मैंने कभी खाने की कद्र नहीं की। रोज 5-स्टार होटल से खाना मंगवाकर दोस्तों को खिलाती थी। जो बच जाता वो डस्टबिन में फेंक देती। उन्हीं कर्मों का फल है कि आज मैं दाने-दाने को मोहताज हूं और सड़कों से सड़ी-गली सब्जियां बीनकर लाती हूं, वो ही पकाकर खाती हूं।” फिल्म एक्ट्रेस तबस्सुम के सामने अपनी इस हालत को बयां करने वाली ये एक्ट्रेस थीं कुक्कू मोरे।
40 से 60 के दशक के बीच बमुश्किल ही कोई ऐसी फिल्म होती थी, जिसमें कुक्कू का डांस ना हो। ये हिंदी सिनेमा की पहली आइटम गर्ल मानी जाती हैं। इनके एक गाने पर डांस की फीस 6000 रुपए होती थी, उस समय इतने पैसे किसी एक्ट्रेस को पूरी फिल्म में काम करने के लिए भी नहीं मिलते थे।
कुक्कू आलीशान घर में रहती थीं, इनके पास 8000 ड्रेसेस और 5000 जोड़ी जूतों का कलेक्शन हुआ करता था। 3 लग्जरी कारें थीं, जिनमें से एक इनके कुत्तों के लिए ही थी। रोज 5 स्टार होटल से खाना मंगवाती थीं, लेकिन वक्त ने करवट ली और एक समय ऐसा आया कि कुक्कू सड़क पर आ गईं। गुजारे तक के पैसे नहीं बचे थे। ये सड़कों पर फेंकी गई सब्जियां बीनकर लातीं और पकाकर खाती थीं।
कभी फिल्मी पार्टियों की जान रही कुक्कू के आखिरी दिन निहायत गरीबी और अकेलेपन में गुजरे। इनकी मौत पर फिल्मी दुनिया का कोई साथी इन्हें आखिरी विदाई तक देने नहीं आया।
कुक्कू मोरे का जन्म एंग्लो- इंडियन परिवार में 1928 में हुआ था। इनका जन्म कहां हुआ या इनका परिवार कैसा था, इस बात की जानकारी भी हिंदी सिनेमा के इतिहास में कहीं नहीं है। हालांकि अलग-अलग रिपोर्ट्स में इनके कराची या कोलकाता में पैदा होने के दावे किए गए हैं। कई सालों तक लोगों ने यही माना था कि कुक्कू मोरे इनका स्टेज नेम है, हालांकि चंद सालों पहले ही ये कन्फर्म हुआ कि यही उनका असली नाम था।
कुक्कू मोरे ने 1946 में नानूभाई पटेल के निर्देशन में बनी फिल्म अरब का सितारा से हिंदी सिनेमा में कदम रखा था। ये कमाल की डांसर थीं। शरीर में ऐसा लचीलापन था, जो किसी दूसरी डांसर के पास नहीं था। यही कारण था कि ये बतौर डांसर 40-50 के दशक में हर फिल्ममेकर की पहली पसंद रहीं।
महबूब खान की फिल्म अनोखी अदा (1948) से कुक्कू लीड डांसर बन गईं। बिना गाने के कुक्कू का डांस लोगों को खूब पसंद आया। अगले ही साल 1949 की फिल्म अंदाज में कुक्कू को पहली बार क्रेडिट मिला, इसमें उन्होंने डांस के साथ एक्टिंग भी की।
1952 में आई महबूब खान की फिल्म आन में पहली बार कुक्कू मोरे रंगीन फिल्म में दिखीं। फिल्म में नारंगी रंग के कपड़े पहनकर कुक्कू ने लंबे-लंबे डांसिंग शॉट दिए। ये हलचल, आवारा, आरजू, लैला मजनू जैसी उस जमाने की लगभग हर हिट फिल्म का हिस्सा हुआ करती थीं।
40-50 के दशक की बात है जब सोने की कीमत 38- 62 रुपए प्रति तोला थी। उस दौर में कुक्कू मोरे 3- 4 मिनट के एक डांस के लिए 6000 रुपए चार्ज करती थीं। उस जमाने की स्टार कही जाने वालीं रूबी मेयर्स भी पूरी फिल्म के लिए करीब 5000 रुपए चार्ज किया करती थीं, लेकिन कुक्कू सिर्फ चंद मिनटों के 6000 लेती थीं। सोने की कीमत से ही हिसाब लगाया जाए तो आज उन 6000 की वैल्यू 5 करोड़ के बराबर होती है।
कुक्कू अपने जमाने की सबसे रईस हस्तियों में शुमार थीं। इनकी रईसी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब हीरो साइकिल से सेट पर पहुंचा करते थे, तब इनके पास 3 लग्जरी गाड़ियां थीं
