प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की मालदीव यात्रा कैसी रही ?

मालदीव के आलीशान प्रेसीडेंट्स हाउस के बैंक्वेट हॉल में शनिवार को कोई तीस लोग रहे होंगे. शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे और इससे पहले बग़ल वाले प्राइवेट हॉल में मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लंबी बातचीत चली थी.

 

मोदी ने उन्हें टीम इंडिया के ऑटोग्राफ़ वाला क्रिकेट बैट गिफ़्ट किया तो राष्ट्रपति सोलिह भारतीय पीएम को मालदीव के सर्वोच्च सम्मान ‘निशान इज़्ज़ुदीन’ से सम्मानित कर संयुक्त प्रेस वार्ता करने पहुँचे.

मोदी इस मेडल को पहने हुए बग़ल के हॉल में पहुँचे.

शुरुआत राष्ट्रपति सोलिह ने की और जब मोदी की बारी आई तो उन्होंने पहले सोने के ‘निशान इज़्ज़ुदीन’ मेडल तो गले में ठीक करते हुए कहा, “हमारे देशों ने कुछ दिन पहले ही ईद का त्योहार हर्ष और उल्लास के साथ मनाया है. मेरी शुभकामनाएं हैं कि इस पर्व का प्रकाश हमारे नागरिकों के जीवन को हमेशा आलोकित करता रहे.”

मोदी के इस वाक्य पर उनके बाईं ओर खड़े भारतीय दल के लोग मुस्कुराए.

सबसे ज़्यादा मुस्कराहट दिखी कैबिनेट मंत्री का दर्जा रखने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के चेहरे पर.

मोदी ने अपने सम्बोधन के शुरुआत में ही पिछले कुछ वर्षों की भारतीय झुँझलाहट को उजागर कर दिया. उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति सोलिह, आपके पद ग्रहण करने के बाद से द्विपक्षीय सहयोग की गति और दिशा में मौलिक बदलाव आया है.”

दरअसल, ये एक सीधा संदेश था मालदीव के लिए और चीन के लिए जिसका इंतज़ार भारतीय विदेश मंत्रालय एक लंबे समय से कर रहा था.

हक़ीक़त यही है कि 2013 से 2018 के दौरान मालदीव की अब्दुल्ला यामीन सरकार ने भारत को नज़रंदाज़ कर चीन से खुले आम दोस्ती का हाथ भी बढ़ाया था और अरबों डॉलर के व्यावसायिक समझौते भी किए थे.

दर्जनों चीनी कम्पनियों ने इस दौरान मालदीव में निवेश शुरू कर दिया जिसमें होटल, रिसॉर्ट्स, बंदरगाह और राजधानी माले को हवाई अड्डे वाले द्वीप से जोड़ने वाले एक बेहद ज़रूरी फ़्लाईओवर का निर्माण भी शामिल था.

भारत को यह रास नहीं आया और सितम्बर, 2018 में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसका उद्घाटन किया तो भारतीय दूतावास ने समारोह में हिस्सा नहीं लिया था.

शायद यही वजह थी कि बीते शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी मालदीव के हवाई अड्डे वाले द्वीप पर लैंड करने के बाद समुद्र पर बने इस पुल के बजाय एक स्पीडबोट पर सवार होकर समुद्री रास्ते से माले पहुँचे.

यात्रा से क्या मिला?

माले में तीस साल से रह रहीं भारतीय मूल की व्यवसायी कंचन जशनानी से मामले पर बात हुई तो उन्होंने कहा, “पिछले सालों में यहाँ बदलाव तो बहुत आया है. कुछ चीज़ें अच्छी हुईं तो कुछ वैसी नहीं कहीं जा सकतीं. लेकिन इस यात्रा के बाद आगे अच्छा होना चाहिए ऐसी अभी उम्मीद तो है.”

लेकिन वजह अनेक हैं जिन पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है.

पहली बात ये कि दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के मालदीव को चुनने की असल वजह क्या है.

मोदी ने अपने दूसरे शपथ ग्रहण समारोह में पिछली बार की तरह दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के नहीं बल्कि बिम्सटेक देशों के समूह के नेताओं को बुलाया और मालदीव इसमें नहीं था.

दूसरी बात ये कि पिछले कुछ सालों में मालदीव और श्रीलंका भारतीय विदेश नीति के लिए पाकिस्तान के बाद शायद सबसे बड़ी चुनौती रहे हैं.

दोनों देशों में एक लंबे समय तक प्रतिद्वंदी चीन की हिमायती सरकारें सत्ता में थीं और भारत को ये बात खटक रही थी.

गोवा विश्विद्यालय में दक्षिण एशिया विभाग के प्रोफ़ेसर राहुल त्रिपाठी के मुताबिक़, “कुछ आलोचक इस बात को भी कहते रहे हैं कि भारत इंतज़ार कर रहा था, किसी भी मौक़े का, इन दोनों देशों में दोबारा पैर जमाने का. श्रीलंका में मौक़ा थोड़ा पहले मिला और मालदीव में थोड़ा बाद में. लेकिन गोल एक था, चीन को पछाड़ना.”

