पांच नाम की एक्ट्रेस जिसे चीन ने गद्दार मानकर निकाला, 4 लाख सेक्स स्लेव्स के लिए जापानी सरकार को झुकाया

चीन में ली सियांग-लैन और री कोरन
जापान में योशिको यामागुची
अमेरिका में शर्ली यामागुची
और जापानी टीवी चैनल पर योशिका ओटाका…।

ये पांच नाम एक ही महिला के हैं। असली नाम था योशिको यामागुची। ये चीन और जापान दोनों देशों में टॉप एक्ट्रेस रहीं, लेकिन खुद इनकी जिंदगी किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं थी। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब चीन और जापान एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन थे, तब ये चीन की टॉप एक्ट्रेसेस में शुमार थीं। उस समय कम लोग ही जानते थे कि ये जापानी मूल की हैं। जब ये बात चीन सरकार को पता चली तो इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। नौ महीने कैद में रखा गया। फिर फांसी की सजा सुना दी गई। बमुश्किल फांसी की सजा टली, लेकिन चीन ने इन्हें देश निकाला दे दिया।

जापान में फिर से करियर शुरू किया। वहां भी टॉप एक्ट्रेस बनीं, लेकिन जिंदगी बदली राजनीति ने। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापानी फौज ने कोरिया, चीन और फिलिपीनी महिलाओं को अपने आर्मी बेस में सेक्स स्लेव (कम्फर्ट विमेन) बनाकर रखा था। जापानी सैनिकों ने इन कम्फर्ट विमेन पर काफी जुल्म किए। इस मुद्दे पर सबसे पहले जापानी सेना के खिलाफ बोलने वाली ये जापान की पहली राजनेता थीं। पूरे जापान के नेशनलिस्ट नेता जब कम्फर्ट विमेन के मुद्दे पर जापानी सेना के पक्ष में थे, तब योशिको यामागुची ने बाकायदा पूरे जापान में एक अवेयरनेस कैंपेन चलाया।

ये योशिको यामागुची की जिंदगी के दो पहलू थे, लेकिन पूरी जिंदगी कई उतार-चढ़ावों से भरी रही। पहला प्यार अधूरा रहा। दो में से एक शादी नाकाम रही। चीन, जापान, अमेरिका में अलग-अलग नामों से काम किया क्योंकि इन पर देश की जासूसी, गद्दारी जैसे आरोप लगे थे।

तो, आज की अनसुनी दास्तानें में कहानी उस एक्ट्रेस योशिको यामागुची की, जिसने उन महिलाओं के लिए आवाज उठाई, जिन पर उनके ही देश की सेना ने अत्याचार किए
योशिको यामागुची का जन्म 12 फरवरी 1920 में मन्चूरिया (रिपब्लिक ऑफ चाइना) में हुआ। इनके जापानी पिता फूमियो साउथ मंचूरिया रेलवे की नौकरी करते थे। चीनी प्रथा के अनुसार हर बच्चे का एक गॉडफादर बनाया जाता है, जो उसका नामांकरण करता है। ऐसे में योशिको के गॉडफादर चीनी बने जिन्होंने उन्हें दो चीनी नाम ली सियांग-लैन और पैन शुहुआ दिए, जो आगे जाकर उनके स्टेज नेम बने।
13 साल की उम्र में योशिको को ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी की बीमारी हुई। सांस की तकलीफ से निजात पाने के लिए डॉक्टर ने उन्हें वॉयस लेसन लेने को कहा। घरवाले उन्हें ट्रैडीशनल जापानी म्यूजिक सिखाना चाहते थे, लेकिन योशिको ने अपनी जिद पर वेस्टर्न म्यूजिक सीखा। योशिको ने म्यूजिक के साथ-साथ बीजिंग से अपनी स्कूलिंग की।
1938 में योशिको ने मंयूरियो फिल्म प्रोडक्शन की हनीमून एक्सप्रेस से चीन की फिल्मों में जगह बनाई। इस फिल्म में अभिनय करने के साथ उन्होंने गाने भी गाए।
चीनी फिल्मों के लिए उन्होंने अपना स्टेज नेम जापानी योशिको गामगुची की जगह चीनी नाम ली सियांग-लैन अपनाया। दरअसल ऐसा उनसे इकोनॉमिक और राजनीतिक फायदे के लिए करवाया गया था। पहली ही फिल्म से खूबसूरत योशिको स्टार बन गईं, जिन्हें दो भाषाएं- जापानी और चीनी आती थीं और ये अभिनय करने के साथ गाना भी जानती थीं। सालों तक योशिको यामागुची को फिल्मों में ली सिआंग लैन नाम से ही क्रेडिट दिया गया था।
जिन चीनी को-स्टार्स के साथ योशिको काम किया करती थीं, उनसे भी छिपाया गया कि ये एक जापानी हैं। योशिको ज्यादातर जापानियों के साथ ही रहतीं, उन्हें चीन की स्थानीय डिश सोरघम की जगह व्हाइट राइस दिया जाता था, वहीं इन्हें चीनी एक्टर्स से 10 गुना ज्यादा फीस मिलती थी। इन सब बातों को देखकर भी साथी कलाकारों को ये संदेह नहीं हुआ कि वो जापानी हैं, वो ये सोचकर झिझकते थे कि योशिको आधी जापानी हैं।

