लखनऊ में चलती ऑटो में छात्रा से गैंगरेप मामले में 149 दिन बाद फैसला आ गया है। कोर्ट ने आरोपी आकाश और इमरान को उम्रकैद की सजा सुनाई है। जिला जज संजय कुमार ने 1.7 लाख का जुर्माना भी लगाया है। 15 अक्टूबर 2022 को छात्रा ट्यूशन पढ़ाकर घर लौट रही थी। इसी दौरान ऑटो सवार आकाश-इमरान ने उसको अगवा कर लिया था। फिर सिर पर भारी वस्तु का वार कर बेहोशी की हालत में उसे सुशांत गोल्फ सिटी की तरफ ले गए थे।
प्लासियो मॉल के पीछे झाड़ियों में गैंगरेप किया। फिर चलती ऑटो में उसके साथ 3 घंटे तक दरिंदगी की थी। इसके बाद उसे गोमतीनगर के हुसड़िया चौराहे पर छात्रा को फेंककर फरार हो गए थे।
16 अक्टूबर को विभूतिखंड पुलिस ने आकाश- इमरान के खिलाफ केस दर्ज किया था। घटना के तीसरे दिन यानी 17 अक्टूबर को पुलिस ने आकाश को पकड़ा था। इसके बाद 19 अक्टूबर को पुलिस ने इमरान को मुठभेड़ के बाद कठौता झील के पास गिरफ्तार किया था। पुलिस ने गिरफ्तारी के 30 दिन के अंदर ही कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी।
घटना के बाद दैनिक भास्कर की टीम ने पीड़िता से बात की थी। आइए पीड़िता की जुबानी में आपको पूरी घटना बताते हैं..
आधा खून, आधी मिट्टी में सनी खड़ी थी पीड़िता
15 अक्टूबर 2022 को खून से लथपथ पीड़िता सड़क किनारे बनी रेलिंग पकड़कर खड़ी थी। कांप रही थी। हाथ-पैर से खून और आंखों से आंसू निकल रहे थे। कपड़ों पर मिट्टी लगी थी। उसे देखने के लिए करीब 50 लोगों की भीड़ जुट गई। पीड़िता ने एक आदमी से फोन मांगा और अपनी दोस्त का नंबर मिलाया। फोन उठा तो कहा, जल्दी से हुसड़िया चौराहे पर आ जाओ। इसके बाद कुछ बोल नहीं सकी और फफककर रोती रही।
दोस्त रास्ते में थी। उसे लगा कि पीड़िता का एक्सीडेंट हो गया, पर मौके पर पहुंची तो हालत देखकर सन्न रह गई। दोस्त ने पूछा, “क्या हुआ?” पीड़ित बच्ची कुछ बोल ही नहीं सकी और रोते हुए उससे लिपट गई। स्थिर हुई तो थरथराती आवाज में बोली, “टैक्सी वाले ने एक लड़के के साथ मिलकर रेप किया है।” इतना बोलते ही उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे। दोस्त भी रो पड़ी।
दोस्त ने सबसे पहले पीड़िता के घरवालों को फोन करके बुलाया। फिर महिला हेल्पलाइन नंबर 1090 पर फोन मिलाया। जवाब मिला, नजदीकी चौकी या थाने से संपर्क करिए। 100 नंबर पर फोन मिलाया तो पुलिस पहुंची।
जब हमने उसकी दोस्त से बात की तो, उसने बताया, “पीड़िता की हालत देखने के बाद भी जैसे पुलिस को यकीन नहीं हुआ। हमने कहा इसे तुरंत हॉस्पिटल ले चलिए। लेकिन पुलिसवाले उसे हॉस्पिटल नहीं बल्कि 5 किलोमीटर दूर उस जगह ले गए जहां उसका रेप हुआ था।
पीड़िता ने उन्हें पूरी बात बताई। फिर रात 11 बजे वो उसे लेकर उसी जगह वापस आए। 100 मीटर की दूरी पर हुसड़िया चौकी थी। वहां दोबारा सब पूछा लेकिन रिपोर्ट दर्ज नहीं की। ना ही उसका मेडिकल टेस्ट करवाया। परिवार सहित उसको घर भेज दिया।
पीड़िता अपने परिवार के साथ घर पहुंची। पहुंचते ही मां की गोद में सिर रखकर रोने लगी। कुछ रिश्तेदार भी घटना के बारे में सुनकर घर पर आए थे। सबको देखकर लड़की के अंदर हिम्मत आई। उसे लगा इस लड़ाई में सब उसके साथ हैं। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
वो कुछ बोलती उससे पहले ही एक रिश्तेदार बोले, “अगर तुम अपने परिवार की इज्जत उछलना नहीं चाहती तो जो तुम्हारे साथ जो हुआ उसे भूल जाओ।” लेकिन लड़की अपने साथ हुई दरिंदगी कैसे भूलती! उसकी आंखों के सामने से वह मंजर एक पल के लिए भी नहीं हट रहा था। वो दोनों आरोपियों को सजा दिलाना चाहती है। दोस्तों और उनके परिजनों ने पीड़ित बच्ची को रातभर समझाया। तब जाकर वो FIR लिखवाने के लिए राजी हुई।
अगले दिन यानी 16 अक्टूबर की सुबह 11 बजे। पीड़ित परिवार थाने पहुंचा। पुलिस के अधिकारी आते, पीड़िता से सवाल करते फिर चले जाते। दूसरे पुलिसवाले आते फिर वही सवाल दोहराकर चले जाते। घटना हुए 20 घंटे बीत गए। अबतक न FIR लिखी गई, न पीड़ित बच्ची का मेडिकल हुआ।
शाम 6 बजे। पीड़ित बच्ची के करीब 20 दोस्त पुलिस थाने के बाहर इकठ्ठा हो गए। उन्होंने थाने के बाहर हंगामा कर दिया। पुलिस पर दबाव बना तब जाकर रिपोर्ट दर्ज की गई। इसके बाद पीड़िता को झलकारी बाई अस्पताल में एडमिट कराया गया।
हम जब झलकारी बाई अस्पताल पहुंचे तो पीड़िता अपनी दोस्त का हाथ पकड़कर बैठी थी। उसके हाथ-पैरों के निशानों पर पपड़ी पड़ गई थी। ये निशान बार-बार उसको घटना की याद दिला रहे थे। हमारे सवाल पूछने पर वो बताती है, “अस्पताल में जब से आए हैं कोई इलाज नहीं मिला। न जख्मों पर पट्टी की गई, न कोई मरहम दिया गया। इलाज के नाम पर बस एक गोली खिला दी थी।”
वो आगे बताती है, “मुझे मेडिकल जांच के लिए भी तीन बार ले गए। दो बार मां साथ थीं। तीसरी बार मैं अकेले थी। डर लग रहा था। मैंने मना भी किया लेकिन डॉक्टर मुझे ले गए और फिर से वही टेस्ट किया जो वो दो बार कर चुकीं थीं।”
इतना बताकर पीड़िता चुप हो गई। जब हमने ट्यूशन पढ़ाने को लेकर सवाल किया तो वो बोली कि अगर ट्यूशन पढ़ाने नहीं जाते तो हम भी पढ़ाई नहीं कर पाते।
पीड़िता के परिवार में सिर्फ पिता ही कमाने वाले हैं। फैमिली की फाइनेंशियल कंडीशन भी ऐसी नहीं है कि वो उसे पढ़ा पाएं। लेकिन लड़की पढ़ना चाहती थी। इसलिए उसने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। जो रुपए मिलते उससे वो अपनी स्कूल फीस जमा कर देती थी।