हरदोई : जिला कृषि रक्षा अधिकारी नरोत्तम कुमार ने किसान भाईयों को सूचित किया है कि, वर्तमान में गाजर घास जिसे आमतौर पर पारथेनियम ग्रास, सफेद टोपी, असाढी गाजर एवं चटक चांदनी नाम से जाना जाता है, एक विदेशी आक्रामक खरपतवार है जो कि प्रति दिन एक गम्भीर समस्या का रूप ले रहा है। 1950 के दशक में अमेरिका से आया यह खरपतवार पहले रेलवे ट्रैक, सड़क के किनारे बंजर और खाली पड़ी जमीनों में पाया जाता था। परन्तु अब यह खेतों तक पहुँच कर किसानों की उपज पर बुरी तरह नुकसान पहुँचा रहा है। यह अत्यन्त विनासकारी खरपतवार है, जिसकी वृद्धि बरसात के मौसम मे बहुत तेजी से होती है। इसमे एक पौधे से लगभग 5000-25000 बीज प्रति पौधा पैदा करने की क्षमता रहती है। यह मुख्यतः बीजों से फैलता है, इनके बीजों का प्रकीर्णन हवा द्वारा होता है, जिससे इनकी संख्या मे बढोत्तरी तेजी से होती है। इसके अलावा मनुष्यों की त्वचा सम्बन्धी बिमारियों जैसे- एग्जिमा, एलर्जी, बुखार तथा दमा जैसी बिमारियों का भी प्रमुख कारण है। इसके रोकथाम हेतु वर्षा ऋतु में गाजर घास को फूल आने से पहले जड़ से उखाड़ कर कम्पोस्ट अथवा वर्मी कम्पोस्ट बनाना चाहिये। वर्षा आधारित क्षेत्रों में शीघ्र बढने वाली फसलें जैसे-ढैचा, ज्वार, बाजरा तथा मक्का आदि फसलें लेनी चाहिये। तथा घर के आस-पास बाग बगीचों में गेंदा का पौधा उगाकर गाजर घास के फैलाव एवं वृद्धि को रोका जा सकता है। इसके रासायनिक नियंत्रण हेतु ग्लाइफोसेट (1.0 से 1.5 प्रतिशत) अथवा मैट्रीब्यूजिन (0.3 से 0.5 प्रतिशत) का छिडकाव करना चाहिये। जैविक नियंत्रण हेतु मैक्सिकन बीटल (जाईगोग्रामा बाइक्लोराटा) नामक कीट को वर्षा ऋतु में गाजर घास पर छोडना चाहिये। इस क्रम मे अप्रिय खरपतवार का प्रबन्धन एवं उन्मूलन हेतु जनपद में कृषि विभाग द्वारा 16 से 22 अगस्त, 2023 गाजर घास नियंत्रण जागरूकता सप्ताह का अयोजन किया जा रहा है। अतः जनपद के सभी किसान भाइयों से अपील है कि इस हानिकारक खरपतवार के उन्मूलन के लिये विशेष प्रयास करें।