हरदोई : कालिका देवी के दर पर पूरी होती है मनोकामना

कोथावा के भवानींपुर गांव स्थिति कालिका माता मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है।मंदिर में घंटे और मंत्रोचार के स्वर सुनाई देने लगते हैं। भक्त बड़ी उत्सुकता से माता के मंदिरों में पहुंच कर अपनी मन की मुराद पूरी करने की अरदास लगाते हैं।
जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्राचीन कलिकन देवी का मंदिर विकास खंड कोथावां क्षेत्र के अंतर्गत आता है। वातावरण की दृष्टि से यह मंदिर बेहद रमणीय स्थल है। शहर के कौतूहल से दूर कोथावां कस्बे से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित भवानीपुर गांव के आगे बेहद ऊंचे स्थान पर आदि गंगा गोमती की तलहटी में मां कालिका का यह मंदिर स्थित है। मंदिर के चारों ओर पलाश के फूलों से लदे वृक्ष यहां पर आने वाले भक्तों का मन मोह लेते हैं, वहीं दूसरी ओर आदि गंगा गोमती की कल-कल करती धारा अविरल बह रही है और चारों ओर हरियाली ही नजर आती है। यहां पर दूरदराज से आने वाले माता के भक्त मां के दर्शन के बाद इस रमणीय स्थल पर शांति का अनुभव करते हैं। मंदिर के प्रधान पुजारी उमाकांत शुक्ला के अनुसार माता जी का मंदिर प्राचीन है। उन्होंने बताया कि मंदिर के विषय में उन्हें पूर्वजों से जानकारी मिली है कि इस स्थान पर सबसे पहले शिवजी का मंदिर था जो आज भी है, जहां पर उद्वोलक मुनि पूजा अर्चना करते थे। चारों तरफ जंगल और यहां से निकली गोमती नदी मंदिर के महत्व को और बढ़ाती थी। आसपास कोई गांव नहीं थे।सन् 1854 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में राजा बाजीराव पेशवा द्वितीय की सेना अंग्रेजों से परास्त हो गई। जान बचाकर बाजीराव पेशवा द्वितीय ने भटकते हुए इसी स्थान पर मां कालिका के चरणों में शरण ली और अंतिम क्षण तक माता की सेवा करते हुए अपना जीवन त्याग दिया। आज भी पेशवा की समाधि मंदिर परिसर में बनी हुई है।माता कालिका के मंदिर में चैत्र और क्वार माह के नवरात्रों के दिनों मे श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। दूरदराज से भक्त अपनी मनकामनाओं की पूर्ति के लिए माता की चौखट पर आते हैं। विशाल रूप धारिणी माता कालिका अपने भक्तों के सभी दुखों का हरण करके उन्हें मनोवांछित फल प्रदान करने के लिए तत्पर रहती है।