क्या पहले जैसी गर्माहट बची है रूस-भारत के रिश्तों में ?

भारत और रूस के रिश्तों में पहले जैसी गर्माहट नहीं रही, ऐसी बातें पिछले कुछ वर्षों से कही जा रही हैं. बुधवार को अचानक से खबर आई कि दोनों देशों के बीच होने वाली वार्षिक बैठक रद्द कर दी गई है. इसके बाद से कई तरह की अटकलें शुरू हो गईं. प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी ने इसे लेकर ट्विटर पर अपनी टिप्पणी में मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया.

रूस भारत का अहम दोस्त है. पारंपरिक संबंधों को नुकसान पहुंचाना हमारी अदूरदर्शिता है और यह भविष्य के लिए खतरनाक है.” राहुल गांधी की इस टिप्पणी के बाद दोनों देशों की तरफ से आधिकारिक बयान आया और बताया गया कि कोविड 19 महामारी के कारण इसे टाला गया है. भारत में रूस के राजदूत निकोलय कुदाशेव ने कहा कि भारत और रूस के संबंध गतिशील हैं.

पुतिन मई 2000 में रूस के राष्ट्रपति बने और तब से भारत-रूस के बीच यह वार्षिक बैठक हो रही है. यह पहली बार है जब वार्षिक बैठक को टाला गया है. कई लोग कोविड महामारी के तर्क को लेकर कह रहे हैं कि बैठक वर्चुअल भी हो सकती थी. ऐसे लोग दोनों देशों के तर्कों से सहमत नहीं हैं. हाल के दिनों में, प्रधानमंत्री मोदी कई वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय समिट में शरीक हुए हैं.
वार्षिक बैठक टलने पर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने भी बयान जारी कर स्पष्टीकरण दिया. उन्होंने कहा, ”वार्षिक बैठक को रद्द करने का फैसला पारस्परिक सहमति से लिया गया है. इसे लेकर किसी भी तरह की अटकलबाजी में भ्रमित करने वाले हैं और उनमें कोई सच्चाई नहीं है. दोनों देशों के रिश्ते बेहद अहम हैं और इसे लेकर किसी भी तरह की फर्जी न्यूज स्टोरी फैलाना एक गैर-जिम्मेदाराना रवैया है.”

वहीं, भारत में रूस के राजदूत निकोलय कुदाशेव ने कहा, ”हम लोग बैठक की नई तारीख को लेकर संपर्क में हैं. हम इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि जल्द ही बैठक का आयोजन किया जाएगा.”
हाल ही में रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव के बयान से दोनों देशों के संबंधों में तनाव को हवा मिली थी. रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लवरोव ने क्वैड गुट पर सख्त टिप्पणी करते हुए भारत को चीन के खिलाफ पश्चिमी देशों की ‘लगातार, आक्रामक और छलपूर्ण’ नीति में एक मोहरा बताया था. क्वैड गुट में भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया हैं. इस गुट को एशिया-पैसिफिक में चीन विरोधी गुट के तौर पर देखा जा रहा है.

सर्गेइ लवरोव ने कहा था, ‘पश्चिम एकध्रुवीय विश्व बहाल करना चाहता है. मगर रूस और चीन के उसका मातहत होने की संभावना कम है. लेकिन, भारत अभी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में तथाकथित क्वैड जैसी पश्चिमी देशों की चीन-विरोधी नीति का एक मोहरा बना हुआ है.’रूसी मंत्री ने ये भी कहा कि पश्चिमी मुल्क भारत के साथ रूस के करीबी संबंध को भी कमजोर करना चाहते हैं.

रूसी विदेश मंत्री ने ये बात नौ दिसंबर को रूसी इंटरेशनल अफेयर्स काउंसिल की बैठक में कही थी. चीन और रूस के बीच संबंध काफी गहरे हैं जबकि भारत और चीन के संबंधों में पर्याप्त तनाव है.

लद्दाख में दोनों देशों की सेना आपने-सामने है. इस तनाव को लेकर भारत ने रूस से भी बात की थी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह दो बार रूस भी जा चुके हैं. हालांकि, इस मामले में रूस से कोई मदद नहीं मिली और लद्दाख में अब भी इस साल अप्रैल के पहले जो स्थिति थी, वो बहाल नहीं हो पाई है.

चीन की सैन्य आक्रामकता के कारण भारत को अमेरिका के करीब जाना पड़ा है तो पाकिस्तान के अमेरिका से संबंध ऐतिहासिक रूप से खराब हुए हैं. पाकिस्तान का चीन सदाबहार दोस्त है. ऐसे में पाकिस्तान, चीन के साथ रूस भी जाता है तो भारत के लिए चिंतित होना स्वाभाविक है.हाल के वर्षों में भारत ने डिफेंस डील में इजरायल को भी काफी तवज्जो दी और अमेरिका, फ्रांस जैसे देशों की भी एंट्री हुई है. विशेषज्ञों का कहना है कि रूस की एक नाराजगी यह भी है.

रूस और भारत की दोस्ती शीत युद्ध से पहले की है, जब रूस सोवियत संघ हुआ करता था. शीत युद्ध के बाद सोवियत संघ का विघटन हुआ और दुनिया एकध्रुवीय हो गई. इसके बाद से रूस और भारत के संबंधों में काफी बदलाव आए हैं.

लेकिन रूस के मन में अमेरिका के ताकतवर होने और सोवियत संघ टूटने की कसक आज तक है. रूस नहीं चाहता है कि अमेरिका के नेतृत्व को भारत स्वीकार कर ले लेकिन बदलती वैश्विक परिस्थिति में भारत के लिए भी किसी एक पक्ष में जाना आसान नहीं है. भारत न तो रूस को नाराज कर सकता है और न ही अमेरिका की उपेक्षा कर सकता है.

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आदर्श कुमार

संस्थापक और एडिटर-इन-चीफ