3 दशक पहले अजेय कहलाने वाली टीम आज इतनी कमजोर कैसे हो गई

टीम इंडिया आज से वेस्टइंडीज के खिलाफ 2 टेस्ट की सीरीज का पहला मुकाबला खेलेगी। टेस्ट के बाद 3 वनडे और 5 टी-20 भी होंगे। वनडे वर्ल्ड कप के अहम साल में टीम एक महीने वेस्टइंडीज के खिलाफ क्रिकेट खेलेगी। उसी वेस्टइंडीज के खिलाफ जो वर्ल्ड कप के क्वालिफायर स्टेज तक को पार नहीं कर सकी।

वेस्टइंडीज अक्टूबर 2002 से भारत को एक भी टेस्ट मैच नहीं हरा सका। अन्य टीमों के खिलाफ भी कैरेबियाई टीम बहुत अच्छा खेल नहीं दिखा पाती है। इस टीम के हालात हमेशा से इतने खराब नहीं रहे। 1975 से 1995 तक कैरेबियाई टीम ने कमाल का खेल दिखाया था और वनडे-टेस्ट दोनों फॉर्मेट में सबसे आगे रही।
आगे स्टोरी में हम क्रिकेट में वेस्टइंडीज के राइज और फॉल के बारे में जानेंगे। यानी हम जानेंगे कि वेस्टइंडीज की टीम कब और कैसे सबसे बेहतर टीम बनी और क्यों आज यह इतना पतन देख रही है।
वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम ने 23 जून 1928 को पहला टेस्ट मैच इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स में खेला। वह टेस्ट क्रिकेट खेलने वाली चौथी टीम बनी। उनसे पहले इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका ने ही क्रिकेट खेलना शुरू किया। भारत ने भी 1932 में पहला टेस्ट खेला। पाकिस्तान, न्यूजीलैंड, श्रीलंका और जिम्बाब्वे जैसे देशों ने भी वेस्टइंडीज के बाद ही अपना क्रिकेट शुरू किया।

वेस्टइंडीज को पहली टेस्ट जीत भी फरवरी 1930 में इंग्लैंड के खिलाफ मिली। फरवरी 1931 में टीम ने ऑस्ट्रेलिया को भी पहली बार टेस्ट मैच हराया।
1952 तक वेस्टइंडीज में कई अंग्रेज और ‘व्हाइट प्लेयर्स’ भी खेला करते थे। 1952 के बाद साउथ अमेरिका में मौजूद कई आईलैंड्स को अंग्रेजों ने आजाद कर दिया। 1958 से 1962 के बीच इन्हीं आईलैंड्स ने वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड को स्थापित किया। इनमें त्रिनिदाद & टोबैगो, बारबाडोस, पोर्ट ऑफ स्पेन और जमैका शामिल थे।

इन्हीं आईलैंड के प्लेयर्स ने वेस्टइंडीज क्रिकेट को नई दिशा दी। 1971 में वनडे क्रिकेट भी शुरू हो गया और 1974 में गयाना, एंटीगुआ, डोमिनिका, सैंट किट्स एंड नेविस और सेंट लुसिया जैसे आईलैंड्स को भी आजादी मिल गई।

1975 में वनडे वर्ल्ड कप होना था, तब क्लाइव लॉयड ने अलग-अलग आईलैंड्स से खिलाड़ी इकट्ठा किए और उन्हें मिलाकर वेस्टइंडीज टीम बनाई। टीम में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के गोरों (व्हाइट प्लेयर्स) के खिलाफ गुस्सा था। टीम उन्हें हराने के उद्देश्य से वर्ल्ड कप खेलने उतरी और सभी मैच जीतकर चैम्पियन भी बनी। वेस्टइंडीज ने फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को ही 17 रन से हराया। टीम इस दौरान विवियन रिचर्ड्स, गॉर्डन ग्रीनिज, डेसमंड हायन्स और कप्तान लॉयड जैसे बैटर्स के कारण बेहद मजबूत थी।
वर्ल्ड कप के ठीक बाद 1975 में कैरेबियाई टीम ऑस्ट्रेलिया में 6 टेस्ट का दौरा करने गई। यहां ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों ने वर्ल्ड कप में मिली हार का बदला लिया और कैरेबियाई बैटर्स पर लगातार बाउंसर्स से अटैक किया। टीम को नतीजे भी मिले और ऑस्ट्रेलिया ने वर्ल्ड चैम्पियन वेस्टइंडीज को 5-1 से सीरीज में करारी हार चखाई।

