सुनील दत्त कैसे बने हीरो , पूरी खबर पढ़िए

एक्टर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, राजनेता और सोशल वर्कर सुनील दत्त की आज 18वीं डेथ एनिवर्सरी है। भारत-पाकिस्तान के दंगों में बाल-बाल बचे दत्त साहब का हीरो बनने का सफर खुद भी फिल्मी हैं। रेडियो के लिए दिलीप कुमार का इंटरव्यू लेने का इंतजार करते हुए इनको पहली फिल्म मिली थी। लेकिन जब ये फिल्मों में आए तो हुनर ने इन्हें ज्यादा दिनों तक कामयाबी का मोहताज नहीं रहने दिया। फिल्मों के अलावा दत्त साहब राजनीति का भी अहम हिस्सा रहे, लेकिन बेटे संजय दत्त के बॉम्ब ब्लास्ट में फंसने से इनकी खूब बदनामी हुई। दूसरों को हौसला देने वाले बेबस सुनील दत्त ने बेटे को बचाने के लिए अपना घर, गाड़ियां सब बेच दिया।
सुनील दत्त का जन्म 6 जून 1929 को नाका खुर्द, पंजाब के झेलम जिले में हुआ था। ब्राह्मण परिवार में दीवान रघुनाथ और कुलवंती देवी के घर जन्म के समय सुनील को बलराज दत्त नाम मिला। महज 5 साल की उम्र में उन्होंने पिता को खो दिया। 18 साल की उम्र में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय उन्हें खूब संघर्ष करना पड़ा। सभी हिंदुओं को भगाया जा रहा था और उनका बेरहमी से कत्ल किया जा रहा था। उस समय उनके पिता के दोस्त याकूब ने उनके परिवार को अपने घर में शरण देकर सबकी जान बचाई थी
बंटवारा हुआ तो सुनील दत्त का पूरा खानदान पाकिस्तान चला गया, लेकिन उनका परिवार भारत में रह गया। सुनील अपने परिवार के साथ हरियाणा के यमुना नगर स्थित मंडोली गांव में आकर बस गए। 1947 में सुनील ने एक साल तक बतौर हवलदार आर्मी में नौकरी की। लखनऊ से ग्रेजुएशन कर वो मुंबई के जय हिंद कॉलेज गए। घर खर्च चलाने के लिए सुनील ट्रांसपोर्टेशन कंपनी ‘B.E.S.T’ में नाइट शिफ्ट की नौकरी करने लगे। यहां वो सभी बसों की देखरेख करते थे। पैसों की कमी के कारण वो कुर्ला के एक छोटे से कमरे में रहा करते थे।
कॉलेज के दिनों में सुनील दत्त ने थिएटर में दिलचस्पी दिखाई। उनकी दमदार आवाज और उर्दू में गहरी पकड़ के चलते उन्हें खूब तारीफें मिलती थीं। प्ले के दौरान सुनील की आवाज से इम्प्रेस होकर रेडियो प्रोग्रामिंग हेड ने उन्हें रेडियो चैनल में नौकरी का ऑफर दिया। सुनील झट से राजी हो गए। नौकरी के दौरान वो फिल्मी दुनिया के सितारों का इंटरव्यू लिया करते थे जिसके लिए उन्हें 25 रुपए मिलते थे।
सुनील दत्त एक बार उस समय की सबसे पॉपुलर एक्ट्रेस रहीं नरगिस का इंटरव्यू लेने पहुंचे। वो इस समय इतने नर्वस थे कि नरगिस से कोई सवाल ही नहीं पूछ सके। घबराए हुए दत्त साहब को नरगिस ने शांत करवाया और इंटरव्यू हो सका। किसे पता था कि रेडियो के लिए इंटरव्यू ले रहा ये आम लड़का एक दिन नरगिस का हमसफर बन जाएगा।

सबसे पहले सुनील दत्त ने निम्मी का इंटरव्यू किया था। दिलीप कुमार, देव आनंद जैसे कई बड़े सितारे भी उनके मेहमान बने और ये सिलसिला महीनों तक जारी रहा। इस सिलसिले में कई बार सुनील का फिल्मों के सेट पर भी जाना होता था।

