पंजाब में आम आदमी पार्टी ने जो कर दिखाया है वो वास्तव में तारीफ के काबिल है। आम आदमी पार्टी जिसका वजूद ही एक दशक से कम का है उसके हाथों में दो राज्य आ गए हैं। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में वर्ष 2014 में पहली बार अपनी सरकार बनाई थी। इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में उसके पंजाब से जीतकर कैडिडेट आए थे जिसमें से एक खुद भगवंत सिंह मान थे, जिनको पार्टी ने सूबे का मुख्यमंत्री घोषित किया था।
दिल्ली में लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत से सरकार बनाकर इस पार्टी ने जो इतिहास रचा था वही आज पंजाब में देखने को मिल रहा है। इस चुनाव से आम आदमी पार्टी का कद पूरे देश में बढ़ गया है। एक तरह से देखा जाए तो आज आम आदमी पार्टी कांग्रेस के बराबर आकर खड़ी हो गई है। कांग्रेस के पास छत्तीसगढ़ और राजस्थान है वहीं आम आदमी के पास दिल्ली और पंजाब है। हालांकि कांग्रेस को नेशनल पार्टी होने का तमगा जरूर हासिल है वहीं आम आदमी पार्टी एक रीजनल पार्टी है।
पंजाब के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 42.1 फीसद वोट हासिल होते दिखाई दे रहे हैं। ये वोट प्रतिशत उतना ही है जितना उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा को मिलता दिखाई दे रहा है। वहीं यदि पंजाब में अब तक सरकार चला रही कांग्रेस के वोट प्रतिशत की बात करें तो वो महज 22.9 पर है। इसके अलावा शिरोमणी अकाली दल जिसकी कभी सूबे में सरकार थी उसका वोट प्रतिशत 18.23 है। भाजपा के वोट प्रतिशत की बात करें तो ये महज 6.5 है। इससे ज्यादा सूबे में अन्य का वोट प्रतिशत है। ये सिर्फ एक आंकड़ा ही नहीं है बल्कि इसके पीछे आम आदमी पार्टी की भविष्य की ताकत है।
ये जीत केवल यहीं तक ही नहीं है बल्कि इसके बाद आम आदमी पार्टी की मौजूदगी राज्य सभा में भी बढ़ जाएगी। आपको बता दें कि पंजाब से सात सांसद राज्यसभा के लिए छह वर्ष के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं। मौजूदा समय में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा में तीन सांसद हैं, जो आने वाले समय में दस तक हो सकते हैं। वहीं कांग्रेस के राज्यसभा में सांसदों की बात करें तो उसके 34 सांसद हैं।
पंजाब में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों के सामने बड़े से बड़े धुरंधर धराशायी हो गए हैं। मौजूदा मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी, प्रकाश सिंह बादल, सुरजीत सिंह बादल, बिक्रम सिंह मजीठिया, नवजोत सिंह सिद्धू, केप्टन अमरिंदर सिंह का नाम उन लोगों की सूची में शामिल है जो इस चुनाव में हार गएहैं।