ऑस्ट्रेलिया से मिली हार का गुस्सा कैरेबियाई कप्तान लॉयड में इस कदर समाया कि उन्होंने भी अपनी टीम में खतरनाक पेसर्स की यूनिट तैयार कर ली। टीम में एंडी रॉबर्ट्स, मैल्कम मार्शल, जोएल गार्नर और माइकल होल्डिंग जैसे तेज गेंदबाज शामिल हुए। इनके बाद कर्टनी वॉल्श और कर्टली एम्ब्रोस ने भी विपक्षी बैटर्स को अपनी पेस और बाउंस से डरा कर रखा।

खतरनाक बॉलिंग अटैक के दम पर वेस्टइंडीज ने 1978 से 1992 तक ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक भी टेस्ट सीरीज नहीं गंवाई। दोनों देशों के बीच इस दौरान 8 टेस्ट सीरीज खेली गईं, 7 वेस्टइंडीज ने जीतीं, जबकि एक सीरीज ड्रॉ रही। ऑस्ट्रेलिया से तो टीम ने हिसाब बराबर किया ही टीम ने इंग्लैंड को भी नहीं बख्शा। 1974 से 1998 तक दोनों के बीच 12 टेस्ट सीरीज खेली गईं, इंग्लैंड इनमें से एक भी नहीं जीत सका। 9 सीरीज विंडीज ने जीतीं, जबकि 3 ड्रॉ रहीं।

अपनी बैटिंग और बॉलिंग दोनों डिपार्टमेंट में मजबूत हो चुकी वेस्टइंडीज 1979 में फिर एक बाद दांवेदार बनकर वर्ल्ड कप खेलने उतरी। इस बार टीम ने फाइनल में इंग्लैंड को 92 रन के बड़े अंतर से हराया। विंडीज की मजबूत टीम 1983 के वर्ल्ड कप में भी फेवरेट बनकर उतरी, लेकिन फाइनल में भारत के खिलाफ हार गई।
टीम वर्ल्ड कप जरूर हार गई, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में अपना दबदबा कम नहीं होने दिया। टीम ने 1984 में तो इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमों के खिलाफ लगातार 11 टेस्ट मैच जीते। टीम ने इस दौरान लगातार 7 टेस्ट सीरीज भी जीती।
वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम अपने गेंदबाजों के दम पर टेस्ट क्रिकेट पर राज करने लगी। लेकिन 1983 के वर्ल्ड कप फाइनल में हार के बाद विंडीज क्रिकेट को वनडे में चोट पहुंची। लॉयड ने संन्यास ले लिया। विवियन रिचर्ड्स ने कमान संभाली और टीम 1987 के वर्ल्ड कप में ग्रुप स्टेज भी क्लीयर नहीं कर सकी। 1991 में रिचर्ड्स ने भी संन्यास ले लिया और 1992 में भी टीम वनडे वर्ल्ड कप के ग्रुप स्टेज से ही बाहर हो गई।रिचर्ड्स, लॉयड जैसे बैटर्स के साथ गारनर, होल्डिंग, रॉबर्ट्स जैसे गेंदबाजों ने भी संन्यास ले लिया। जिसका असर टीम के वनडे गेम पर पड़ा। ट्रांजिशन पीरियड में टीम को ब्रायन लारा और शिवनारायण चंद्रपॉल के रूप में बेहतरीन बैटर मिले। जिन्हें कर्टनी वॉल्श, कर्टली एम्ब्रोस और इयन बिशप जैसे गेंदबाजों ने सपोर्ट किया। इनके सहारे टीम टेस्ट में बेहतरीन परफॉर्म करती रही।
लगातार 2 वर्ल्ड कप में खराब परफॉर्म करने के बाद टीम 1996 में सेमीफाइनल तक पहुंची, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हार गई। टीम 1998 में शुरू हुई ICC की चैम्पियंस ट्रॉफी में रनर-अप रही। 2004 में टीम ने लारा की कप्तानी में चैम्पियंस ट्रॉफी जीती और 2006 में टीम फिर रनर-अप रही।
वेस्टइंडीज टीम में कई दिग्गज बैटर्स रहे, लेकिन टीम ने अपने तेज गेंदबाजों के दम पर ही वर्ल्ड क्रिकेट पर राज किया। 2001 में वॉल्श और एम्ब्रोस ने संन्यास ले लिया। यहां से टीम में क्रिस गेल, मार्लोन सैम्युल्स, रामनरेशन सरवन जैसे बैटर्स आए, लेकिन बॉलर्स कमजोर पड़ गए।
साल 2000 तक जहां टीम में 350 से ज्यादा विकेट लेने वाले 3 बॉलर्स थे और बाकी गेंदबाजों का खौफ ही काफी था। वहीं 2001 से अब तक टीम का कोई भी बॉलर 300 से ज्यादा टेस्ट विकेट नहीं ले सका। यहां तक कि बाकी बॉलर्स में कोई 200 टेस्ट विकेट भी नहीं ले सका है। टीम 2003 के बाद से 21.35% टेस्ट मैच ही जीत सकी है।
पिछले 2 दशक से अपने क्रिकेट के आखिरी फेज में चल रहा वेस्टइंडीज क्रिकेट अब खत्म होने की कगार पर है। टेस्ट के इस फुल मेंबर बोर्ड की हालत एसोसिएट देशों से भी खराब है। टीम ने 2012 और 2016 में टी-20 वर्ल्ड कप जरूर जीता, लेकिन क्रिकेट के सबसे ट्रेडिशनल फॉर्मेट वनडे और टेस्ट में टीम के हालात बद से बदतर होते चले गए।