ज़ाहिर है, मालदीव की इस यात्रा से भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक संदेश भी देना चाहता है कि उसके अपने क़रीबी पड़ोसी उसके ‘पाले में हैं.’

प्रधानमंत्री मोदी के ही नेतृत्व वाली पिछली सरकार के दौरान नेपाल से सम्बन्धों में दरार आ गई थी जब ‘आर्थिक ब्लॉकेड’ का मसला हुआ था और उसके कुछ साल बाद नेपाल ने भारतीय नोटों पर बैन लगा दिया था.

पाकिस्तान और चीन के साथ भी सम्बन्धों में कोई सुधार नहीं दिखा है.

बांग्लादेश में शेख़ हसीना सरकार से मौजूदा भारतीय सरकार के अच्छे रिश्ते रहे हैं लेकिन इस बीच वहाँ के विपक्ष ने भारत पर “बांग्लादेश को दबा कर रखने’ का आरोप लगाया है.

अब एक नज़र दौड़ाइए उन घोषणाओं/समझौतों पर जो प्रधानमंत्री मोदी के मालदीव आने पर हुईं.

मालदीव डिफ़ेंस फ़ोर्सेज़ के कंपोज़िट ट्रेनिंग सेंटर और तटीय निगरानी प्रणाली में मदद की पहल, क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण, विभिन्न द्वीपों पर पानी और सफ़ाई की व्यवस्था, छोटे और लघु उद्योगों के लिए वित्त व्यवस्था, बंदरगाहों का विकास, कांफ्रेंस और कम्युनिटी सेंटर का निर्माण, आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं, स्टूडेंट्स के लिए फ़ेरी की सुविधा प्रमुख हैं.

साथ ही मालदीव में जामा मस्जिद के निर्माण कार्य में मदद की घोषणा.

कोच्ची और माले के बीच जिस पैसेंजर फ़ेरी को चालू करने पर सहमति हुई है वो दरअसल 2011 से ठंडे बस्ते में पड़ी हुई थी. ये वो साल था जब पिछली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) ने मालदीव की आधिकारिक यात्रा की थी.

मालदीव के राष्ट्रपति सोलिह जब पिछले वर्ष भारत आए थे तब क़रीब डेढ़ अरब डॉलर की वित्तीय मदद की घोषणा (जिसमें एक बड़ी रक़म मूलभूत ढाँचों के विकास के लिए उधार पर भी दी जाएगी) हो चुकी थी.

साफ़ है कि इस यात्रा में किसी बड़े निवेश पर समझौता नहीं हुआ, न ही इस पर कोई बात की गई.

मालदीव में कुछ व्यवसायियों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री मोदी के डेलीगेशन में भारत के कुछ बड़े कॉरपोरेट समूह भी आएँगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

वजह शायद यही है कि मालदीव की पिछली अब्दुल्ला यामीन सरकार और तब माले हवाई अड्डे में निर्माण कार्य में लगी भारतीय जीएमआर कम्पनी में तनातनी हो चुकी है और कम्पनी पर करोड़ों रुपये का हर्जाना लगा दिया था.

फ़िलहाल मामला सुलझ गया है लेकिन इसके बाद से भारतीय कारोबारियों ने मालदीव में फूँक-फूँक कर क़दम रखने शुरू कर दिए हैं.

राजधानी में मुलाक़ात मालदीव मूल के अब्दुल्ला शाह से भी हुई जिन्हें लगता है पिछले कुछ वर्षों में जो हुआ उसे बदलने में समय लगेगा.

उन्होंने कहा, “मोदी आए ये तो अच्छी बात है, लेकिन क्या देकर गए इसे समझने में समय लगेगा. भारत और मालदीव के बीच सम्बंध ऐतिहासिक हैं इसमें कोई शक नहीं. आगे देखते हैं.”

मालदीव के वित्त मंत्रालय के एक अफ़सर ने गोपनीयता बनाए रखने की शर्त पर बताया, “पिछले छह सालों में मालदीव में दक्षिण पूर्व एशिया के देशों ने बिज़नेस में पैर जमा लिए हैं. चीन की तो बात छोड़िए, सिंगापुर, थाईलैंड और मलेशिया की कंपनिया यहाँ निर्माण कार्य और पर्यटन के व्यवसाय में अपना सिक्का जमा चुकी हैं. भारत की तरफ़ से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ सिवाय टाटा और स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया वग़ैरह के.”

इधर इस अहम यात्रा के बाद बीबीसी हिंदी से हुई एक ख़ास बातचीत में संसद के स्पीकर और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने इस बात से इनकार किया कि जब वे सत्ता में रहते हैं तो भारत की तरफ़ अनायास ही मुख़ातिब रहते हैं.