एक गाड़ी इन्होंने अपने कुत्तों के लिए खरीद रखी थी, जिसमें उन्हें साथ सेट पर और घुमाने ले जाया जाता था। दूसरी गाड़ी इन्होंने अपने लिए खरीद रखी थी और तीसरी दूसरे कामों में इस्तेमाल की जाती थी।
कुक्कू मोरे अपनी ज्यादातर कमाई लग्जरी लाइफ मेंटेन करने में खर्च किया करती थीं। एक समय ऐसा भी आया जब इनके घर में 8 हजार डिजाइनर ड्रेसेस थीं, जितनी आज भी किसी शोरूम में आसानी से नहीं आ सकतीं।
वहीं इनके पास 5 हजार फुटवियर्स थे। न कोई ड्रेस रिपीट करती थीं न ही फुटवियर। गहने भी एक से बढ़कर एक, जिनकी गिनती तक नहीं थी। हीरोइन भी फैशन के मामले में इनसे पीछे रहती थीं।
कुक्कू मोरे का मुंबई में लग्जरी बंगला था, जिसमें हर जरूरी सामान और कई नौकर-चाकर होते थे। इन्हें जो भी घर पसंद आता था ये खरीद लेती थीं। इनकी रईसी की चर्चा फिल्म इंडस्ट्री के अलावा पूरे देश में थी। कुक्कू मेहमानों पर और अपनी लाइफस्टाइल पर पानी की तरह पैसे बहाती थीं। कहा जाता है कि इनके घर में ज्यादातर 5-स्टार होटलों से ही खाना आता था।
जब रंगून से करीब 867 किलोमीटर पैदल चलकर हेलेन अपनी मां के साथ भारत आईं तो ना उनके पास रहने की जगह थी न कोई सामान। पहले परिवार कोलकाता पहुंचा फिर घर चलाने के लिए बॉम्बे। यहां फैमिली फ्रेंड कुक्कू ने हेलेन की मदद की और उन्हें फिल्मों में काम दिलवाया
कुक्कू ने खुद हेलेन को ट्रेनिंग दी थी और 1951 की फिल्म शाबिस्तान और आवारा (1951) में कोरस डांसर का पहला काम दिलवाया था। इनकी एक कार हेलेन को सेट तक ले जाने और वापस घर लाने में इस्तेमाल होती थी। कुक्कू अक्सर जरूरतमंद लोगों को फिल्मों में काम दिलवाया करती थीं। प्राण को फिल्मों में लाने वाली भी कुक्कू ही थीं।यंग और ब्यूटीफुल हेलेन की बढ़ती पॉपुलैरिटी के साथ कुक्कू मोरे का चार्म दर्शकों में कम होने लगा। इसी बीच वैजयंती माला भी अपने अलग डांस स्टाइल से हिंदी सिनेमा में मजबूत पकड़ बना रही थीं। कुक्कू और हेलेन बिमल रॉय की फिल्म यहूदी (1958) और हीरा मोती में साथ डांस करते हुए भी नजर आईं, लेकिन इनमें हेलेन को ज्यादा अहमियत दी गई थी।
कुक्कू मोरे के लग्जरी घरों, गाड़ियों, कीमती गहनों की चर्चा एक समय इतनी बढ़ने लगी कि बात इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के कानों तक जा पहुंची। एक दिन इनके घर पर रेड पड़ी तो अकेली कुक्कू अपने खर्चों और सामान की पुख्ता जानकारी नहीं दे सकीं।
डिपार्टमेंट ने इनकम टैक्स नियमों का उल्लंघन करने पर इनकी सारी प्रॉपर्टी और कीमती सामान जब्त कर लिया। कुक्कू जब्त की गई संपत्ति का ब्योरा नहीं दे सकीं, तो उन्हें कुछ वापस नहीं मिल सका।
हालांकि एक रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया कि 70-80 के दशक में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट इतना एक्टिव नहीं था कि किसी की पूरी संपत्ति जब्त कर ले।
कुक्कू के पास थोड़ी सी सेविंग्स ही बची थीं, जिसमें वो किराए के घर में रहने चली गईं। कुछ महीनों तक तो वो अच्छे से रहीं, फिर धीरे-धीरे पैसे खत्म होने लगे। हेलेन और वैजयंती माला जैसी कई हीरोइन 70 के दशक में बतौर डांसर अपनी धाक जमा चुकी थीं, ऐसे में कुक्कू को काम भी नहीं मिल रहा था।
