुकरी की कॉमेडी के बिना फिल्में अधूरी रहा करती थीं। सिर्फ पुराने दौर के ही नहीं, मुकरी की कॉमेडी केमिस्ट्री नए जमाने के सुपरस्टार्स धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन के साथ भी खूब जमी। 1977 में वह फिल्म अमर, अकबर, एंथनी में नजर आए जिसमें उन्होंने तैय्यब अली का रोल निभाया। ये रोल काफी पॉपुलर हुआ था।
1984 में आई फिल्म शराबी मुकरी के करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई। ये किरदार था नत्थूलाल का। इस फिल्म के एक सीन में अमिताभ बच्चन उन्हें देखकर कहते हैं-मूंछें हों तो नत्थूलाल जैसी वर्ना न हों। मुकरी पर फिल्माया गया ये डायलॉग और सीन आज भी याद किया जाता है।
मुकरी का नाम हिंदी सिनेमा के उन सितारों में शामिल है जिनका फिल्मी करियर काफी लंबा रहा है। उन्होंने तकरीबन 600 फिल्में कीं। अब तक शक्ति कपूर ने 700 से ज्यादा फिल्में की हैं। इसके अलावा ललिता पवार ने अपने फिल्मी करियर में तकरीबन 650 फिल्मों में काम किया था। 1994 में आई बेताज बादशाह मुकरी की आखिरी फिल्म थी। फिल्म में उन्होंने प्रिंसिपल का किरदार निभाया था।
ये बात कम ही लोग जानते हैं कि मुकरी ने केवल हिंदी फिल्मों में ही काम नहीं किया है बल्कि वो एक टीवी सीरियल में भी नजर आए थे। उन्होंने 1990 में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले टीवी सीरियल भीम भवानी में काम किया था। इस शो में बीते दौर के कई दिग्गज कलाकारों ने काम किया था जिनमें अशोक कुमार, उत्पल दत्त, टुनटुन, जगदीप, राजेंद्र नाथ और महमूद के नाम शामिल थे।
मुकरी को एकता कपूर ने अपने एक टीवी शो में रोल ऑफर किया था, लेकिन उन्होंने इसे करने से मना कर दिया था। दरअसल, 1995 के बाद मुकरी की तबीयत ठीक नहीं रहा करती थी इसलिए वो किसी भी प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने से बचने लगे। खुद जितेंद्र ने भी उनसे अपनी बेटी एकता के टीवी शो में काम करने की गुजारिश की थी, लेकिन मुकरी ने उनसे कह दिया था- मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से किसी का काम खराब हो इसलिए मैं इस ऑफर को स्वीकार नहीं कर सकता
मुकरी की पर्सनल लाइफ की बात करें तो 1950 में उन्होंने मुमताज से शादी की थी। ये अरेंज मैरिज थी। मुमताज हाउसवाइफ थीं। दोनों के पांच बच्चे हुए जिनमें तीन बेटे-नसीर, बिलाल और फारुख और दो बेटियां-नसीम और अमीना हैं। पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए बेटे नसीर ने कुछ फिल्मों में सपोर्टिंग रोल्स किए थे। इसके अलावा वो कई दिग्गज डायरेक्टर्स के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम कर चुके हैं। मुकरी के दूसरे बेटे फारुख भी दिल और पत्थर नाम की फिल्म में एक्टिंग कर चुके हैं। वहीं, तीसरे बेटे बिलाल मुकरी क्या करते थे, इसकी कोई जानकारी सामने नहीं आई।
मुकरी की दोनों बेटियां भी फिल्मों में ही करियर बनाना चाहती थीं। अमीना ने 1976 में नया जन्म नाम की एक फिल्म साइन की थी लेकिन ये कभी बन ही नहीं पाई। इसके बाद अमीना के करियर की कोई जानकारी नहीं है। वहीं, मुकरी की दूसरी बेटी नसीम बॉलीवुड में थोड़ी पहचान बनाने में कामयाब हुईं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट की थी। साथ ही अक्षय कुमार, शिल्पा शेट्टी और सुनील शेट्टी स्टारर धड़कन में उन्होंने कैमियो किया था। उन्होंने इस फिल्म के डायलॉग भी लिखे थे। इसके अलावा नसीम ने ‘हां मैंने भी प्यार किया’ और ‘स्कूल’ जैसी फिल्मों के अलावा कुछ टीवी सीरियल्स के डायलॉग लिखे थे।
बेटी नसीम ने कुछ साल पहले दिए एक इंटरव्यू में अपने पिता मुकरी के आखिरी दिनों का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था- मेरे पिता फिल्म इंडस्ट्री के प्रति अपना विश्वास खो चुके थे। वो इस बात से नाखुश थे कि आज के दौर में कॉमेडियंस को काम और सम्मान दोनों नहीं मिल रहा। वो कहते थे-जो होगा सो होगा, क्या कर सकते हैं? आजकल के दौर में हीरो ने फिल्मों को हाईजैक कर लिया है फिर चाहे वो कॉमेडी, रोमांस या विलेन के रोल क्यों न हों। इस दौर में कॉमेडियंस को वो सम्मान नहीं मिल रहा, जिसके वो हकदार हैं।
नसीम ने आगे कहा था- फिल्म ‘अमर, अकबर, एंथनी’ में पापा पर दो गाने फिल्माए गए थे-पर्दा है पर्दा और तैय्यब अली प्यार का दुश्मन। ये दोनों ही गाने हिट थे। लोगों ने उन्हें बहुत प्यार दिया। मुझे याद है कि मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा उन्हें अपना लकी चार्म मानने लगे थे, लेकिन जब उन्होंने पापा को आगे अपनी दो फिल्मों में साइन नहीं किया तो वो फ्लॉप हो गईं।
इसके बाद प्रकाश मेहरा ने फिल्म लावारिस बनाई, लेकिन उसमें भी पापा नहीं थे। लावारिस की रिलीज को दो-तीन दिन बचे थे। प्रकाश मेहरा को इस बात का एहसास हुआ कि मुकरी साहब तो फिल्म में हैं ही नहीं। उन्होंने तुरंत पापा को कॉल किया। पापा ने प्रकाश मेहरा से कहा- बोलिए कब आना है? अभी आ जाऊं? इसके बाद अमिताभ बच्चन और पापा पर एक सीन फिल्माया गया। लावारिस सुपरहिट रही और वो सीन भी बेहद पसंद किया गया
बेटी नसीम ने आगे कहा था- मेरे पिता सख्त मिजाज थे और बचपन में हमें फिल्में नहीं देखने देते थे। घर का माहौल बेहद धार्मिक हुआ करता था। मैं उनके साथ अक्सर शूटिंग पर जाया करती थी। जब थोड़ी बड़ी हुई तो पापा से छुपकर चाचा-चाची के साथ फिल्म देखने चली जाया करती थी। उन्हें हॉर्स रेस का भी काफी शौक था। हर रविवार वो रेस देखने जरूर जाया करते थे।
मुकरी का 4 सितंबर 2000 को 78 साल की उम्र में निधन हो गया था। हार्ट अटैक और किडनी फेल्योर की वजह से मुंबई के लीलावती अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली थी। मुकरी के अंतिम समय में उनके जिगरी दोस्त दिलीप कुमार और उनकी पत्नी सायरा बानो मौजूद थे। मुंबई में ही उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया गया था।