SGPGI के OT में मॉनिटर स्पार्किंग से आग लगने का मामला अभी भी अबूझ पहेली बना हैं। इंडोक्राइन सर्जरी के जिस OT से आग फैली, उसका हाल ही में अपग्रेडेशन और रेनोवेशन किया गया था। घटना के 2 दिन पहले संस्थान के 28वें दीक्षांत समारोह के दौरान पेश की गई डायरेक्टर रिपोर्ट में ये दावा किया गया हैं। वही घटना के बाद संस्थान प्रशासन ने जांच के लिए 3 सदस्यीय समिति का गठन किया हैं। और 3 दिन के भीतर जांच रिपोर्ट सौंपने के आदेश दिए हैं।
सवाल ये उठ रहे हैं कि जिस OT का हाल ही में नए तरीके से रिनोवेशन और अपग्रेडेशन हुआ था, आखिर कैसे वहां भीषण आग लग गई? क्या इस काम के दौरान कोई बड़ी चूक हो गई थी? जिसका नतीजा ये घटना हैं। ऐसे तमाम सवालों के जवाब अभी आने बाकी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सामान्य तौर पर ऐसे उपकरणों में स्पार्किंग हो भी जाए तो इतनी भयंकर आग नहीं लगती। OT में आग लगने से उपकरण आपूर्ति करने वाली एजेंसी भी सवालों के घेरे में है। यह एक तरीके का लगभग पहला मामला है जिसमें किसी OT में लगे मॉनिटर से इतनी बड़ी घटना हुई है। जानकारों का दावा है कि सामान्य रूप से इलेक्ट्रिकल उपकरणों को बेहद सावधानी के साथ बनाया जाता है। उनमें सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन करना होता है। और बात जब OT से संबंधित हो, तो सतर्कता का स्तर और भी बढ़ जाता है। जांच टीम इस पक्ष को भी देख रही हैं कि आखिर मॉनिटर में स्पार्किंग हुई क्यों?
वही सोमवार की घटना में बेहद दर्दनाक तरीके से मरने वाली पीलीभीत की तैयबा के परिजनों में जबरदस्त आक्रोश हैं। मृतक के भाई के मुताबिक तालिब हसन खान के मुताबिक सुबह से ही उसका ऑपेरशन शुरू हो गया था। पैरा थाइरोइड के ऑपेरशन के लिए 14 दिसंबर को संस्थान में भर्ती किया गया था। सर्जरी से पहले उसेप्राइवेट वार्ड में भर्ती किया गया था। ऑपेरशन का एस्टीमेट भी दिया गया था, जिसके बाद 50 हजार जमा भी कराया गया पर इस घटना ने हर किसी को झकझोर दिया। दैनिक भास्कर से बातचीत में तालिब ने आरोप लगाया किया कि घटना के दौरान डॉक्टरों की लापरवाही से ही उनकी बहन की जान गई हैं। उन्होंने बताया कि सुबह 9 के करीब एंडोस्कोपिक सर्जरी की शुरुआत हुई थी अब सर्जरी लगभग पूरी होने वाली थी पर आग लगते ही मरीज को OT में छोड़कर सभी लोग बाहर आ गए। बाद में जब बहन के शव को जब दिखाया गया तो चेहरा पूरी तरह से जल चुका था। मंगलवार को मृतक को सुपुर्दे खाक करने के बाद परिजनों से घटना की शिकायत सीएम से करने की बात कही हैं।
घटना के दूसरे दिन संस्थान में मरीज और तीमारदार सामान्य रूप से पहुंचे। OPD में भी सामान्य भीड़-भाड़ रही। हालांकि सोमवार की घटना की चर्चा जरूर हर ओर होती दिखी। वही घटना के बाद से ओल्ड बिल्डिंग के जी ब्लॉक स्थित इंडो सर्जरी और CVTS डिपार्टमेंट के पोस्ट ऑपरेटिव वार्ड में भर्ती मरीजों के ऑपरेशन टल गए। डॉक्टरों ने राउंड के दौरान बताया कि OT की मरम्मत से ऑपरेशन में करीब एक सप्ताह तक की देरी हो सकती हैं। इसलिए जो मरीज घर जाना चाहते हैं, वे जा सकते हैं। उन्हें OT शुरू होते ही फोन कर बुला लिया जाएगा। इसके बाद कई मरीज छुट्टी कराकर घर चले गए।
संस्थान के निदेशक प्रो.आरके धीमन ने बताया कि संस्थान में सेफ्टी ऑडिट की प्रक्रिया नियमित रूप से की जा रही हैं। संस्थान के इलेक्ट्रिकल इंजीनियर सीपी गुप्ता की निगरानी में सभी इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट्स का बेहतर रखरखाव भी किया जाता हैं। बावजूद इसके सोमवार की घटना से सबक लेते संस्थान की हर बिल्डिंग, हर ब्लॉक और हर वार्ड का नए सिरे से सेफ्टी ऑडिट किया जाएगा। सभी फायर सेफ्टी नॉर्म्स का कड़ाई से पालन किया जाएगा। पुरानी बिल्डिंग के सभी OT में प्रॉपर वेंटिलेशन और एग्जॉस्ट की भी व्यवस्था कराई जाएगी।फायर सेफ्टी, इलेक्ट्रिकल सेफ्टी और एग्जॉस्ट सिस्टम के सभी मानकों को हर हाल में पूरा किया जाएगा।
वही संस्थान की तरफ से रिलीज जारी कर दावा किया गया कि सोमवार के अग्निकांड में OT और ICU में फंसे मरीजों को बचाने में SGPGI के डॉक्टर, रेजिडेंट और कर्मचारियों ने खुद की जान की बाजी लगी दी। 24 मरीजों को बचाकर संस्थान के दूसरे ICU और वार्ड में शिफ्ट कराया। रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान एक गर्भवती महिला डॉक्टर ने धुएं में घुसकर ICU के रोगियों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। इस दौरान उनकी तबीयत बिगड़ने पर बाद में उसे भी ICU में भर्ती कराना पड़ा। इसके अलावा रेस्क्यू ऑपेरशन में लगे डॉ. शमशेरी व टेक्निकल ऑफिसर राजीव सक्सेना को ऑक्सीजन सपोर्ट देना पड़ा।
लखनऊ के बड़े चिकित्सा संस्थान में 15 दिन के भीतर ये आग लगने की दूसरी बड़ी घटना हैं। इससे पहले कल्याण सिंह सुपर स्पेशलिटी कैंसर संस्थान में 4 दिसंबर को आग लग गई थी। संस्थान के OT ब्लॉक में आग लगी थी इस दौरान 100-150 लोगों पर खतरा मंडराया था। पर राहत की बात ये रही कि कोई हताहत नही हुआ था।
15 जुलाई 2017 को KGMU के ट्रामा सेंटर में दूसरे और तीसरे फ्लोर पर आग लग गई थी। जिसमें पांच मरीजों की जान चली गई थी । जिनमें तीन नवजात बच्चे थे। उस वक्त भी सरकार ने इस पूरे मामले को बहुत गंभीरता से लिया था। तीन सदस्यीय कमेटी भी बनाई गयी थी। तब स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह हुआ करते थे। अस्पतालों में फायर सेफ्टी ऑडिट की बात भी कही गई थी। अब SGPGI की घटना ने सभी दावों की पोल खोल दी हैं।