2017 के बाद टीम ICC चैम्पियंस ट्रॉफी के लिए क्वालिफाई नहीं कर सकी। 2019 के वर्ल्ड कप में टीम क्वालिफायर स्टेज से पहुंची, वहां भी टीम को अफगानिस्तान के खिलाफ हार मिली। 2021 में टीम टी-20 वर्ल्ड के सुपर-12 स्टेज से बाहर हो गई और 2022 में तो उन्हें सुपर-12 स्टेज तक में जगह नहीं मिली।

2023 वनडे वर्ल्ड कप से पहले टीम ने एक बार फिर क्वालिफायर स्टेज खेला, लेकिन इस बार सुपर-6 स्टेज ही क्लीयर नहीं कर सके। 6 टीमों के पॉइंट्स टेबल में टीम पांचवें नंबर पर रही, उनसे आगे जिम्बाब्वे, स्कॉटलैंड, नीदरलैंड्स और श्रीलंका की टीमें रहीं।
बॉलर्स के साथ टीम के बैटर्स का प्रदर्शन भी कमजोर रहा। लारा और चंद्रपॉल ने साल 2000 के बाद ज्यादा क्रिकेट नहीं खेला। क्रिस गेल एकमात्र खिलाड़ी रहे, जिन्होंने वनडे में 10 हजार रन पूरे किए। इनके अलावा कोई बैटर वनडे और टेस्ट में 6 हजार रन का आंकड़ा भी नहीं छू सका।
युवा क्रिकेट से दूर हुए- कैरेबियन आईलैंड्स पर एथलेटिक्स, बास्केटबॉल और फुटबॉल जैसे खेलों ने युवाओं को आकर्षित किया। इससे क्रिकेट प्लेयर्स मिलने कम हो गए। जमैका के उसेन बोल्ट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
आर्थिक तंगी- वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड अपने खिलाड़ियों को आर्थिक रूप से मजबूत नहीं बना सका। 2016 में खिलाड़ियों ने बोर्ड के खिलाफ ही बगावत कर दी। खिलाड़ी अपने खर्च पर टी-20 वर्ल्ड कप खेलने भारत पहुंचे और खिताब भी जीता।
विदेशी लीग को प्राथमिकता दी- पैसा कम मिलने से खिलाड़ी फ्रेंचाइजी क्रिकेट को प्राथमिकता देने लगे। बोर्ड ने भी अपने खिलाड़ियों को टीम में मौका नहीं दिया। जिस कारण आंद्रे रसेल, सुनील नरेन, शिमरोन हेटमायर जैसे खिलाड़ी उपलब्ध होने के बावजूद टीम का हिस्सा नहीं रहे।
मैनेजमेंट कमजोर- प्लेयर्स की प्रतिभा पर अब भी शक नहीं है, लेकिन खिलाड़ियों को एकजुट करने वाले कप्तान की कमी है। वेस्टइंडीज बोर्ड अपने खिलाड़ियों को मैनेज भी नहीं कर पा रहा है।
युवा खिलाड़ी तैयार नहीं हो रहे- बोर्ड युवा खिलाड़ियों को तैयार करने पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहा। इससे टेस्ट और वनडे जैसे ट्रेडिशनल फॉर्मेट में टीम को उभरने में लंबा समय लग जाएगा।