गरीबी में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े किसी भी व्यक्ति ने उनकी मदद नहीं की। कुक्कू अपने महंगे शौक पूरे करते हुए कर्ज में दबी थीं, जिसे चुकाते हुए उनका आखिरी घर भी चला गया।
कई रिपोर्ट्स में इनकम टेक्स की रेड का जिक्र नहीं मिलता है। उनमें कुक्कू के आर्थिक संकट का कारण उनकी फिजूलखर्ची और उनका खराब फाइनेंस मैनेजमेंट बताया गया। कुक्कू ने शौक में घर खरीदे, लेकिन उनके डॉक्यूमेंटेशन पर ध्यान नहीं दिया। कहीं पैसे नहीं लगाए और दोस्तों, रिश्तेदारों पर भी खूब खर्च किया। एक जगह ये भी दावा किया गया कि कुक्कू को कुछ लोगों ने जानबूझकर फंसाया था।
कहा जाता है कि कुक्कू एक फिल्म डायरेक्टर के साथ रिलेशनशिप में थीं, लेकिन जब वो बर्बाद हुईं तो उसने भी साथ छोड़ दिया। कई जगह लिखा गया है कि कुक्कू ने कभी शादी नहीं की, लेकिन कहीं ये भी कहा जाता है कि कुक्कू ने शादी की थी और उनका एक बच्चा भी था, लेकिन उनके नवजात बेटे की मौत हो गई थी और कुछ सालों में पति भी गुजर गए थे।
एक्ट्रेस तबस्सुम ने अपने शो तबस्सुम टॉकीज में कुक्कू के बारे में बताया था कि वो अपनी गरीबी का जिम्मेदार खुद को मानती थीं। कुक्कू ने एक बार तबस्सुम से कहा था- जब मेरे पास बेतहाशा पैसे थे तब मैंने उसकी कद्र नहीं की। मैंने पैसे पानी की तरह बहाए। मैंने पैसों से प्यार किया, लेकिन मेरी जिंदगी में दिक्कतें तब शुरू हुईं, जब मैंने खाने की कद्र नहीं की।
मैं बड़े-बड़े 5-स्टार होटलों से खाना मंगवाती थी, दोस्तों को खिलाती थी, खुद भी खाती थी। जो बच जाता था उसे फेंक दिया करती थी। ऊपरवाले को मेरी बेतरतीबी पसंद नहीं आई और आज में एक-एक दाने को मोहताज हो गई हूं। कभी शान से नौकरों से घिरी रहने वालीं कुक्कू खुद अपने घर के सारे काम करती थीं
तबस्सुम ने अपने शो में नम आंखों के साथ बताया कि कुक्कू गरीबी में खाने की तलाश में सड़कों पर निकला करती थीं। रुपए नहीं होते थे तो कोई सामान नहीं देता था। एक समय ऐसा आया जब वो सब्जी की दुकानों के बाहर खड़ी इंतजार करती थीं। जैसे ही सब्जीवाला सब्जी धोकर सड़ी हुई सब्जियां फेंकता था तो कुक्कू उन्हें ही उठाकर घर ले आती थीं। उन्हीं सड़ी सब्जियों को पकाती और खाती थीं।
एक समय जब घर का किराया देने के पैसे भी नहीं बचे तो वो सड़कों पर गुजारा करने लगीं। सड़कों पर ही सोतीं और भीख में जो कुछ मिलता उससे गुजारा करती थीं। जब कुछ नहीं होता तो सड़कों से खाना उठाकर खाती थीं।
1963 के बाद कुक्कू मोरे गरीबी और शर्मिंदगी में लोगों से दूर होती गईं। चंद महीनों में ही लोगों को उनकी खबर मिलनी बंद हो गई। 1980 में उन्हें कैंसर हो गया, लेकिन गरीबी ऐसी कि दवाइयों के पैसे तक नहीं होते थे।
सही इलाज न मिलने से कुक्कू की हालत बिगड़ती गई। 1981 में कुक्कू को टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उन्होंने 30 सितंबर को दम तोड़ दिया। फिल्मों से दूर होने के बाद कुक्कू के साथ क्या हुआ, ये इलाज के दौरान ही पता चल सका।
कुछ लोगों ने मिलकर इनका अंतिम संस्कार करवाया, लेकिन अखबारों में खबर दिए जाने के बावजूद फिल्म इंडस्ट्री से कोई नहीं पहुंचा। एक जमाने में जिस कुक्कू मोरे की एक नजर को लोग मरा करते थे, वो भुखमरी, अकेलेपन और गरीबी में दुनिया छोड़ गईं।