योशिको चीनी हीरोइन थीं, लेकिन इनकी ज्यादातर फिल्में जापानी राष्ट्रीय नीति को बढ़ावा देने वाली या टोक्यो में मंचूरियन हितों की बात करने वाली होती थीं। चीन-जापान के झगड़े से पहले योशिको ने कभी अपनी पहचान छिपाने या बताने पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन यही मुद्दा चीन-जापान के झगड़े के बाद उनकी जिंदगी बर्बाद करने का कारण बना।
फिल्मों में काम करते हुए योशिको की मुलाकात केनिचीरो माटुसुओका से हुई, जो जापानी डिप्लोमैट योसुके माटुसुओका के बेटे थे। अपनी बायोग्राफी री कोरनः माय हाफ लाइफ में योशिको ने इन्हें अपना पहला प्यार बताया था। योशिको केनिचीरो से शादी करना चाहती थीं, लेकिन पढ़ाई के दौरान उनसे शादी के लिए राजी नहीं थी। इसलिए योशिको ने उनसे दूरी बना ली। सालों बाद वर्ल्ड वॉर 2 खत्म होने के बाद दोनों की मुलाकात हुई जहां केनिचीरो, योशिको से प्यार करने लगे थे, लेकिन तब तक उनका नाम आर्किटेक्ट इसामू नोगुची से जुड़ चुका था।
1940 में योशिको फिल्म चाइना नाइट में नजर आईं। ये जापानी राष्ट्रीय नीति पर आधारित फिल्म करार दी गई, क्योंकि इसमें जापानी सैनिकों का सकारात्मक रूप दिखाया गया था। फिल्म में योशिको ने एक ऐसी एंटी-जापानी लड़की की भूमिका निभाई जिसे जापानी लड़के से प्यार होता है। फिल्म के एक सीन में जापानी एक्टर, योशिको को थप्पड़ मारते नजर आए थे, जिस पर खूब हंगामा हुआ। चीनी लोगों को चीनी एक्ट्रेस को जापानी एक्टर द्वारा थप्पड़ मारे जाना बर्दाश्त के बाहर था। खूब विवाद हुआ और फिल्म कई शहरों में बैन भी हुई। इसके बावजूद इस फिल्म की 23 हजार टिकट बिकी थीं।