एक दिन दिलीप कुमार का इंटरव्यू लेने पहुंचे सुनील दत्त पर डायरेक्टर रमेश सहगल की नजर पड़ी। उनके लुक और आवाज से इम्प्रेस होकर रमेश ने उन्हें फिल्मों में हाथ आजमाने को कहा। सुनील राजी हो गए और तुरंत दिलीप साहब की कॉस्ट्यूम पहनकर स्क्रीन टेस्ट दे दिया। सुनील का अभिनय रमेश को इतना पसंद आया कि उन्होंने वहीं अगली फिल्म रेलवे प्लेटफॉर्म का ऑफर दे दिया।
डायरेक्टर रमेश सहगल ने ही बलराज दत्त को स्क्रीन नाम सुनील दिया था। दरअसल उस समय बलराज साहनी पहले ही इंडस्ट्री में मशहूर थे। ऐसे में कन्फ्यूजन से बचने के लिए रमेश ने बलराज से नाम बदलकर सुनील कर दिया
रेलवे प्लेटफॉर्म के बाद सुनील दत्त फिल्म कुंदन, एक ही रास्ता, राजधानी, किस्मत का खेल में आए, लेकिन इन्हें असल पहचान 1957 की फिल्म मदर इंडिया से मिली। फिल्म में वो नरगिस के बेटे के रोल में थे।
मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान एक बार सुनील अपनी बहन और उसके दो बच्चों के साथ परेशान बैठे थे। उस समय सुनील स्ट्रगलिंग हीरो थे और नरगिस स्टार। नरगिस ने उन्हें परेशान देखा तो पास बुला लिया। परेशानी का कारण पूछा तो जवाब मिला, मेरी बहन को गले में ट्यूमर है और मैं मुंबई में किसी बड़े डॉ को नहीं जानता। जब रात को सुनील घर पहुंचे तो उनकी बहन ने बताया कि अगले दिन उनका ऑपरेशन है। वो ये सुनकर दंग रह गए। उन्होंने पूछा कौन करवा रहा है तो जवाब मिला, आज नरगिस घर आई थीं, वो ही मुझे अस्पताल ले गईं। अब कल टेस्ट के बाद वो ही मेरा ऑपरेशन करवा रही हैं। नरगिस के बड़प्पन से सुनील उन्हें चाहने लगे। शूटिंग के दौरान दोनों की दोस्ती भी हो गई।
मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान सेट पर आग लग गई जिसमें नरगिस बुरी तरह फंसी। दत्त साहब ने तुरंत अपनी जान की परवाह किए बिना नरगिस की जान बचाई। उस समय नरगिस और राज कपूर का रिश्ता खत्म ही हुआ था। इस मदद से नरगिस काफी इंप्रेस हुई थीं। जब आग से जले सुनील दत्त का अस्पताल में इलाज चल रहा था तो नरगिस अक्सर उनसे मिलने पहुंचती थीं। नरगिस सुनील को उनके असली नाम से नहीं बल्कि मदर इंडिया के रोल बिरजू नाम से ही पुकारती थीं।
एक दिन नरगिस सुनील दत्त से मिलने उनके घर आईं। जब वो निकलने को हुईं तो सुनील ने घर छोड़ने को कहा। दोनों कार से नरगिस के घर की तरफ रवाना हुए। रास्ते में सुनील साहब ने कहा ‘मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं।’ वो बोलीं- ‘हां बिरजू बताओ।’ सुनील ने सीधे कहा- ‘क्या आप मुझसे शादी करेंगी?’ इसके बाद कार में सुई पटक सन्नाटा हो गया। थोड़ी देर बाद उनका घर आ गया और वो बिना जवाब दिए चली गईं। सुनील दत्त ने ठान लिया कि अगर नरगिस इनकार करती हैं तो वो इंडस्ट्री छोड़कर गांव लौट जाएंगे।

