बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को जनवरी 2024 में होने वाले चुनाव से जुड़ा अहम फैसला दिया। देश की कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी (JUI) अगले चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकेगी। इस पर 2013 में इलेक्शन बैन लगाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा है। बांग्लादेश में 7 जनवरी को आम चुनाव होना है।
बांग्लादेश के अखबार ‘ढाका ट्रिब्यून’ के मुताबिक- इस फैसले का सीधा फायदा प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को होगा। जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश शेख हसीना की सेक्युलर पॉलिसी का सख्त विरोध करती है। जमात पर बांग्लादेश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा कराने के आरोप हैं।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ओबैदुल हसन की अगुआई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने यह फैसला सुनाया। बेंच ने कहा- JUI हमारे देश के सेक्युलर स्टेटस और संविधान को नहीं मानती। 2013 में इसके बतौर सियासी दल चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई थी। इसे हटाने की अब भी कोई वजह नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट को रविवार को फैसला सुनाना था, लेकिन JUI के वकील बेंच के सामने पेश ही नहीं हुए। उन्होंने 6 हफ्ते के लिए सुनवाई रोकने की अपील भी की थी। इसे भी बेंच ने खारिज कर दिया।
ढाका हाईकोर्ट ने 10 साल पहले इलेक्शन कमीशन को आदेश दिया था कि वो JUI का बतौर पॉलिटिकल पार्टी रजिस्ट्रेशन कैंसिल करे। खास बात यह है कि उस वक्त इसका चुनाव चिन्ह और बाकी चीजें बैन कर दी गईं थीं, लेकिन इसकी एक्टिविटीज पर रोक नहीं लगाई गई थी। JUI पर आरोप है कि उसने 1971 में पाकिस्तान से आजादी की जंग का विरोध किया था।
बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना 2009 में सत्ता में आईं थीं। हसीना ने JUI के बड़े नेताओं पर एक्शन लिया। इन पर आरोप था कि ये नेता आजादी की जंग के दौरान पाकिस्तानी फौज के नरसंहार और वॉर क्राइम्स का समर्थन करते हैं। 2013 में JUI के कुछ नेताओं को फांसी दी गई और कुछ को ताउम्र जेल में रहने की सजा सुनाई गई।
रविवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकारी वकील तानिया आमिर ने कहा- सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा है। अगर JUI कोई मीटिंग करती है, किसी एम्बेसी से संपर्क करती है या कोई गैर कानूनी काम करती है तो सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का केस भी उस पर चलेगा।
दूसरी तरफ, JUI के वकील रहमान अकांदा ने कहा- हम पॉलिटिकली एक्टिव रहेंगे। कोर्ट ने रजिस्ट्रेशन पर फैसला दिया है। इसमें कहीं ये नहीं कहा गया है कि हम चुनाव क्षेत्रों में संपर्क नहीं कर सकते।
JUI का मामला थोड़ा पेचीदा है। दरअसल, इलेक्शन कमीशन और सुप्रीम कोर्ट ने इसके चुनाव लड़ने पर तो रोक लगाई है, लेकिन सरकार ने इसकी एक्टिविटीज पर बैन नहीं लगाया। देश के सेक्युलर तबका और संगठन इस पर पूरी तरह बैन की मांग करते हैं। इसके बावजूद सरकार इस पर पूरी तरह बैन करने से बचती रही है।
अब मामला फिर उलझ गया है। होम मिनिस्ट्री JUI की तमाम एक्टिविटीज को बैन करके उसकी तमाम एक्टिविटीज बंद कर सकती है। इसकी वजह है कि उसे देश विरोधी करार दिया जा चुका है, लेकिन वो ऐसा नहीं करती।
सबसे ज्यादा हैरत की बात यह है कि JUI को मुख्य विपक्षी पार्टी ‘बांग्लादेश नेशनालिस्ट पार्टी’ का अहम सहयोगी माना जाता है। यह पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की पार्टी है। 2001 से 2006 तक खालिदा की पार्टी सत्ता में रही और तब JUI उसके साथ सत्ता में शामिल थी।
बांग्लादेश में दावा किया जाता है कि 1971 में आजादी की जंग के दौरान 30 लाख लोग मारे गए और दो लाख महिलाओं से रेप हुआ। 10 लाख लोग रिफ्यूजी बने। आधी सदी के बाद भी बांग्लादेश में ज्यादातर सियासत इसी मुद्दे के इर्दगिर्द घूमती है। JUI को पाकिस्तान के करीब और अपने देश की सरकार का विरोधी माना जाता है।