वर्ल्ड वॉर के बाद योशिको का गाना सुजाऊ सेरेनाड को चीन में बैन कर दिया गया। जब एक इवेंट में चीनी पत्रकारों ने उन पर ऐसे गाने का हिस्सा होने पर हंगामा किया, तो योशिको ने अपनी पहचान उजागर करने की जगह इस गाने से जुड़ने पर चीनियों से माफी मांग ली।
लगातार चीन की तरफदारी कर रहीं और चीनी नाम से पहचान बना रहीं योशिको से जापानियों की नाराजगी बढ़ने लगी। जब योशिको जापान-चीन की गुडविल एंबेसेडर बनकर जापान पहुंचीं तो खूब हंगामा हुआ। योशिको जापान में हुए इवेंट के दौरान चीन की ट्रैडीशनल ड्रेस पहनकर पहुंची थीं। एयरपोर्ट के कस्टम ऑफिसर ने उन्हें रोककर कहा था, क्या आपको नहीं पता कि हम जापानी, चीनी लोगों से सुपीरियर हैं, आपको ये थर्ड ग्रेड कपड़े पहनने और उनकी भाषा बोलने पर शर्म नहीं आती। जैसे ही योशिको इवेंट में पहुंचीं तो जापानी पत्रकारों ने उनकी असल जापानी पहचान उजागर कर दी।
जैसे ही योशिको के जापानी होने की खबर फैली तो गुस्से में चीनी लोग उनकी जान के पीछे पड़ गए। जैसे ही योशिको शंघाई वापस आईं तो उन्हें चीनी होने के बावजूद जापानियों के साथ काम करने पर फायरिंग स्क्वॉड ने अरेस्ट कर लिया और उन्हें मौत की सजा सुनाई। उन्हें 8 दिसंबर 1945 में शंघाई के हॉर्स ट्रैक में फांसी दी जाने वाली थी। इसी समय योशिको के पेरेंट्स को भी बीजिंग में अरेस्ट किया गया था। योशिको को फांसी दिए जाने से ठीक पहले उनका एक दोस्त माता-पिता से मिलकर उनका बर्थ सर्टिफिकेट लाने में कामयाब हो गया। उस दोस्त ने चोरी-छिपे हेड को ये सर्टिफिकेट दिया था, जिसमें साफ लिखा था कि योशिको हाफ चीनी और हाफ जापानी हैं, लेकिन उनके पास जापान की नागरिकता है। सर्टिफिकेट मिलने के बाद योशिको पर लगे सभी आरोप क्लियर कर दिए गए।
फांसी रोकने के बावजूद शंघाई अदालत ने ये कहते हुए योशिको से देश छोड़ने को कहा कि गुस्साए लोग उन्हें जान से मार सकते हैं। आखिरकार 1946 में योशिको चीन से जापान आ गईं।
चीन के लोग वर्ल्ड वॉर 2 के बाद योशिको को जापान की जासूस मानते रहे, जिससे वो उन्हें गद्दार समझकर नफरत करते थे। उन पर जासूस होने के संगीन आरोप लगे, जिसके चलते उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। अदालत द्वारा देश छोड़ने के निर्देश के बाद योशिको पूरे 50 सालों तक चीन नहीं गईं, जहां उन्हें स्टार का दर्जा हासिल था। योशिको को लगता था कि लोग सालों बाद भी उन्हें गद्दार ही समझेंगे। योशिको ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था- मेरा कसूर सिर्फ इतना ही रहा कि मैंने चीन में रहकर जापानियों के हित की फिल्मों में काम किया।
1946 में जापान आकर योशिको ने सार्वजनिक तौर पर चीनी फिल्मों में काम करने की माफी मांगी। योशिको की मानें तो उन्हें प्रोपेगैंडा फिल्में बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
जापान आकर उन्होंने नए सिरे से एक्टिंग करियर शुरू की, लेकिन इस बार अपने असल नाम योशिको यामगुची से। इनकी ज्यादातर फिल्में जापान-चीन वॉर की कहानियों के इर्द-गिर्द रहती थीं, जिन्हें खूब पसंद किया जाता था।
हॉलीवुड में काम करते हुए 1951 में योशिको यामागुची ने जापानी अमेरिकन स्कल्पचर इसामू नोगुची से शादी की। जापान और चीन की पहचान होने के कारण योशिको यामागुची ने हमेशा खुद को दो देशों के बीच बंटा हुआ पाया। अपनी बायोग्राफी में योशिको ने लिखा कि उनके पति इसामू भी दो देशों में रहे, ऐसे में वो उनसे जल्दी अट्रैक्ट हो गईं। यामागुची बच्चे चाहती थीं, लेकिन उनका दो बार मिसकैरेज हो गया। उन्हें एहसास हो गया था कि वो बच्चे पैदा करने के लिए योग्य नहीं हैं
साल 1952 में US ने योशिको को वीजा देने से इनकार कर दिया, जबकि उनके पति इसामु US में ही थे। दोनों के बीच खतों से बातचीत होती रही। एक खत में योशिको ने पति के लिए लिखा था, अगर मुझे जल्द ही वीजा नहीं मिलेगा तो हम तलाक ले लेंगे, क्योंकि मुझ पर लगे आरोपों से आपकी प्राइवेट और प्रोफेशनल जिंदगी में असर पड़ रहा है।
1956 में इसामु से तलाक लेने के बाद योशिको हॉन्गकॉन्ग में बनने वाली चीनी भाषा की दर्जनों फिल्मों में ली सियांग लैन नाम से नजर आईं, जो वो पहले चीनी फिल्मों के लिए इस्तेमाल किया करती थीं। इनमें से ज्यादातर चीनी फिल्में स्टूडियो की आग में जल गईं, जिससे उनका कोई नामोनिशान नहीं है।
1958 में योशिको ने जापानी डिप्लोमैट हिरोशी ओटाका से शादी कर हमेशा के लिए फिल्मी दुनिया छोड़ दी। फिल्मों से रिटायर होने के बाद योशिको एक हाउस वाइफ बनकर रहना चाहती थीं

1969 में योशिको द थ्री ओ क्लॉक यू शो की होस्ट बनीं, जिसके चलते उन्होंने वियतनाम वॉर और इजराइल-फिलिस्तीन विवाद की कवरेज की। कवरेज का योशिको पर ऐसा गहरा असर हुआ कि इसके बाद 1970 में उन्होंने फिलिस्तीन को सपोर्ट करते हुए राजनीति में कदम रखा। 1974 को योशिको जापानी संसद में हाउस ऑफ काउंसिल नियुक्त की गईं। लिब्रल डेमोक्रेटिक पार्टी में ये 18 सालों तक रहीं। राजनीतिक करियर के दौरान योशिको ने चीन और एशियाई देशों से संबंध ठीक करने के मकसद से काम किया।

