(कटरा बाजार अन्तर्गत ग्राम पंचायत चरेरा के मजरा सहजोत में आर्यनगर- कर्नलगंज मार्ग पर पेट में भाला घुसा भटक रहा एक सांड़ नुमा बछड़ा) (गौरक्षा की दुहाई देने वाले जिम्मेदार लोग और शासन प्रशासन धृतराष्ट्र की भूमिका में)
कर्नलगंज/कटराबाजार गोण्डा। देश और प्रदेश में खुद को गायों, बछड़ों की हिमायती कहलाने वाली बीजेपी सरकार के सत्ता में होने के बावजूद गौमाता कही जाने वाली बेजुबान गायें व उनके बछड़े जिन्हें पशुधन का दर्जा प्राप्त है और सरकार आये दिन उनके समुचित भरण पोषण देखरेख और सुरक्षा के दावे कर रही है और सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है वहीं धरातल पर सभी दावे की कलई खोलते हुए गौवंश काफी संख्या में भूंख प्यास से बेहाल होकर भाले और लाठी डंडे का दर्द झेलने के लिए मजबूर होने के साथ साथ असमय काल के गाल में समा रहे हैं। वहीं गौरक्षा की दुहाई देने वाले जिम्मेदार लोग और शासन प्रशासन धृतराष्ट्र की भूमिका में है।
मालूम हो कि मानवता को शर्मशार करते हुए गौरक्षा की दुहाई देने वाले लोगों और शासन प्रशासन के दावों की बखिया उधेड़ने वाला यह मामला तहसील क्षेत्र कर्नलगंज के थाना कटरा बाजार अन्तर्गत ग्राम पंचायत चरेरा के मजरा सहजोत में सामने आया है, जहां आर्यनगर- कर्नलगंज मार्ग पर एक बछड़े के पेट में किसी के द्वारा भाला घुसाकर मारने का प्रयास किया गया। निर्दयता की पराकाष्ठा पार करते हुए लोग अब भी उसे कहीं खड़ा नहीं होने देते हैं। उक्त बछड़ा रोड पर इधर से उधर उधर से इधर भाग -भागकर अपनी जान बचाने के लिए बिलबिला रहा है। वहीं यह हृदयविदारक घटना प्रदेश सरकार के द्वारा खोले गए कान्हा गौशाला की हकीकत बयां करते हुए सरकार के दावे की पोल खोलती नज़र आ रही है। जो आम जनमानस के गले नहीं उतर रही है। जबकि पशुओं की बेचारगी इस कदर परिलक्षित हो रही है कि गाय बछड़ों को सिर्फ किताबों में पढ़ाया जायेगा। वहीं यह पशु अब कैसे जिंदा रह सकेंगे इसमें संशय के बादल मंडरा रहे हैं। सूत्रों से पता चला कि ऐसे ही थाना क्षेत्र कर्नलगंज अन्तर्गत ग्राम पंचायत हंड़िया गाड़ा में एक व्यक्ति ने भाला मार कर एक बछ़डे को
घायल कर दिया जिससे उसकी कुछ ही क्षणों बाद मौत हो गई। उक्त गांव में बात फैली लेकिन बताया जा रहा कि गांव के प्रभावशाली लोगों द्वारा मामले को रफा-दफा कराकर जे०सी०वी० से गड्ढा खोदवा कर बेजुबान बछड़े को जमीन में गड़वा दिया गया। बताते चलें कि तीन दशक पहले तक किसानों के यहां गायें बछड़ों को जन्मती थी तब उत्सव जैसा माहौल होता था और उस दिन घर में पकवान बनता था कि आज हमारे घर में एक सदस्य और आ गया है। वहीं अब मशीनरी युग में इन गायों,बछ़डो को लोग खोलकर छोड़ देते हैं जिन्हें बांध कर रखने और खुला छोड़ने के संबंध में ठोस कार्रवाई जिम्मेदारों द्वारा ना करने से इनकी यह बदतर हालत बनी हुई है। ऐसे में गंभीर सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक भूंख प्यास से बेहाल होकर इस तरह मरते और तड़पते रहेंगे गौवंश और कब खुलेंगी जिम्मेदार लोगों की आंखें? इसका जवाब किसी के पास नहीं है।