सुबह 9 बजे का वक्त। जगह मुंबई का उन्नत नगर, ब्लॉक नंबर- 43/341 के दूसरी मंजिल पर दो कमरों वाला घर। यहां अंदर घुसते ही धड़ से अलग गर्दन, खून से सना सिर, कटा हुआ हाथ पड़ा हुआ है।
केमिकल की बदबू से सिर घूम जाता है। मैं आगे बढ़ने से हिचकिचाता हूं तभी वहां मौजूद एक शख्स मेरी घबराहट भांप जाता है। वो कहता है-डरो नहीं, ये सब नकली है।
मेरी जान में जान आती है फिर वो अपना परिचय देते हुए कहता है-मैं अमोद दोशी हूं और ये मेरा घर नहीं, स्टूडियो है। मैं 20 सालों से बॉलीवुड में काम कर रहा हूं। आप अक्सर फिल्मों या वेब सीरीज में कलाकारों के चेहरे या शरीर पर मार के निशान, घावों से बहता खून, कटे हुए सिर और हाथ-पैर देखते होंगे। ये सब प्रोस्थेटिक मेकअप का कमाल होता है। मैं प्रोस्थेटिक डिजाइनर हूं और अपनी टीम के साथ मिलकर ये काम करता हूं।
ये बात सुनकर मेरी जिज्ञासा और बढ़ जाती है तो वो मुझे प्रोस्थेटिक की दुनिया की कई बातें बताते हैं और अपना स्टूडियो भी दिखाते हैं।
पहला- अमोद बताते हैं, मेकअप, ब्यूटी के मुकाबले, प्रोस्थेटिक एक अलग और बड़ा सब्जेक्ट है। इसके लिए नॉर्मल मेकअप आना जरूरी नहीं है। प्रोस्थेटिक मेकअप करने से पहले किरदार और लोकेशन के बारे में पूरी रिसर्च करनी पड़ती है।
आम तौर पर प्रोजेक्ट के स्टोरी राइटर और डायरेक्टर, लोकेशन और किरदार को ध्यान में रखकर तय करते हैं कि किस सीक्वेंस पर किस तरह का प्रोस्थेटिक का इस्तेमाल होगा।
किरदार और सीन की लोकेशन के हिसाब से हर बारीक चीज पर रिसर्च की जाती है। जैसे कि राजस्थान के आदमी के लुक को काॅपी करना है, तो हाव-भाव कैसा होता है। कितनी देर वो धूप में रहता है। चेहरे की बनावट और रंग कैसा होता है। इन सभी पैमानों पर रिसर्च करने के बाद क्ले की मदद से मोल्ड तैयार करते हैं।
दूसरा- अमोद कहते हैं- प्रोस्थेटिक मेकअप में हर लुक के लिए एक अलग मोल्ड बनाना पड़ता है। कुछ मोल्ड सीन के सिर्फ एक-दो शॉट के लिए होते हैं। हर दिन एक जैसा चेहरा रखने के लिए सिलिकॉन / रबर का बेस बनाते हैं। ये बिना नाप के नहीं बन सकता है। एक बेसिक प्रोस्थेटिक किरदार के स्किन को बनाने में तकरीबन 7 लेयर्स सिलिकॉन बेस लगते हैं। इस वजह से साइड इफैक्ट होने का कोई चांस नहीं है।
तीसरा- जिस चेहरे का हमें मोल्ड बनाना होता है, पहले उसका इम्प्रैशन बनाते हैं। फिर फिल्म में स्टार का जैसा किरदार होता है, उसके हिसाब से प्रोस्थेटिक प्रोपोरशन, क्ले प्रोपोरशन को सही तरीके से लगाकर एक सिलिकॉन मोल्ड तैयार करते हैं। क्ले से मोल्ड बनाने के बाद किरदार के लुक के हिसाब से डाय बनता है। इसे खुली जगह में बनाया जाता है क्योंकि इसमें कई केमिकल यूज होते हैं। जब वो सूख जाता है, फिर उस पर कलरिंग और बाकी काम होते हैं।
