केशव प्रसाद मौर्य का जन्म 7 मई सन 1969 में इलाहाबाद के कौशाम्बी जिले के एक छोटे से क्षेत्र सिराथू में एक किसान परिवार में हुआ था। इनका बचपन बहुत कठिन था और इस वजह से इन्हें चाय और अखबार बेचना पड़ता था. इनके पिता का नाम श्याम लाल मौर्य और इनकी माता का नाम धनपति देवी मौर्य है. इन्होने इलाहबाद के हिन्दू साहित्य सम्मलेन से हिंदी साहित्य में स्नातक तक की पढाई की है।
केशव प्रसाद मौर्य OBC की राजनीति के लिए मशहूर हैं। ये एक लम्बे समय तक विश्व हिन्दू परिषद् से जुड़े रहे. लगभग 18 साल तक इन्होने विश्व हिन्दू परिषद के लिए प्रचार किया।
बात साल 1978 की है और जगह है सिराथू, कौशांबी, 9 साल के केशव पढ़ने-लिखने में ठीक थे। मां-बाप के पास उसकी पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। आठ लोगों के परिवार में जैसे-तैसे घर का खर्च चलता था। उसने छोटी उम्र से ही पढ़ाई और परिवार का पेट पालने की जिम्मेदारी उठा ली। केशव सुबह 5 बजे उठते। सिराथू से 9 किलोमीटर दूर साइकिल से जाकर पेपर बेचते। घर आते ही स्कूल में पढ़ने चले जाते। इंटरवल में जब बाकी बच्चे खेल रहे होते तो केशव भागकर अपने पिता की गुमटी पहुंच जाते। हाथ में केतली लिए सिराथू रेलवे स्टेशन के बाहर चाय बेचकर पिता की मदद करते। ट्रेन में सवार मुसाफिरों से लेकर गुमटी पर आने वाले ग्राहकों को भी अपने हाथ से बनी कड़क चाय पिलाते थे। बचपन से ही केशव का राष्ट्रीय सेवक संघ यानी आरएसएस से जुड़ाव था। धीरे-धीरे उनका पूरा दिन शाखा में ही बीतने लगा। अब वो चाय की गुमटी पर ज्यादा वक्त नहीं दे पाते थे। साल 1983 में एक दिन केशव शाखा से घर आए तो उनके पिता ने काम न करने के लिए उन्हें फटकार लगाई। परिवार को उनका शाखा में जाना पसंद नहीं था। इसी बात से तंग आकर केशव 14 साल की उम्र में घर से भागकर इलाहाबाद चले गए।
इलाहाबाद पहुंचकर केशव विश्व हिन्दू परिषद यानी वीएचपी के नेता अशोक सिंघल के पास पहुंचे। वो सिंघल के साथ ही रहने लगे। और बारह साल तक वे परिवार के सम्पर्क में नहीं रहे। साल 1995, केशव की बहन की शादी तय हुई। परिवार चाहता था कि उनका बेटा भी शादी में शामिल हो। लेकिन इतने साल परिवार से दूर रहने के बाद भी केशव शादी में नहीं जानना चाहते थे। परिवार के बहुत कहने पर भी वो नहीं माने।
जब अशोक सिंघल को पूरा मामला पता चला, उन्होंने केशव को शादी में जाने के लिए कहा। वो अपने राजनैतिक गुरु की बात नहीं टाल पाए। उनके कहने पर ही वो शादी में शामिल हुए और परिवार से दोबारा रिश्ता जोड़ा। आगे राजनैतिक करियर उनका कुछ इस प्रकार रहा :
साल 2004ः केशव ने पहली बार बाहुबली अतीक अहमद के दबदबे वाली इलाहाबाद पश्चिमी सीट से चुनाव लड़ा, हार गए। अतीक से टकराकर एक धाकड़ नेता की छवि बना ली।
साल 2007ः दोबारा चुनाव लड़ा फिर से हार का सामना करना पड़ा।
साल 2012ः वो कौशाम्बी की सिराथू सीट से चुनाव लड़े। इस सीट पर पहली बार भाजपा की जीत हुई।
साल 2014ः फूलपुर से उन्हें लोकसभा का टिकट मिला और वो जीत गए।
साल 2016ः उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया।
साल 2017ः उन्हीं की अध्यक्षता में बीजेपी ने यूपी में इतिहास रच दिया।
साल 2017, यूपी में विधानसभा चुनाव में भाजपा को 312 सीटें मिलीं। जीत के बाद केशव के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया। शपथ ग्रहण के एक दिन पहले दोपहर तक न्यूज चैनलों में केशव के ही सीएम बनने की हवा थी। 18 मार्च की शाम करीब 5.30 बजे विधायक दल की मीटिंग हुई। उसमें मुख्यमंत्री के लिए केशव की बजाए योगी आदित्यनाथ के नाम पर मोहर लगी। केशव यूपी के उपमुख्यमंत्री बनाए गए।
इस बार विधानसभा चुनाव में केशव सिराथू से मैदान में उतरे थे। 2012 से ही इस सीट पर केशव का दबदबा था। इलेक्शन के दौरान उन्होंने सिराथू में कई सभाएं की। खुद को वहां का बेटा बताते हुए वोट मांगे। 7337 वोटों से चुनाव हार गए।चुनाव हारने के बाद उनकी डिप्टी सीएम की कुर्सी पर खतरा मंडराने लगा। चर्चाएं हुईं कि उन्हें संगठन भेजा जा सकता है। उनका कद ना तो घटा ना बढ़ा। 25 मार्च 2022 को केशव प्रसाद मौर्य ने दोबारा डिप्टी सीएम पद की शपथ ली।