एक हैरतअंगेज मामले में पाकिस्तान के लाहौर शहर में एक न्यायाधीश ने एक भारतीय नागरिक को सरकारी जमीन आवंटित कर दी। पाकिस्तान के कानून के अनुसार यह भू आवंटन नियम विरुद्ध हुआ। 57 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट ने इसे गंभीर कानूनी गलती करार दिया है। भू आवंटन का आदेश देने वाले न्यायाधीश ने यह कार्य गलती से नहीं किया था। लाभ पाने वाले भारतीय ने उनके समक्ष अपने विदेशी होने के कई सुबूत रखे थे। लाभार्थी को शत्रु देश भारत का नागरिक जानने के बाद भी न्यायाधीश ने उसे लाहौर के मौजा मलकू इलाके में जमीन आवंटित की।
यह जमीन 1947 में बंटवारे के समय पाकिस्तान छोड़कर भारत गए लोगों की थी। मौजा मलकू अब लाहौर के छावनी क्षेत्र का हिस्सा है। इसकी 23 कनाल नौ मरला (11,861 वर्ग मीटर) जमीन भारतीय नागरिक मुहम्मद उमर, पुत्र जग्गू मेव को आवंटित की गई। वह भारत के हरियाणा प्रदेश के फिरोजपुर झिरका जिले के मौजा उमरा के रहने वाले थे। राजस्व कार्यालय के अनुसार मुहम्मद उमर बंटवारे के कई साल बाद पाकिस्तान आए थे। विभाग के दस्तावेजों में जमीन के कब्जेदार के रूप में उनका नाम 1964 में दर्ज हुआ। यह मामला 45 साल बाद तब खुला जब अब्दुल रहमान और अन्य ने अदालत में अर्जी देकर खुद के उमर का उत्तराधिकारी होने का दावा किया।
यह अर्जी उमर की 2002 में मौत के बाद दायर की गई। अर्जी में गुजारिश की गई कि मुहम्मद उमर की मौत के बाद 23 कनाल नौ मरला जमीन राजस्व रिकार्ड में अब्दुल रहमान, सुभान खान, इलियास खान और सुभानी के नाम दर्ज की जाए। अर्जी में इन सभी ने खुद को भारत का स्थायी निवासी बताया। इसी के बाद दशकों पुराना मामला खुला और पता चला कि जमीन का आवंटन एक न्यायाधीश के गलत आदेश के चलते हुआ था। अर्जी देने वालों ने मुहम्मद उमर की मृत्यु का भारत में बना प्रमाण पत्र अदालत में पेश किया। उमर की मौत हरियाणा के फिरोजपुर झिरका जिले में सन 2002 में हुई थी। मामला सामने आने के बाद पाकिस्तान के सरकारी अमले में अफरातफरी मच गई और आवंटन को रद करने की प्रक्रिया शुरू की गई।