हिंद प्रशांत क्षेत्र पर जर्मनी खुलकर सामने आ गया है। वह न सिर्फ दक्षिण चीन सागर समेत समूचे हिंद प्रशांत क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करने की बात कर रहा है बल्कि इस क्षेत्र में भारत के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाने पर सहमति भी दे रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जर्मनी के चांसलर ओलाफ शुल्ज की अध्यक्षता में दोनों देशों के बीच गठित समूह (आइजीसी) की बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान इस बात की तरफ इशारा करता है कि यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद वैश्विक परिदृश्य में तेजी से बदलाव हो रहे हैं।
अगर देखा जाए तो पिछले पखवाड़े के भीतर ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जानसन और यूरोपीय आयोग की प्रेसिडेंट उर्सुला लेयन के बाद हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत को साझीदार के तौर पर चिह्नित करने वाला जर्मनी तीसरा पक्षकार है। हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर जर्मनी अभी तक बहुत मुखर नहीं रहा है। संभवत: यह पहला मौका है जब जर्मनी ने किसी दूसरे देश (भारत) के साथ मिलकर सीधे चीन पर निशाना लगाने वाले बयान दिए हैं।
संयुक्त बयान में कहा गया है कि दोनों देशों ने हिंद प्रशांत क्षेत्र को खुला, सभी के लिए समान अवसर वाला व कानून सम्मत बनाने और इस क्षेत्र को पूरी तरह से आसियान केंद्रित बनाने पर सहमति जताई है। दोनों पक्ष मानते हैं कि इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक जहाजों की आवाजाही को सुरक्षा देने और कारोबार की आजादी होनी चाहिए। पूरे हिंद प्रशांत क्षेत्र में और दक्षिण चीन सागर में समुद्री विवादों को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के कानून (यूएनसीएलओएस, 1982) का पालन होना चाहिए।
संयुक्त बयान में हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत के साथ सैन्य साझेदारी का स्वागत किया गया है। सनद रहे कि जनवरी, 2022 में जर्मनी के सबसे बड़े नौ सैनिक जहाज बायर्न ने मुंबई बंदरगाह पर डेरा डाला था। अगले साल भारतीय नौ सेना का जहाज जर्मनी जाएगा। इसे दोनों देशों के बीच हिंद प्रशांत में नौ सैनिक सहयोग की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है।
बर्लिन में हुई आइजीसी की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा विदेश मंत्री एस. जयशंकर, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी उपस्थित थीं। यह दोनों देशों के बीच हुई आइजीसी की छठी बैठक थी। शुल्ज ने भारत को एक महत्वपूर्ण साझीदार बताते हुए कहा कि जर्मनी भारत के साथ हर क्षेत्र में अपनी साझीदारी को मजबूत करने को इच्छुक है।
दोनों नेताओं ने संयुक्त बयान में हर तरह के आतंकवाद की कड़ी निंदा की है और हर देश से आग्रह किया है कि वे किसी भी तरह की आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा न दें। अफगानिस्तान के संदर्भ में भी यही बात कही गई है। बयान में कहा गया है कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की जर्मनी ने कड़ी निंदा की है।
साफ है कि भारत यहां भी रूस की निंदा करने से बचा है। लेकिन यूक्रेन में मानवीय त्रासदी को लेकर दोनों तरफ से चिंता जताई गई है और हर देश की संप्रभुता व अखंडता का आदर करने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का आदर करने की बात कही गई है। यूक्रेन को लेकर दोनों देश आगे भी संपर्क में रहेंगे।
हिंद प्रशांत क्षेत्र के अलावा भारत के लिहाज से दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों देशों के बीच शीघ्र ही एक दूसरे के छात्रों, पेशेवरों, शोधकर्ताओं की आवाजाही के प्रवाह को बढ़ाने और गैरकानूनी तौर पर आने वाले प्रवासियों पर रोक लगाने के लिए एक व्यापक समझौता होने जा रहा है। मोदी और शुल्ज ने इस बारे में बनी सहमति का स्वागत किया है।
जर्मनी ने हाल ही में केरल से प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मचारियों को बुलाने के लिए एक खास समझौता किया है और अब ऐसा ही समझौता जर्मनी की एजेंसी दूसरे राज्यों के साथ करेगी ताकि जर्मनी की जरूरत के मुताबिक प्रशिक्षित पेशेवरों को वहां ले जाया जा सके। इससे जर्मनी में भारतीय युवाओं को काम करने का बेहतरीन अवसर मिलेगा। दोनों देशों के विश्वविद्यालयों के बीच संयुक्त तौर पर पाठ्यक्रम चलाने और संयुक्त तौर पर डिग्री देने को लेकर भी सहयोग करने पर सहमति बनी है।
भारत और जर्मनी के बीच हाइड्रोजन को बतौर ईंधन इस्तेमाल करने पर सहयोग के लिए एक टास्क फोर्स भी गठित की गई है। भारत ने पिछले वर्ष ही ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत की है जिसको लेकर दुनिया के कई देश काफी उत्साहित हैं।