ताजे फल व सब्ज़ियों का सेवन कम करने से बढ़ता है कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा

कोलोरेक्टल कैंसर (कोलो से आशय बड़ी आंत और रेक्टल से आशय मलाशय रेक्टम से है) को पेट का कैंसर या बड़ी आंत का कैंसर भी कहा जाता है। कोलोरेक्टल कैंसर में बड़ी आंत, मलाशय और एपेंडिक्स में होने वाला कैंसर भी शामिल है।

कोलन और रेक्टम एक साथ मिलकर बड़ी आंत का भाग बनाते हैं। बड़ी आंत पचे हुए आहार के अवशेष को छोटी आंत से ले आती है और अवशोषित व नुकसानदेह तत्वों को मलद्वार के रास्ते बाहर निकाल देती है। असामान्य रूप से जब कोशिकाओं की वृद्धि कोलन, रेक्टम या दोनों ही भागों में होने लगती है, तो इस फैलाव को कोलोरेक्टल कैंसर कहते हैं।

कारणों को जानें

पहले ऐसा माना जाता था कि बढ़ती उम्र के साथ कोलोरेक्टल कैंसर होने का खतरा ज्यादा बढ़ता है लेकिन अब युवाओं में भी इस कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं। अधिकांश लोगों में उम्र के पांचवें, छठे और सातवें दशक में ये कैंसर अधिक होता है। आहार में ज्यादा मात्रा में रेड मीट और कम मात्रा में ताजे फल व सब्जियां लेने से कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। भोजन में फाइबर की कमी, कोलोरेक्टल कैंसर के खतरे को बढ़ा देती है।

पूर्वानुमान ऐसे लगाएं

बढ़ती उम्र: उम्र के साथ कोलोरेक्टल कैंसर विकसित होने का खतरा बढ़ता है। अधिकांश मामलों में यह कैंसर 50 साल के बाद होता है।

कैंसर का इतिहास: परिवार में कैंसर के इतिहास के साथ भी आप इसका पूर्वानुमान लगा सकते हैं। जिन व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों में पहले से ही यह रोग हो चुका है, उनमें इस कैंसर के होने का खतरा ज्यादा होता है।

इसी तरह जिन महिलाओं में अंडाशय, गर्भाशय या स्तन का कैंसर हो चुका हो, उनमें कोलोरेक्टल कैंसर विकसित होने का अधिक खतरा होता है।

शारीरिक निष्क्रियता: जो लोग शारीरिक श्रम कम करते हैं, उन लोगों में कोलोरेक्टल कैंसर विकसित होने का खतरा ज्यादा होता है। शारीरिक निष्क्रियता से भी इसका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। जो लोग मोटापे से ग्रस्त होते हैं, उनमें कोलोरेक्टल कैंसर होने की संभावना अधिक होती है।

ज्यादातर कोलोरेक्टल कैंसर कई सालों में धीरे-धीरे विकसित होते हैं। कैंसर विकसित होने से पहले टिश्यू या ट्यूमर का विकास कैंसररहित पॉलिप के रूप में कोलन या मलाशय के आंतरिक भाग में होता है।

सर्जरी की प्रक्रिया

कोलन कैंसर के इलाज में सर्जरी के जरिये कैंसर से प्रभावित क्षेत्र को और लिम्फ नोड्स के आसपास की कुछ सामान्य सेल्स को निकाल दिया जाता है। कोलन के दो छोरों को दोबारा जोड़ा जाता है, ताकि कोलन ठीक प्रकार से काम कर सके। वे लोग जिनके जीवन में पहले कभी कोलन कैंसर की सर्जरी हुई है, उन्हें कोलोस्टॅमी कराने की आवश्यकता नहीं होती।

ऑपरेशन के बाद स्वस्थ होने का समय अनेक कारणों पर निर्भर करता है। जैसे व्यक्ति की उम्र, स्वास्थ्य और सर्जरी की स्थिति। सर्जरी की विधि या तो सामान्य चीरा विधि होती है या दूरबीन विधि (लैप्रोस्कोपी) होती है। कैंसर स्टेज 1 और स्टेज 2 में पहले सर्जरी के द्वारा कैसर ग्रस्त आंत का भाग निकाल कर दोनों हिस्सों को जोड़ दिया जाता है। वहीं स्टेज 3 और स्टेज 4 में पहले कीमो-रेडियोथेरेपी करके फिर सर्जरी की जाती है। कभी-कभी जब कैंसर मलद्वार (एनस) के काफी पास होता है, तो कोलोस्टॅमी बैग लगाना पड़ता है। दूरबीन विधि कैंसर ऑपरेशन में नई तकनीक है। इस विधि से रक्तस्राव बहुत कम होता है, दर्द कम होता है और अस्पताल से छुट्टी जल्दी मिल जाती है।

उपचार की विधिया

रोगी का उपचार कई स्थितियों पर निर्भर होता है। जैसे कैंसरग्रस्त भाग का आकार और स्थान, कैंसर की अवस्था और रोगी की वर्तमान शारीरिक स्थिति आदि का आकलन किया जाता है।उपचार के लिए कई विधियां उपलब्ध हैं। इनमें सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, और टारगेटेड थेरेपी शामिल हैं। कोलोरेक्टल कैंसर की चिकित्सा के लिए प्राथमिक विधि है सर्जरी। सर्जरी केबाद कीमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी की मदद ली जाती है। सर्जरी की सीमा और सर्जरी की आवश्यकता बीमारी की स्थिति पर निर्भर करती है और इस बात पर भी निर्भर करती है कि पीडि़त व्यक्ति का कैंसर कोलन का है या रेक्टम का। रेक्टल(रेक्टम या मलाशय) कैंसर की कुछ स्थितियों में रेक्टल के निकाले जाने के बाद पीडि़त व्यक्ति को कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी दी जाती है। आगे की चिकित्सा इस बात पर निर्भर करती है कि ऑपरेशन के दौरान कैंसर की क्या स्थिति पायी गयी।

लक्षण

इस कैंसर के कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं.

खाने की आदतों में बदलाव: यह लक्षण कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षणों में सबसे सामान्य है। इस कैंसर के कारण किसी भी व्यक्ति के खाने-पीने की आदतों में बदलाव आने लगता है और कभी वह कम खाता है तो कभी ज्यादा, परन्तु उसे हर समय ऐसा महसूस होता है कि पेट खाली नहीं है।

एनीमिया: इस कैसर के कारण शरीर में खून की कमी हो जाती है।

दस्त या कब्ज: अगर किसी व्यक्ति को कोलोरेक्टल कैंसर हो जाता है, तो उसे लगातार दस्त या कब्ज की शिकायत बनी रहती है।

स्टूल के रंग में परिवर्तन: कोलोरेक्टल कैंसर होने पर स्टूल (मल) के रंग में परिवर्तन देखने को मिलता हैं। कभी स्टूल का रंग लाल होता है, तो कभी काला होता है।

स्टूल में रक्त का आना: कैंसर होने पर स्टूल के साथ रक्त आने लगता है। पेट में ऐंठन और पेट का भरा महसूस होना: लगातार पेट में ऐंठन होना इस कैंसर का एक लक्षण हो सकता है।

डाइटिंग के बिना वजन कम होना: कोलोरेक्टल कैंसर होने पर किसी का भी वजन डाइटिंग के बगैर कम होने लगता है।

थकान होना: कोलोरेक्टल कैंसर से पीडि़त व्यक्ति कोई कार्य किए बगैर हर समय थका-थका महसूस करता है

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