अमोद दोशी इसकी काॅस्टिंग के बारे में बताते हैं- प्रोस्थेटिक मेकअप की पूरी किट 20-30 लाख होती है। सीन को ध्यान में रखकर कॉस्टिंग करते हैं। जो प्रोडक्ट इस प्रोसेस में इस्तेमाल करते हैं, उसे एक बार यूज करने के बाद फेंक दिया जाता है। काफी चीजें हम केमिकल्स का इस्तेमाल करके प्रिजर्व करते हैं।
हाल ही में उड़िया फिल्म की जिसमें मुझे 3 दिन के काम के लिए 7 लाख रूपए मिले। ये मेरे लिए अब तक का सबसे बड़ा अमाउंट था।
कई बार एक्टर्स प्रोस्थेटिक के लिए कमिटेड होने के बावजूद लुक में बदलाव करने की रिक्वेस्ट करते हैं। ऐसी सिचुएशन में टीम उस एक्टर को प्रोस्थेटिक लगाने के लिए कन्विंस करती है।
इस सिचुएशन के बारे में अमोद बताते हैं- ज्यादातर मैं पहले ही आर्टिस्ट के बारे में अच्छे से स्टडी कर लेता हूं और फिर उसे किस तरह से अपने काम को लेकर कन्विंस करना है, उस पर वर्क शुरू कर देता हूं।
एक ही आदमी को प्रोस्थेटिक की मदद से अलग-अलग किरदार को लुक देना भी बहुत कठिन काम होता है। अगर कोई सेलिब्रिटी या हिस्टोरिकल किरदार हो तो थोड़ा आसान होता है क्योंकि उनकी छवि हमारे दिलों-दिमाग में बसी हुई है लेकिन कहानी के हिसाब से किसी आदमी को बुढ़ापे वाले किरदार में ढालना बहुत कठिन होता है।
प्रोस्थेटिक से पहले कॉन्ट्रैक्ट साइन करने का सिस्टम मैंने ही शुरू किया था। मेरा ये फॉर्मेट कई प्रोडक्शन हाउस में भी इस्तेमाल किया जाता है। एक किस्सा हुआ था मेरे साथ जहां एक टीवी शो के लिए मैंने काम किया था। उस शो के एक आर्टिस्ट का अच्छा अनुभव नहीं रहा। वो कुछ 12-14 घंटे तक धूप में खड़ा रहा जिससे पसीने की वजह से उसे छोटा सा रिएक्शन हो गया। उस आर्टिस्ट ने मुझ पर और प्रोडक्शन हाउस पर काफी ब्लेम किए। यहां तक कि उसने पुलिस स्टेशन में जाकर हमारे खिलाफ कंप्लेंट तक फाइल कर दी। उसने हम पर प्रोस्थेटिक की वजह से उसका चेहरा खराब होने का इल्जाम लगाया। हालांकि हमारे लॉयर्स की मदद से कई सारे प्रूव्स देकर हम उस सिचुएशन से बाहर आए। उसके बाद से हमने एक्टर्स से पहले कॉन्ट्रैक्ट करने का फैसला लिया।
अमोद ने कहा, पहले विदेशों से प्रोस्थेटिक मेकअप आर्टिस्ट आया करते थे जोकि बहुत कॉस्टली होते थे। उन्हें सिर्फ बड़े फिल्ममेकर्स ही अफोर्ड कर पाते थे। कई बार तो उनके प्रोडक्ट हमारे देश की क्लाइमेट को सूट भी नहीं करते थे, मेकर्स को इतने पैसे देने के बावजूद ग्राफिक्स का इस्तेमाल करना पड़ता था। सच्चाई ये है कि आज जो हम भारत में टेक्निक का इस्तेमाल कर रहे हैं वो हॉलीवुड में 1975 में हुआ करता था। इसी वजह से मैंने इसकी एजुकेशन देनी शुरू की। विदेशों में पढ़ाई करना सबके लिए अफोर्डेबेल नहीं हैं।
