गुलज़ार साहब जन्मदिन कुछ उनके जीवन की अनसुनी कहानियां

कभी कोई गाना सुनते हुए उसके बोल दिल-ओ-दिमाग पर घर कर जाएं तो जहन में पहला सवाल यही आता है कि ये गाना कहीं गुलजार साहब ने तो नहीं लिखा?… क्योंकि हर एक भाव को उमदा अंदाज में शब्दों को पिरोने की कला उनकी कलम के अलावा भला और कहां पढ़ने, सुनने को मिलती है। आज गुलजार साहब का जन्मदिन है। इस महान शख्सियत के जन्मदिन आइए जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़़ा एक खास किस्सा…
गुलजार साहब का जन्म विभाजन से पहले 18 अगस्त 1934 में पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब के दीना में हुआ। लेकिन विभाजन के बाद गुलजार साहब अपने परिवार के साथ भारत आ गए थे। उस वक्त गुलजार साहब की उम्र महज 8 साल थी। आपको ये जानकार हैरानी होगी कि गुलजार साहब ने अपने दिल में 70 साल तक अपनी एक इच्छा को जिंदा रखा। गुलजार पाकिस्तान में बीते अपने बचपन, घर और गलियों को एक बार फिर देखना चाहते थे। अपनी इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए गुलजार साहब साल 2015 में पाकिस्तान गए। 70 साल बाद अपनी बचपन की यादों को ताजा कर पाकिस्तान से लौटे गुलजार ने पाकिस्तान जाने के उनके अनुभव को शेयर भी किया था।
गुलजार ने अपने पाकिस्तान में अपने अनुभव को शेयर करते हुए कहा, ‘70 साल के बाद आप जब दोबारा उस जगह जाते हैं, वो घर वहां पाते हैं, वो गली वहां पाते हैं, वो स्कूल देखते हैं। तो ये बहुत ही भावनात्मक अनुभव होता है।’ गुलजार ने आगे कहा, पाकिस्तान में अपने घर को देखकर मेरे बचपन की यादें ताजा हो गईं थी। उस समय मेरा कुछ पल अकेले रहने का मन था। मैं अकेले बैठकर रोना चाहता था लेकिन जब लोग आपको जानते हों तो ये आपके लिए कई बार अड़चन भी बन जाता है। क्योंकि जब उस वक्त लोगों की भीड़ आपके आसपास हो तो आप वो गली कैसे देखेंगे, भीड़ हटती तो पूरी गली देखता।’
बता दें पाकिस्तान जाने के एक्सपीरियंस को गुलजार साहब ने मराठी अखबार लोकमत के गेस्ट एडिटर के तौर पर साझा किया था। उनकी इस पाकिस्तान के यात्रा को दोनों देशों की मीडिया ने भी कवर किया था। गुलजार ने इस बारे में आगे कहा था कि पाकिसतानी लोग बहुत अच्छे थे। उन्होंने मुझे मेरा घर अंदर से देखने दिया। कुछ बुज़ुर्ग वहां मिले, बहुत बूढे़ थे। कुछ तो मेरे परिवार वालों को जानते भी थे। एक मेरे बड़े भाई को जानते थे, एक को मेरी बहन का नाम पता था और एक को मेरी मां का नाम भी याद था। यही नहीं एक बुज़ुर्ग तो मेरे मामा को भी जानते थे।
गुलजार ने कहा कि उन्होंने मेरे कई ऐसे रिश्तेदारों के बारे में भी पूछा जिनके बारे में हमें ही पता नहीं था कि वो अब कहां जाकर बस गए। गुलजार आगे बोले, ‘वहां मौजूद लोगों में एक ने पंजाबी में हंसकर बोला, ‘तेरा बाप आता था तो किराए के पांच रुपए लेता था, अब मालिक मकान तू है और यहां आया है तो पांच रुपए ले जा।‘ गुलजार साहब ने बताया था कि ये सब बातें सुनकर वह अकेले बैठकर रोनाा चाहते थे। वहां अकेले बैठकर कुछ वक्त बिताना चाहते थे। गुलजार ने यह भी कहा था कि ये सब सुनकर और देखकर उनका मन इतना भर आया कि वह वहां से बिना कुछ खाए चले गए। लोगों ने बहुत इंतजाम भी किए थे लेकिन उस वक्त उनका कुछ खाने का मन नहीं था और वह वहां से निकल गए। उनके इसी कदम को बाद में लोगों ने बुरा बर्ताव बताया था।