वाट्सएप चैट सरीखे इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की भारत की अदालतों में कितनी मान्यता है, आइये जानतें हैं

मुंबई क्रूज ड्रग्स केस में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) द्वारा बीते दिनों पेश की गई चार्जशीट में अभिनेता शाह रुख खान के बेटे आर्यन खान का नाम नहीं है। आर्यन का मामला मुख्यत: इलेक्ट्रानिक साक्ष्य पर आधारित था। एनडीपीएस अदालत ने मामले में एनसीबी द्वारा पेश की गई वाट्सएप चैट को बतौर साक्ष्य स्वीकार किया जबकि उच्च अदालत ने इसे पर्याप्त नहीं माना।
20 वर्ष पहले बना आइटी एक्ट:-शेष विश्व की तरह भारत भी डिजिटल तकनीक में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत में 20 वर्ष पहले डिजिटल गतिविधियों से संबंधित सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम यानी आइटी एक्ट-2000 बनाया गया।

ई-साक्ष्य और धारा 65ए व बी—आइटी एक्ट बनने के बाद भारतीय साक्ष्य अधिनियम-1872 में धारा 65ए और धारा 65बी को सम्मिलित किया गया। इन धाराओं के तहत ई-साक्ष्य को स्वीकार्यता दी गई है। -इनमें स्टोरेज डिवाइस, डीवीडी, पेन ड्राइव, एसएमएस, वेबसाइट भी शामिल हैं। इनका प्रिंट आउट या साफ्ट कापी बतौर ई-साक्ष्य मान्य हैं।-समृद्ध होती डिजिटल तकनीक व प्रयोग के बीच इलेक्ट्रानिक रिकार्ड को बतौर साक्ष्य शामिल करने के लिए वर्ष 2016 में इंडियन एविडेंस एक्ट में संशोधन कर धारा 65ए और 65बी को शामिल किया गया।

-इन दोनों धाराओं में दिए गए प्रविधाओं के आधार पर ही भारत में इलेक्ट्रानिक रिकार्ड को साक्ष्य के तौर पर मान्यता मिलती है। धारा 65बी के अंतर्गत इलेक्ट्रानिक साक्ष्य के मामले में संबंधित डिवाइस के स्वामी या उसका प्रबंधन करने वाली संस्था के प्राधिकृत व्यक्ति को इलेक्ट्रानिक रिकार्ड व डिवाइस के संबंध में एक प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होता है। -आर्यन खान केस में भी यही स्थिति थी। वहां जिन मोबाइल की वाट्सएप चैट का जिक्र एनसीबी ने किया था, उनके स्वामियों को धारा 65बी के अंतर्गत प्रमाणपत्र देना था।
भारत में यह है साक्ष्य का अर्थ: साक्ष्य एक प्रकार की पुष्टि या सुबूत है, जो किसी अदालती मामले में विश्वास जगाने के लिए पेश किया जाता है। साक्ष्य शब्द का कानूनी अर्थ भारतीय साक्ष्य अधिनियम-1872 की धारा तीन में निर्धारित किया गया है।-किसी मामले से संबंधित ऐसे सभी स्पष्टीकरण जिनकी अनुमति न्यायालय देता है या गवाहों द्वारा न्यायालय के समक्ष देने की आवश्यकता होती है, वह बयान मौखिक साक्ष्य कहलाते हैं।-किसी मामले में न्यायालय की समीक्षा के लिए दिए गए सभी दस्तावेजों को दस्तावेजी साक्ष्य कहा जाता है।
इसलिए आर्यन की वाट्सएप चैट नहीं बन सकी साक्ष्य– -सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और ख्यात साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल बताते हैं कि किसी अपराध से जुड़े मामलों के ई-साक्ष्य को मान्यता के बावजूद आर्यन खान के केस में एनसीबी बांबे हाई कोर्ट में वाट्सएप चैट को आधार नहीं बना पाई। इसकी वजह वह धारा 65बी में उल्लिखित शपथपत्र प्रमाणपत्र की बाध्यता को ही मानते हैं।
दरअसल साक्ष्यों के संबंध में जोड़ी गई धारा 65बी यूनाईटेड किंगडम के सिविल एविडेंस एक्ट-1968 की धारा पांच से प्रेरित है। इसके अधिकांश तत्व यूनाईटेड किंगडम से कानून से लिए गए थे। रोचक बात यह है कि यूनाईटेड किंगडम के सिविल एविडेंस एक्ट से धारा पांच 1995 में ही समाप्त कर दी गई, लेकिन भारत में इसे साक्ष्य से संबंधित कानूनी व्यवस्था में इसके बाद भी शामिल कर लिया गया।

पवन दुग्गल का कहना है कि 65बी का प्रमाणपत्र सिर्फ फोन या लैपटाप या ई-साक्ष्य से संबंधित गैजेट के स्वामी को ही देना अनिवार्य है। ऐसे में बहुत से मामलों में यह कारगर नहीं हो पाता है। जैसे आर्यन खान प्रकरण में एनसीबी ने जिन लोगों के वाट्सएप चैट को आधार बनाया, उन्हीं से 65-बी के शपथपत्र की आवश्यकता थी। तभी यह साक्ष्य मान्य हो सकते थे। -ऐसे मामलों में जांच एजेंसी चाहे तो अदालत से यह आग्रह कर सकती है कि वह ई-साक्ष्य से संबंधित गैजेट के स्वामी को 65-बी का शपथपत्र देने का आदेश दे ताकि जांच आगे बढ़ सके।
सुप्रीम कोर्ट की सायबर कानून विशेषज्ञ एडवोकेट कर्णिका सेठ ने बताया कि ई-साक्ष्य के लिए व्यवस्था मजबूत करने की आवश्यकता–अर्जुन पंडित राव के केस में तीन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि सभी साक्ष्य मान्य हैं लेकिन 65बी का प्रमाणपत्र देना अनिवार्य है। बिना इसके इलेक्ट्रानिक साक्ष्य मान्य नहीं होगा। चूंकि बहुत से केस ई-साक्ष्य के साथ आ रहे हैं, इसलिए इससे संबंधित कानून को और सशक्त बनाने की आवश्यकता है। वर्तमान में ऐसे मामले को साबित करने में परेशानी होती है या फिर बहुत समय लग जाता है।

1-राज्य (राष्ट््रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) बनाम नवजोत संधू (2005)—इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि अदालतें इलेक्ट्रानिक रिकार्ड जैसे प्रिंटआउट और कांपैक्ट डिस्क को बिना सत्यापन के प्रथम दृष्टया सुबूत के रूप में स्वीकार कर सकती हैं।
2-अनवर पीवी बनाम पीके बशीर (2014)—इस मामले में न्यायालय ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 22ए, 45ए, 59, 65ए और 65बी की व्याख्या की और कहा कि सीडी/डीवीडी/पेन ड्राइव में मौजूद जानकारी धारा 65 बी(4) के अंतर्गत प्रमाणपत्र के बिना स्वीकार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस विचार को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया कि अदालतें इलेक्ट्रानिक रिकार्ड को बिना पुष्टि के प्रथम दृष्टया साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर सकती हैं।
3-अब्दुल रहमान कुंजी बनाम बंगाल —कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस मामले में ई-मेल की स्वीकार्यता का फैसला करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति के ई-मेल रिकार्ड से डाउनलोड और प्रिंट किया गया ई-मेल साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी आर/डब्ल्यू धारा 88ए के तहत साबित किया जा सकता है।