अमोद दोशी एक्टर बनना चाहते थे, लेकिन एक दिन प्रोस्थेटिक मेकअप देख कर उनका इरादा बदल गया। वो कहते हैं- दसवीं की परीक्षा देने के बाद, मेरे पास दो महीने का वक्त था रिजल्ट्स आने में। इस दौरान, मैंने एक अखबार में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा एक विज्ञापन देखा। फिर मैंने एक्टिंग क्लासेस ज्वाइन कर ली।
एक दिन, एक्टिंग क्लास में मेकअप का डेमो हुआ जिसमें मेरे चेहरे पर एक पुणे के फेमस आर्टिस्ट ने प्रोस्थेटिक मेकअप किया – मेकअप की मदद से मेरा चेहरा जला हुआ दिखाया। जब मैंने अपने आपको मिरर में देखा तो मेरी उसमें दिलचस्पी बढ़ गई। उस दिन से मैंने इस फील्ड में आने का निर्णय लिया, इस फील्ड में काफी रिसर्च की, काफी कुछ सीखा। मैंने प्रोस्थेटिक गुरु विक्रम गायकवाड़ के साथ सीखने के लिए 2 साल इंतजार किया। इंतजार का फल मीठा था, मुझे 7 साल तक उनके साथ बतौर असिस्टेंट काम करने का मौका मिला।
1996 में मुझे एक मराठी प्रोजेक्ट के लिए 101 रूपए मिला था। पुणे छोड़कर मुंबई आने के वक्त मुझे वहां एक दुकानदार ने 101 रूपए और कलरपेड गिफ्ट किया था। आज तक मेरी तिजोरी में ये दोनों चीज संभाल कर रखी हैं। अब तक 100 से ज्यादा फिल्मों का हिस्सा रह चुका हूं जिसमें 35 हिंदी फिल्में की हैं।
अमोद ने बताया, भारत में सबसे पहली प्रोस्थेटिक मेकअप एकेडमी मेरी बेटी के नाम पर ‘ओवी प्रोस्थेटिक एकेडमी’ है। इसकी शुरुआत 6 साल पहले हुई थी।
आमिर खान बहुत टैलेंटेड इंसान हैं। मुझे याद है मेरे एक दोस्त ने मुझे आमिर सर के बारे में बताया था। उन्होंने कहा कि सर अपनी एक फिल्म के लिए प्रोस्थेटिक आर्टिस्ट ढूंढ रहे हैं। जब मैं पहली बार उन्हें ट्रायल देने के लिए तो काफी अच्छा अनुभव रहा।
उन्होंने मेरा काम देखा और फिर वही प्रोस्थेटिक मेकअप मुझ पर आजमाने के लिए कहा। मेकअप करने के बाद उन्होंने मुझसे वो मेकअप उतरवाया और फिर उसका परिणाम देखकर मेरे काम की तारीफ की। उनको बस यही देखना था कि मेरे प्रोडक्ट्स का कोई साइड इफेक्ट तो नहीं।
खास बात ये थी कि उन्हें उन प्रोडक्ट्स के नाम तक पता थे जिसके बारे में ज्यादातर लोगों को पता नहीं होता। उन्होंने फिल्म ‘लगान’ के वक्त वह चीजें देखी थी। ‘फना’ के दौरान उन्होंने कई सारी सलाह दी जिसे हमने मिलकर पूरा किया। उसके बाद तो उन्होंने कई फिल्मों में मेरा नाम सजेस्ट किया।
‘धूम 2’ के दौरान जब लोग उनसे उनके कटे हुए बालों के बारे में पूछते तो वह कहते.. ना ये तो प्रोस्थेटिक हैं, तब अपने काम को लेकर बहुत संतुष्टि मिलती थी।