पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में पहली बार बीजेपी बहुमत से नीचे सिमट गई

आज से 18वीं लोकसभा का पहला सत्र शुरू हो रहा है। इस बार की लोकसभा थोड़ी बदली-सी नजर आएगी। पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में पहली बार बीजेपी बहुमत से नीचे सिमट गई है। सहयोगी दलों को मिलाकर भी संख्या 293 ही पहुंची है। दूसरी तरफ विपक्ष इस बार 234 सीटों के साथ काफी मजबूत है। लोकसभा में इस बार नेता प्रतिपक्ष भी होगा। यानी इस बार लोकसभा में सरकार की वैसी धमक नहीं रहेगी, जैसी पिछले दो कार्यकाल में थी।
संसद में ही कोई भी बिल लाया जाता है। कुछ बिल केवल लोकसभा में तो कुछ दोनों सदनों में लाए जा सकते हैं। जैसी मनी बिल लोकसभा में ही लाया जाता है।
भारत की संसद में दो सदन होते हैं- लोकसभा और राज्यसभा। दोनों सदनों का मुख्य काम विधान या कानून बनाना है। इसके लिए पहले विधेयक सदन में पेश किया जाता है। फिर इस पर चर्चा होती है, उसके बाद सभी की सहमति या वोटिंग कराकर इसे पारित कर दिया जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ये कानून बन जाता है। सबसे पहले समझते हैं कि बिल कितने प्रकार के होते हैं और इन्हें पास कराने का प्रोसेस क्या है…

  1. ऑर्डनरी बिलः साधारण बहुमत की जरूरत
    आर्डनरी या साधारण बिल वे हैं, जिनका कॉन्स्टिट्यूशन में विशेष रूप से जिक्र नहीं है। ये साधारण बिल कहलाते हैं। इसमें बिल या विधेयक को सांसद या मंत्री पेश करते हैं। बिल को संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। जो बिल पेश करता है, वो ही बिल के उद्देश्य और कायदों को बताता है।
    सांसद बिल पर अपनी राय रखते हैं। बहस के बाद वोटिंग होती है। वोटिंग के समय सामान्य बहुमत से बिल पारित हो जाता है। सदन में जितने भी सांसद मौजूद होते हैं, उनका आधे से एक वोट ज्यादा को साधारण बहुमत कहते हैं। इनमें फिलहाल मोदी सरकार को कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि उनके गठबंधन में बहुमत के 272 से ज्यादा सांसद हैं।
  2. मनी बिलः साधारण बहुमत से पास हो जाते हैं
    मनी बिल यानी धन विधेयक केवल रेवन्यू, टैक्स संबधित, सरकारी उधारी और सरकार के फाइनेंशियल मामलों से संबंधित होते हैं। इन्हें केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है।
    राज्यसभा को केवल सिफारिशें करने का अधिकार है, जिसे लोकसभा मानने के लिए बाध्य नहीं है।
    लोकसभा में पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है।
    अनुच्छेद 110(3) के मुताबिक किसी विधेयक को धन विधेयक मानने या न मानने का अंतिम निर्णय लोकसभा स्पीकर पर होता है। उसके फैसले को चैलेंज नहीं किया जा सकता। वोटिंग के समय सामान्य बहुमत से बिल पारित हो जाता है।
  3. फाइनेंस बिलः साधारण बहुमत से पास हो जाते हैं
    इन्हें वित्त विधेयक भी कहा जाता है। ये बिल राजकोष से संबंधित होते हैं। ये मनी बिल की कैटेगरी में नहीं आते हैं। धन विधेयक की तरह ही लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जाता है। राज्यसभा में भेजे जाने के बाद, इसे सामान्य विधेयक की तरह ही प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद कानून बनता है। वोटिंग के समय सामान्य बहुमत से बिल पारित हो जाता है।
  4. संविधान संशोधन विधेयक: दो-तिहाई बहुमत की जरूरत
    इस विधेयक से संविधान के किसी भी प्रावधान को बदला जाता है। दोनों सदनों में पारित हाेना चाहिए। दोनों सदनों में प्रत्येक सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।
    यदि संविधान के कुछ विशेष प्रावधानों जैसे संघवाद, न्यायपालिका की स्वतंत्रता आदि में संशोधन का प्रावधान हो, तो इसे पास करने के बाद आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं का समर्थन जरूरी है। दोनों सदनों में पारित होने के बाद राष्ट्रपति के लिए मंजूरी के लिए भेजा जाता है।
  5. प्राइवेट बिलः साधारण बहुमत से पास हो जाते हैं
    इसे संसद के किसी भी सदन का मेंबर पेश कर सकता है, जो मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं हो। साधारण बिल की तरह ही प्रक्रिया से गुजरते हैं। सदन में इसे पेश करने के लिए एक महीने का नोटिस देना होता है। प्राइवेट बिल केवल शुक्रवार को ही पेश किए जा सकता है। इस दिन इस पर चर्चा भी हाे सकती है।
    जो इस बिल को पेश करता है। वह मंत्री की रिक्वेस्ट पर वापस ले सकता है या इसे पारित कराने के लिए आगे बढ़ा सकता है। आखिरी बार दोनों सदनों ने 1970 में प्राइवेट बिल पास किया था। यह सुप्रीम कोर्ट विधेयक 1968 था।

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