हाईकोर्ट की फिल्म मेकर्स को फटकार: रामायण-कुरान जैसे धार्मिक ग्रंथों को तो बख्शिए

फिल्म आदिपुरुष पर रोक की मांग वाली याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में सोमवार को सुनवाई हुई। वकील कुलदीप तिवारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सेंसर बोर्ड और फिल्म के निर्माता-निर्देशक को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा- रामायण-कुरान, गुरु ग्रन्थ साहिब और गीता जैसे पवित्र ग्रंथों को तो बख्श दीजिए। बाकी जो करते हैं वो तो कर ही रहे हैं।

लखनऊ बेंच में सेंसर बोर्ड की तरफ से वकील अश्विनी सिंह पेश हुए। कोर्ट ने पूछा- क्या करता रहता है सेंसर बोर्ड? सिनेमा समाज का दर्पण होता है। आने वाली पीढ़ियों को क्या सिखाना चाहते हो? क्या सेंसर बोर्ड अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझता है? अब मामले की अगली सुनवाई मंगलवार 27 जून को होगी।
वहीं कोर्ट ने फिल्म के मेकर्स सहित अन्य प्रतिवादियों के कोर्ट में नहीं आने पर भी नाराजगी जताई। सीनियर एडवोकेट रंजना अग्निहोत्री ने सेंसर बोर्ड की ओर से अभी तक जवाब दाखिल नहीं करने पर आपत्ति जताई और कोर्ट को फिल्म के आपत्तिजनक फैक्ट के बारे में बताया।
याचिका दायर करने वाले वकील कुलदीप तिवारी ने बताया कि सुनवाई के दौरान फिल्म के निर्माता-निर्देशक समेत सेंसर बोर्ड को भी फटकार लगी है।

याचिकाकर्ता ने बताया- 2 अक्टूबर 2022 को फिल्म का टीजर रिलीज हुआ था। जिसमें कई आपत्तिजनक तथ्य का पता चला। इस पर 17 अक्टूबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में टीजर और फिल्म दोनों पर बैन लगाने के लिए याचिका डाली थी।

याचिकाकर्ता ने बताया- चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस ब्रिज राज सिंह ने 10 फरवरी 2023 को सेंसर बोर्ड को नोटिस जारी करने का आदेश दिया था। नोटिस मिलने के बाद भी सेंसर बोर्ड ने कोर्ट की अवमानना की और कोई जवाब नहीं दिया। फिल्म मेकर्स ने अपनी रिलीज डेट 6 महीने के लिए यह कहकर टाल दिया कि हम सुधार करेंगे। फिल्म आने पर पता चला कि श्रीराम कथा को ही बदल दिया है।
रावण का चमगादड़ को मांस खिलाए जाने, काले रंग की लंका, चमगादड़ को रावण का वाहन बताने, सुषेन वैद्य की जगह विभीषण की पत्नी को लक्ष्मण जी को संजीवनी देते हुए दिखाना, आपत्तिजनक डायलॉग्स व अन्य सभी तथ्यों को कोर्ट में रखा गया।
फिल्म का टीजर बिना सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट के रिलीज किया गया। जो कि सिनेमैटोग्राफी एक्ट 1952 के सेक्शन 5A/5B का उल्लंघन है। सेंसर बोर्ड ने इसका संज्ञान क्यों नहीं लिया? सेंसर बोर्ड बना किस लिए है?
फिल्म की कहानी और डायलॉग लिखने वाले मनोज मुंतशिर को केस में पार्टी नंबर 15 बनाया जाए। (याचिका में अक्टूबर में फिल्म के निर्माता, निर्देशक, कलाकार, केंद्र सरकार, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय सहित कुल 14 लोगों को पार्टी बनाया गया था।)
फिल्म मेकर्स ने टीजर के रिलीज के बाद आम जनमानस के विरोध के बावजूद भी जानबूझकर धार्मिक आस्था का मजाक उड़ाते हुए फिल्म रिलीज किया। सड़क छाप भाषा का प्रयोग किया गया।
फ़िल्म में श्रीराम कथा को पूरी तरह से बदल दिया गया है। धर्म का मजाक बनाया गया है।
कॉस्ट्यूम से लेकर डायलॉग तक और कहानी का कंटेंट सभी कुछ आपत्तिजनक है, सनातन आस्था का जानबूझकर अपमान किया जा रहा है।
हमारे आराध्य सहित करोड़ों भक्तों और उनकी आस्था व भारतीय संस्कृति का अपमान है। हमारे इतिहास का मजाक बनाया जा रहा है।
आने वाली पीढ़ियों को धर्म से भटकाने का मसाला तैयार किया जा रहा है।
फिल्म से न सिर्फ टपोरी स्टाइल वाले आपत्तिजनक संवाद को हटाया जाए, बल्कि आपत्तिजनक कंटेंट, दृश्य, कॉस्ट्यूम इत्यादि को भी तत्काल हटाया जाए।
सेंसर बोर्ड को फिल्म को प्रमाणपत्र/NOC न देने के लिए आदेश दिया जाए। जिससे फिल्म पब्लिक प्लेटफॉर्म्स या सोशल मीडिया में सर्कुलेट होने से रोका जा सके।
फिल्मी पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए।