भारत आज जिस संकट में फंस गया है उसका बयान इसी तरह किया जा सकता है. वह ऑक्सीजन से लेकर एन-95 मास्क तक और ऑक्सीमीटर से लेकर वैक्सीन तक तमाम चीजों के लिए बड़े देशों से मदद मांग रहा है. और ये सारी चीजें लेकर जब विशाल मालवाही विमान हमारी धरती पर उतरेंगे तब हमारे तमाम केंद्रीय मंत्री खुशी से ट्वीट कर रहे होंगे. अभी कुछ सप्ताह पहले तक वे इस संभावना को बड़ी नफरत से खारिज कर रहे थे कि हमारे ‘न्यू इंडिया’ को विदेशी मदद की जरूरत पड़ सकती है.हमारी आज जो हालत है वह घर में चीनी खत्म होने वाली हालत से कहीं ज्यादा बुरी है. जब इमरान खान और शी जिंपिंग भी उदारता से आपकी मदद करने को आगे आ रहे हैं तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप अंधी गली में पहुंच गए हैं. वे जो संदेश दे रहे हैं उसे समझिए. एक हमसे यह कह रहा है कि हम जो दिखावा करते रहे हैं, दरअसल हम उतनी बड़ी ताकत नहीं हैं.
जब हम अपनी केवल 1.5 प्रतिशत आबादी को ही वैक्सीन की खुराक दे पाए थे तभी प्रधानमंत्री ने दुनिया में ऐलान कर दिया था कि भारत ही उसका दवाखाना है. भारत में वैक्सीन के सबसे बड़े उत्पादक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) को अगर विदेश से मिले ऑर्डर पूरे करने की इजाजत दी जाए या हमारी सरकार कुछ मित्र देशों को वैक्सीन भेंट में देकर ‘वैक्सीन मैत्री’ की बातें करें तो हम इसका स्वागत करेंगे.
बड़े देशों को ऐसा करना भी चाहिए लेकिन तभी जब ऐसे बड़े देश अपनी हालात पर भी गौर करें और ऐसा न हो कि वे जो चीज भेंट में दे रहे हैं उसी की तलाश में दुनिया भर के चक्कर लगा रहे हों. अगर आपके घर में कटोरी भर ही चीनी बची हो तब क्या आप उसे पड़ोसी को उधार देंगे?