उन्होंने कहा, “भारत-मालदीव के सम्बंध आज के तो हैं नहीं. और भारत ने कभी भी मालदीव से आर्थिक फ़ायदा उठाने की नहीं सोची, इसलिए हम लोग भारत से दोस्ती में ख़ुशी महसूस करते हैं.”

लेकिन इस सवाल का जवाब स्पीकर नशीद थोड़ा टाल सा गए कि, “क्या इस बात से निराशा नहीं हुई कि प्रधानमंत्री के साथ भारतीय उद्योगपतियों की तरफ़ से कोई नहीं आया निवेश वग़ैरह के लिए?”

मोहम्मद नशीद ने कहा, “देखिए ये मालदीव के लोगों से, सभी राजनीतिक दलों से मिलने की यात्रा थी न कि व्यवसायिक. रही बात आर्थिक सहयोग की तो ऐसा नहीं है कि मालदीव आर्थिक मदद या क़र्ज़ों से छुटकारा पाने के लिए सिर्फ़ भारत की तरफ़ ही देखता है.”

माले में प्रधानमंत्री के आगमन पर कुछ लोगों में ये भी सुगबगाहट चल रही थी कि, “जब हवाई अड्डा मात्र पंद्रह मिनट की दूरी पर है तो राष्ट्रपति सोलिह पीएम मोदी को रिसीव करने क्यों नहीं गए.”

मालदीव के कुछ जानकार इस ओर भी इशारा करते हैं कि मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह, “बेहद मँझे हुए, संजीदा राजनेता हैं और उनमें और पूर्व राष्ट्रपति और फ़िलहाल मालदीव की मजलिस (संसद) में स्पीकर मोहम्मद नशीद में, यही एक छोटा लेकिन बहुत ख़ास फ़र्क़ है कि नशीद खुल कर भारत-समर्थन करते हैं और सोलिह कूटनीतिक तरह से.”

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी डेढ़ दिन की मालदीव यात्रा के दौरान पूर्व राष्ट्रपतियों अब्दुल गयूम और मोहम्मद नशीद से मुलाक़ात की थी. नशीद से मुलाक़ात पर ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए मोदी ने ट्वीट भी किया था.

असल चिंता

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी मालदीव यात्रा की प्रमुख बातें देश की मजलिस (संसद) में देने वाले सम्बोधन के लिए बचा कर रखी थी.

उन्होंने कहा कि बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि लोग अभी भी गुड टेररिस्ट और बैड टेररिस्ट का भेद रखते हैं. उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि आतंकवाद एक देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरी सभ्यता के लिए ख़तरा है और राज्य प्रायोजित आतंकवाद आज सबसे बड़ा ख़तरा है.

ज़ाहिर है, भारतीय प्रधानमंत्री का ये इशारा पड़ोसी देश पाकिस्तान की तरफ़ था जिसे ‘चरमपंथियों और हमलावरों को पनाह देने के’ भारतीय आरोप पिछले महीनों ख़ासे तेज़ रहे हैं. ख़ास तौर से पुलवामा में हुए हमले के बाद और ‘बालाकोट, पाकिस्तान में जवाबी कार्रवाई’ करने के दावों के बाद से.

भारत में हाल ही में हुए आम चुनावों में भी प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी बीजेपी और ख़ुद उन्होंने राष्ट्रवाद के साथ-साथ देश की सुरक्षा और ‘पाकिस्तान से ख़तरा’ जैसे मुद्दों पर खुल कर बातें की हैं.

एक तीर से दो निशाना साधने की कोशिश

मालदीव में प्रधानमंत्री का चरमपंथ पर बात करना इस बात को भी दर्शाता है कि श्रीलंका में हाल ही में हुए इस्टर बम धमाकों ने भारतीय सुरक्षा नीतिकारों को भी झझकोर कर रख दिया है.

दक्षिण एशिया मामलों पर चार साल से काम कर रहे भारतीय विदेश मंत्रालय के एक अफ़सर के मुताबिक़, “भारत श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसियों को लगातार अलर्ट देता रहा. सच यही है कि धर्म से प्रभावित चरमपंथ की वारदातें हमारे पड़ोस में बड़े पैमाने पर हुई हैं, चाहे वो ढाका का होली आरटीज़न बेकरी हमला हो या श्रीलंका के चर्चों पर हुए सिलसिलेवार हमले. इसलिए किसी भी प्राथमिकता के पहले यही भारत की प्राथमिकता है.”

साफ़ है कि, मालदीव की अपनी यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने एक तीर से दो निशाने करने की कोशिश की है.

एक तरफ़ चीन को मालदीव में भारतीय वापसी का और दूसरी तरफ़ पाकिस्तान को चरमपंथ के मामले में.

अब चीन और पाकिस्तान के विदेश नीति पंडितों का क्या रूख़ रहेगा, इसका कुछ ही दिनों में शुरू होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में पता चलने की उम्मीद है.

 

Source : BBC