योशिको पहली ऐसी जापानी नागरिक और नेता रहीं जिन्होंने वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान जापानियों द्वारा की गई बर्बरता पर खुलकर बात की। उन्होंने उन महिलाओं को मुआवजा दिलवाने के लिए कैंपेन शुरू किया, जिन महिलाओं से वॉर के दौरान जापानी सैनिकों ने सेक्स स्लेवरी करवाई। इस तरह की औरतों को वॉर के दौरान ‘कंफर्ट वुमन’ कहा जाता था। जबकि जापान के लोग आज भी इस मुद्दे पर माफी मांगने से कतराते हैं।
वर्ल्ड वॉर 2 के समय जापानी आर्मी का दबदबा था, ऐसे में उन सैनिकों के लिए कोरिया, चीन और फिलिपींस जैसे कई देशों की महिलाओं को बंदी बनाकर रखा जाता था और उनसे सेक्स स्लेवरी करवाई जाती थी। युद्ध के समय करीब 4 लाख महिलाओं को कम्फर्ट विमेन बनाकर रखा गया था, जिनमें से 2 लाख महिलाएं चीनी थीं। जबकि, युद्ध के समय असल वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाएं महज 1 लाख थीं।

सैनिकों के मनोरंजन और वॉर टाइम रेप को रोकने के लिए कुछ वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं को सैनिकों के कैंप में रखा जाता था, जिन्हें कम्फर्ट स्टेशन कहा जाता था, लेकिन जैसे ही जापानी आर्मी देशों में कब्जा करने लगी तो सैनिकों ने उन देशों की महिलाओं को जबरदस्ती बंदी बनाना शुरू कर दिया।

वॉर के सालों बाद करीब 2 कोरियन लड़कियों और महिलाओं को रेस्क्यू किया गया था। इनमें से ज्यादातर महिलाओं को नौकरी के बहाने लाकर बंदी बनाया गया था, वहीं कई ऐसी भी थीं, जो भुखमरी से परेशान होकर खाने के बदले सेक्स स्लेवरी करने के लिए राजी हुई थीं। बर्मा की कई महिलाओं ने कम्फर्ट विमेन बनाए जाने के डर से साइनाइड पीकर आत्महत्या कर ली थी। 1945 के बाद कई ऐसे मामले भी सामने आए जब सैनिकों ने कम्फर्ट विमेन पर आत्महत्या करने का दबाव बनाया। जो महिलाएं प्रेग्नेंट होतीं या गंभीर रूप से बीमार पड़ती थीं, उन्हें मरने के लिए अकेले छोड़ दिया जाता था।
योशिको यामागुची के कार्यकाल के दौरान 1992 में ही जापान के तत्कालीन प्राइम मिनिस्टर किची मियाजावा ने एक प्रेस नोट रिलीज कर कहा था, मैं कम्फर्ट विमेन से अपने दिल से माफी मांगता हूं। उन्होंने जो झेला वो कल्पना से परे है। ये मुद्दा कुछ समय पहले ही उठाया गया है, इस तरह के मुद्दे दिल दहला देने वाले हैं, जिसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं।
सरकार द्वारा माफी मांगे जाने के बावजूद योशिको यामागुची पब्लिक अवेयरनेस के लिए कैंपेन चलाती रहीं, साथ ही इन्होंने एशियन वुमन फंड के लिए भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 2015 में पूर्व प्राइम मिनिस्टर शिंजो आबे ने कोरिया के साथ एक एग्रीमेंट कर कम्फर्ट विमेन मुद्दे पर सेटलमेंट की थी।
एक इंटरव्यू में योशिको ने कहा था- मैं मानती हूं कि जो दर्द और अपमान कम्फर्ट विमेन कही जाने वाली उन महिलाओं ने झेला है, वो आज की जेनरेशन के समझ से परे है। उनके अनुभव भले ही मुश्किल लगते हैं, लेकिन सच्चाई का सामना करना बेहद जरूरी है।
7 सितंबर 2014 को 94 साल की उम्र में योशिको यामागुची ने दम तोड़ दिया। इनके पति हिरोशी ओटाका का 2001 में ही निधन हो चुका था। योशिको की मौत के बाद उनके परिवार ने एक प्रेस नोट जारी कर उनके निधन की घोषणा की थी। जापानी मीडिया के अनुसार इनका निधन हार्ट फेल होने से हुआ था।