सवाल उठता है कि हम लोकसभा में वोट देकर अपने क्षेत्र का सांसद चुनते हैं, लेकिन जब बारी राज्य सभा की आती है तो हमारे-आपके जैसे वोटर को पूछने वाला कोई नहीं होता है, क्योंकि संविधान की व्यवस्था ही ऐसी है. ऐसे में हम राज्यसभा के पूरे गणित को समझने की कोशिश करते हैं और जानने की कोशिश करते हैं कि जब हम और आप जैसे वोटर इन राज्यसभा के सांसदों के लिए वोट नहीं देते हैं, तो फिर इनको वोट देता कौन है और कैसे इनका चुनाव किया जाता है.
- राज्यसभा होती क्या है?
भारत में संविधान के लागू होने के साथ ही लोकसभा की व्यवस्था हो गई थी. लेकिन फिर 1952 में हुए पहले आम चुनाव के बाद ये तय हुआ कि संसद का एक और सदन होगा, जिसे राज्य सभा कहा जाएगा और ये सदन संसद का उच्च सदन होगा. 23 अगस्त, 1954 को औपचारिक तौर पर राज्यसभा के गठन की घोषणा की गई. संविधान के अनुच्छेद 80 में व्यवस्था है कि राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 होगी. इनमें से 12 सांसदों का चुनाव राष्ट्रपति करेंगे. बाकी के बचे हुए 238 सदस्यों को अलग-अलग राज्यों के विधानसभा के विधायकों के अलावा केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली और पुडुचेरी के विधायक मिलकर वोटिंग के जरिए चुनेंगे. यही वजह है कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, चंडीगढ़, दमन और दीव के साथ ही दादरा और नगर हवेली का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व नहीं है. फिलहाल राज्यसभा के कुल सदस्यों की संख्या 245 है, जिनमें से 12 का चुनाव राष्ट्रपति करते हैं. बाकी बचे 233 सदस्य राज्यों से चुने जाते हैं.
2.राज्य में कैसे तय होती हैं राज्यसभा की सीटें?
एक बात नोट कर लीजिए कि राज्यसभा में 250 से ज्यादा सदस्य नहीं हो सकते. 12 का चुनाव राष्ट्रपति करेगा. तो इस लिहाज से देश के सभी राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों में कुल मिलाकर 238 सदस्य होंगे. अब इन सदस्यों को राज्यों की जनसंख्या के आधार पर बांटा जाता है. उदाहरण के लिए सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला राज्य है उत्तर प्रदेश तो वहां पर राज्यसभा की सीटे हैं 31. फिर नंबर आता है महाराष्ट्र का. वहां पर सदस्यों की संख्या है 19. इसी तरह से तमिलनाडु में 18 राज्यसभा सांसद हैं. इसी तरह से बिहार और पश्चिम बंगाल में 16-16 सदस्य हैं. ऐसे ही सभी राज्यों के लिए सदस्यों की संख्या निर्धारित है. इनमें बदलाव तभी होता है, जब नए राज्य का गठन होता है. उदाहरण के लिए अविभाजित आंध्रप्रदेश में कुल 18 सीटें होती थीं. जब तेलंगाना बना तो फिर आंध्र के हिस्से 11 सीटें आईं और तेलंगाना के हिस्से में सात सीटें.
- हर साल क्यों होते रहता है चुनाव?
ये भी बड़ा दिलचस्प सवाल है. लोकसभा का चुनाव तो पांच साल में होता है, लेकिन राज्य सभा का चुनाव कभी हर साल तो कभी साल में दो बार भी हो जाता है. इसकी वजह ये है कि राज्यसभा एक स्थाई सदन है, जो कभी भंग नहीं होती है. इसके सदस्यों का चुनाव छह साल के लिए होता है. जैसे-जैसे कार्यकाल पूरा होता रहता है, चुनाव होता रहता है. अब फिलहाल के चुनाव को ही ले लीजिए. 17 राज्यों की 55 सीटें खाली हो रही हैं इस साल अप्रैल में. इनमें महाराष्ट्र की 7, तमिलनाडु की 6, पश्चिम बंगाल की 5, बिहार की 5, ओडिशा की 4, आंध्र प्रदेश की 4, गुजरात की 4, मध्य प्रदेश की 3, राजस्थान की 3, असम की 3, तेलंगाना की 2, छत्तीसगढ़ की 2, हरियाणा की 2, झारखंड की 2, हिमाचल की 1, मणिपुर की 1 और मेघालय की 1 राज्यसभा सीटें खाली हो रही हैं. इसलिए अब इन 55 सीटों पर चुनाव होना है. - कैसे होता है चुनाव और कौन देता है वोट?
राज्यसभा के चुनाव के लिए सिंगल ट्रांसफरेबल वोट (STV)सिस्टम होता है. अमेरिका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, नेपाल, ब्रिटेन, माल्टा और आयरलैंड जैसे देशों में इस सिस्टम के जरिए ही चुनाव होता है. इसको समझने के लिए चलते हैं मध्यप्रदेश. वहां पर विधानसभा की कुल सीटें हैं 230 सीटें हैं. यहां पर राज्यसभा के सदस्यों की संख्या 11 है. मान लीजिये की अब यहां चुनाव हैं. ऐसे में एक सीट जीतने के लिए कितने वोट चाहिए, इसको समझने की कोशिश करते हैं.
राज्यसभा सीटों की संख्या है 11. नियम के मुताबिक अब इसमें एक जोड़ना होगा.
हो गया 12. अब इस 12 से विधायकों की संख्या यानी 230 में भाग दिया जाएगा.
नतीजा आएगा 19.16. अब इसमें फिर से एक जोड़ दिया जाएगा तो नतीजा आएगा 20.16 राउंड फिगर होगा 20.
यानी मध्यप्रदेश में एक राज्यसभा की सीट के लिए 20 लोग वोट करेंगे.
अगर सीटों की संख्या कम होती हैं, तो उसी हिसाब से वोटों की संख्या बढ़ जाती है. जैसे इस साल मध्यप्रदेश में 3 सीटों पर चुनाव होना है.
3 में 1 जोड़ेंगे. आएगा 4. अब इस 4 से 230 में भाग देंगे. नतीजा आएगा 57.5. अब इसमें एक जोड़ा जाएगा तो होगा 58.5 राउंड फिगर होगा 58.
यानी मध्यप्रदेश में 26 मार्च को जो राज्यसभा के चुनाव हो रहे हैं, उसमें एक सीट के लिए 58 विधायकों का वोट चाहिए.
इसमें भी विधायकों को प्राथमिकता के आधार पर वोट देना होता है. अगर एक ही सीट के लिए अलग-अलग चार उम्मीदवार हैं, तो फिर वोट देने वाले विधायक को ये बताना होता है कि उसकी पहली पसंद कौन है, दूसरी कौन, तीसरी, चौथी और पांचवी पसंद कौन है. पहली पसंद के वोट जिसे ज्यादा मिलेंगे, वही जीता हुआ माना जाएगा. वोटिंग के दौरान ही विधायक को बताना होता है कि उसकी पहली प्राथमिकता का वोट किसे जा रहा है और दूसरी का किसे. अगर पहली पसंद के वोट बराबर हो गए, तो फिर दूसरी पसंद के वोट के आधार पर फैसला होता है.