कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोगों ने इतिहास में सम्राट अशोक की भूमिका को कमतर आंकने की पुन : कोशिश की है। ये वे लोग हैं जो दूसरे के महत्त्व को कम बता कर अपना महिमा मंडन करते हैं। स्वार्थपूर्ण अहंकार से ग्रस्त लोग समाज का व्यापक हित कभी नहीं देखते और सत्य से मुँह फेर लेते हैं। ये दो कौड़ी के बिकने वाले लोग सूरज पर थूकने की कोशिश करते हैं और अपना मुँह झुलसा लेते हैं। ऐसे कुंठा ग्रस्त लोगों को जान लेना चाहिए कि भारत कि विश्व पटल पर जो पहचान है वह बुध्द और अशोक के कारण ही है। इन लोगों को चाहिए कि अपनी अल्पबुध्दि और समय को सत्यान्वेषण में लगाए ताकि कुछ जान सके और इंसान बन सकें।
सम्राट अशोक का नाम भारतीय इतिहास के महान शासको तथा योद्धाओं में अग्रणी है। ईसा पूर्व सन 272 ई में अशोक ने मगध का राज्य संभाला था। इसके पश्चात अपने 40 वर्षो के शासनकाल में उन्होंने जो ख्याति अर्जित कि वह अतुलनीय है। वे एक ऐसे महानतम सम्राटों के रूप में विख्यात हैं जिन्होंने केवल मगध में ही नहीं अपितु भारत के कोने – कोने में सत्य, न्याय, प्रज्ञा और अंहिसा का प्रचार – प्रसार किया। अशोक मौर्या साम्रज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्या के पौत्र तथा बिन्दुसार के पुत्र थे। अशोक के बचपन विकास तथा शिक्षा – दीक्षा उनके पिता के महल (पाटलिपुत्र ) में ही हुई। पाटलिपुत्र उस समय मगध राज्य कि राजधानी थी।
262 ई . पूर्व अर्थात राज्य सभालने के 10 वर्ष बाद उन्होंने कलिंग राज्य को अपनी सीमा में मिलाने का निश्चय किया क्यों कि कलिंग उनके अपने साम्राज्य विस्तार कि इच्छा के मध्य अड़चन बना हुआ था। उस समय कलिंग (आधुनिक उड़ीसा) भी मगध कि भांति संपन्न राज्यों में से एक था। कलिंग के युध्द में अशोक ने वीरतापूर्वक नेतृत्व किया। उसकी सेना कलिंग कि सेना को रौंदती चली गयी। उस युध्द में अशोक कि सेना कलिंग पर भारी पड़ी और अंतत: अशोक विजयी हुआ तथा कलिंग का साम्राज्य मगध में मिला लिया गया। परन्तु इतिहास के पन्नो पर भविष्य और कुछ लिखा जाना था। इस महायुद्ध और कलिंग पर अशोक कि ऐतिहासिक विजय ने अशोक के पूरे जीवन को ही नहीं वरन सम्पूर्ण एशिया महादीप के सामाजिक, राजनैतिक, दार्शनिक, आध्यात्मिक, और प्रशासनिक परिद्रश्य को ही परिवर्तित कर दिया। कलिंग युध्द में भयानक रक्तपात, औरतों, बच्चो तथा युवकों के वध के वीभत्स द्रश्य ने उसकी आत्मा को झकझोर दिया। उस समय एक बौद्ध भिक्षु के उपदेशों का अशोक के ह्रदय पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उसकी समस्त जीवन शैली ही बदल गयी। कलिंग के युध्द के उपरांत ह्रदय परिवर्तन ने उसके व्यक्तित्व को एक नया स्वरूप प्रदान किया। वह बौद्ध – भिक्षुओ के उपदेशों से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने बौद्ध धर्म को अपना लिया। इसके बाद उसने अपने समस्त राज्य और विदेशों में भी बौद्ध धर्म के उपदेशों व शिक्षा का प्रचार – प्रसार करने का संकल्प किया। उसने तय किया कि वह भविष्य में युध्द , रक्तपात हिंसा से नहीं अपितु प्रेम और शांति से लोगों के ह्रदय पर राज्य करेगा। उसने बौध्द धर्म कि शिक्षा को अपने व्यकितगत जीवन