कुछ समय बाद एक दिन जब सुनील घर पहुंचे तो बहन मुस्करा रही थी। जवाब पूछने पर वो पंजाबी में बोली- ‘पाजी, आपने मुझसे क्यों छुपाया।’ उन्होंने कहा- ‘क्यों, क्या छुपाया मैंने तुमसे?’ इस पर वो बोली- ‘नरगिस जी मान गई हैं।’ सुनील ने फिर पूछा- ‘क्या मान गई हैं।’ वो बोली- अब आप चुप ही रहो, जो आपने कहा था वो मान गई हैं।” 11 मार्च 1958 को नरगिस और सुनील दत्त की शादी हुई। उनके तीन बच्चे (संजय, नम्रता और प्रिया दत्त) हुए
1960 तक सुनील दत्त हिंदी सिनेमा के एक मशहूर अभिनेता बन चुके थे। एक्टर ने एक के बाद एक हिट फिल्में दीं। 1968 की पड़ोसन से फिर एक बार सुनील की चर्चा देशभर में हुई। एक्टिंग के अलावा सुनील ने अजंता आर्ट्स प्रोडक्शन हाउस शुरू किया। 1964 की फिल्म यादें से सुनील ने डायरेक्टोरियल डेब्यू किया।
1964 की फिल्म यादें के जरिए सुनील दत्त ने क्रिएटिविटी की नई मिसाल कायम की। इस फिल्म के राइटर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और एक्टर अकेले सुनील थे। ये भारत की इकलौती ऐसी फिल्म है जिसमें सिर्फ एक ही कलाकार है, वो हैं सुनील दत्त। सुनील ने ऐसी कहानी बनाई, जिसमें वो अकेले ही नजर आते रहे और एक्टिंग करते रहे। इस फिल्म का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।
1971 में सुनील ने दत्त ने बड़े बजट में वहीदा रहमान के साथ रेशमा और शेरा बनाई। इस फिल्म के लिए वहीदा को बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवॉर्ड मिला, हालांकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बड़ी फ्लॉप रही। फिल्म बनाने में ही सुनील 60 लाख के कर्ज में डूब गए थे। सुनील की 7 में से 6 कार बिक गईं, सिर्फ एक कार बचाई, जो बेटियों को स्कूल छोड़ने में इस्तेमाल होती थी। कर्ज चुकाने के लिए सुनील को अपना घर भी गिरवी रखना पड़ा था

सुनील ने 1981 की फिल्म रॉकी से बेटे संजय दत्त को फिल्मों में लॉन्च किया, लेकिन इसकी रिलीज से चंद दिनों पहले ही नरगिस की कैंसर से मौत हो गई। एक तरफ पत्नी को खोने का गम था और दूसरी तरफ रॉकी की कामयाबी की खुशी। सुनील ने फिल्मों से दूरी बना ली और वो अपना नरगिस दत्त फाउंडेशन शुरू कर ज्यादातर समय कैंसर पीड़ितों की मदद और समाज सेवा में देने लगे। ऑफर मिलते रहे तो सुनील दर्द का रिश्ता, बदले की आग, राज तिलक जैसी फिल्मों में नजर आते रहे।
मुंबई बॉम्ब ब्लास्ट के समय संजय दत्त के पास एके-47 मिली थी, जिसके चलते उन्हें जेल की सजा हुई थी। बेटे के जेल जाते ही सुनील दत्त बुरी तरह टूट गए और लोगों से दूर रहने लगे। वो अपना ज्यादातर समय संजय दत्त को जेल से बाहर निकालने में लगाया करते थे। गरीबी का ऐसा दौर आया कि सुनील को पैसों की कमी के कारण अपना घर भी बेचना पड़ा था

एक लंबे अंतराल के बाद संजय ने करीबी दोस्त राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में कदम रख लिया। सुनील 5 बार सांसद चुने गए। कांग्रेस सरकार के राज में सुनील 2004 में मिनिस्टर ऑफ यूथ मिनिस्टर एंड स्पोर्ट्स रहे।
सुनील दत्त को पहली बार मुझे जीने दो फिल्म के लिए 1963 में बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला। इसके बाद इन्हें यादें के लिए पहली बार नेशनल अवॉर्ड मिला। 1968 में इन्हें पद्मश्री और 1995 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 48 सालों के एक्टिंग करियर में सुनील को फिल्मफेयर, नेशनल अवॉर्ड, राजीव गांधी अवॉर्ड जैसे करीब 12 बड़े अवॉर्ड मिले। आखिरी बार सुनील 2003 की फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस में संजय के पिता के रोल में नजर आए थे। 25 मई 2005 में सुनील दत्त का हार्ट अटैक से बांद्रा स्थित घर में निधन हो गया।