उत्तराखंड में पार्टी की अंदरूनी खींचतान का समाधान निकलने के बावजूद कांग्रेस हाईकमान और दिग्गज नेता हरीश रावत के बीच सब कुछ दुरुस्त नजर नहीं आ रहा है। पार्टी नेतृत्व के साथ निकले सुलह के फार्मूले के बावजूद रावत की ओर से खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करने की सियासत कांग्रेस हाईकमान को नागवार लगी है। इसको लेकर उसने अपनी नाखुशी का संदेश भी भेज दिया है। समझा जाता है कि नेतृत्व की नाखुशी के इन संकेतों के बाद ही हरीश रावत ने रविवार को खुद के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का जिम्मा सौंपे जाने के बयान में बदलाव करते हुए इसके लिए माफी मांगी।
पार्टी सूत्रों के अनुसार रावत समेत उत्तराखंड के तमाम वरिष्ठ नेताओं की बैठक में आम सहमति से यह तय हुआ था कि औपचारिक तौर पर मुख्यमंत्री का चेहरा कांग्रेस की ओर से घोषित नहीं किया जाएगा। हरीश रावत चुनाव अभियान की अगुआई करेंगे। उत्तराखंड कांग्रेस के गुटीय संतुलन को चुनाव में बनाए रखने की रणनीति के तहत मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने से परहेज का फैसला हुआ ताकि प्रीतम सिंह जैसे नेताओं का भी सहयोग रावत को पूरी तरह से मिल सके।
पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की अंदरूनी सत्ता सियासत को लेकर पिछले कुछ दिनों से चल रहे समीकरण को देखते हुए ही रावत ने अभी से चुनाव बाद सत्ता के दांवपेच की पहल शुरू कर दी थी। राहुल गांधी के साथ शुक्रवार को हुई बैठक के बाद दो-तीन मौकों पर यह सियासी संदेश देने की कोशिश की कि उत्तराखंड में कांग्रेस के चुनावी चेहरे के नाते वे ही मुख्यमंत्री पद के अघोषित उम्मीदवार हैं।
रावत ने प्रदेश में शनिवार को अपनी एक प्रेस कांफ्रेंस में भी इसी तरह की बात दोहराई तो उनके विरोधी खेमे के नेताओं ने उनके बयानों की प्रति के साथ अपनी आशंकाएं और शिकायतें हाईकमान को भेज दीं। चुनावी गहमागहमी के बीच रावत का प्रतिद्वंद्वी खेमा सिरदर्दी न बढ़ाए, हाईकमान ने तत्काल रावत को उनके सियासी बयानों में झलक रही चूक का संदेश दिया। पार्टी संगठन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने रविवार को हाईकमान की नाखुशी का संदेश देते हुए कहा कि जब रावत को चुनावी अभियान की कमान थमा दी गई है तो फिर उन्हें बार-बार अपने नेतृत्व की बात कर अन्य नेताओं की भूमिका को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
समझा जाता है कि इसके मद्देनजर ही रावत ने रविवार को इस बारे में ट्वीट पर सफाई दी और कहा, ‘कल प्रेस कांफ्रेंस में थोड़ी गलती हो गई, मेरा नेतृत्व शब्द से अहंकार झलकता है। चुनाव मेरे नेतृत्व में नहीं, बल्कि मेरी अगुआई में लड़ा जाएगा। मैं अपने घमंडपूर्ण उद्बोद्धन के लिए क्षमा चाहता हूं। मेरे मुंह से यह शब्द शोभाजनक नहीं है।