में उतरने कि चेष्ठा कि। उसका मन-मस्तिक मानव कल्याण के लिए व्यग्र हो उठा। अपने शासनकाल में उसने मनुष्यो तथा जानवरों के लिए हजारों चिकित्सालय खुलवाए। उसने पशु हत्या पर रोक लगा दी। उसने नैतिकतापूर्वक आचरण हेतु 14 नियम बनाये तथा उन नियमों को राज्य भर के पत्रों और खंभो पर लिखवा दिया ताकि लोग उन्हें पढ़कर नैतिकतापूर्वक आचरण करें और जिससे सभी खुशहाल हो सके तथा एक उन्नत शांतिपूर्वक एवं नैतिक समाज का निर्माण हो सके। ये नियमों से युक्त खंबे ही अशोक स्तूपों के नाम से प्रसिध्द हैं। उसने बौध्द धर्म कि शिक्षाओं का का पूरे तौर पर पालन किया। एक सम्राट के रूप में वह बड़ा न्यायप्रिय और दयालु था। जनता किसी भी समय उसका व्दार खटखटा सकती थी। वह उनकी शिकायतें गंभीरता पूर्वक सुनकर स्वयं फैसला देता था।
अशोक सामाजिक न्याय का पुरोधा था I उसके शासन की गुणवत्ता उच्च कोटि की थी I वह सच्चे अर्थो में अपनी प्रजा से पुत्रवत स्नेह करता था I उसने अपना समूचा जीवन मानव मात्र की सेवा में लगा दिया I एक कल्याणकारी सम्राट के रूप में अशोक का नाम सारे संसार में विख्यात हो गया था I यूरोप तथा अफ्रीका के कई देशों ने उसके राजदरबार में अपने राजदूत भेजे I उन सभी देशों ने अशोक की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया I वह भारत का ही महानतम शासक नहीं था I वरन समूचे विश्व इतिहास में ऐसा कोई दूसरा महान शासक नहीं मिलता है I अशोक के धम्म का अर्थ शील आधरित नैतिक आचरण था I यह असल में राजा-प्रजा से लेकर शासन से जुड़े अधिकारीयों के कर्तव्य और आचरण की ऐसी आचार सहिंता थी I जिसके पालन करने से ही स्वस्थ समाज का निर्माण संभव था I अशोक ने अपने 12वे दीर्घ शिलालेख में लिखवाया है I कि देवता भी अपने प्रिय दान या सम्मान को इतना महत्वपूर्ण नहीं मानते , जितना इस बात को कि सभी सम्प्रदायों की मूलभावना का प्रचार प्रसार हो इसके लिए बोलचाल में संयम बहुत जरूरी है I शारीरिक और वाणी हिंसा अनैतिक है I उचित यही होगा कि लोग मौके-बेमौके पर अपने संप्रदाय की प्रशंसा और दूसरे संप्रदायों की निंदा न कर या कभी निंदा हो भी तो संयम के साथ I हर अवसर पर दूसरे संप्रदायों का आदर करना चाहिए I अशोक गंभीर प्रकृति का साहसी और बड़ा चरित्रवान शासक था I उसके चरित्र की महानता इसी बात से स्पष्ट हो जाती है कि युद्ध लोलुप काल में उसने शांति और अहिंसा का मार्ग अपनाया I उसके काल में बौद्धधर्म के मानने वाले नास्तिक समझे जाते थे I उसने लोगों के मन की बिना परवाह किए बौद्धधर्म अपनाने का साहस किया I उसने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का पुरे तौर पर पालन किया I एक सम्राट के रूप में वह बड़ा न्यायप्रिय और दयालु था I जनता किसी भी समय उसका द्वार खटखटा सकती थी I वह उनकी शिकायतें सुनकर स्वंय फैसला देता था I अशोक के चरित्र को समझने के लिए बुद्ध धम्म क्या है ,यह जानना आवश्यक है I बुद्ध का अर्थ है जागृति मस्तिष्क I बुद्धत्व एक अर्जित एक योग्यता है अर्थात प्रयास पूर्वक कोई भी व्यक्ति बुद्ध बन सकता है। बुद्ध धम्म जीवन जीने सही मार्ग है जिसे सामाजिक विज्ञान कहते हैं I
( लेखक जाने माने चिंतक, कवि, साहित्यकार हैं)