कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने सरकार के वार्ता प्रस्तावों से भले ही मुंह फेर लिया हो, लेकिन सरकार बातचीत के रास्ते बंद नहीं करना चाहती है। इसीलिए सरकार की ओर से गुरुवार को एक बार फिर किसान संगठनों को बुलावा भेजा गया है। सरकार के पत्र में उन सभी बिंदुओं का विस्तार से जिक्र किया गया है, जिन्हें चिह्नित कर किसान संगठनों के पास पहले भी भेजा गया था।
कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने पत्र में उन बिंदुओं को वार्ता में शामिल करने से बचने को कहा है, जिनका ताल्लुक कृषि सुधार से संबंधित तीनों कानूनों से नहीं है। इसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रमुख है। वार्ता की तिथि और समय बताने का जिम्मा किसानों पर छोड़ दिया गया है। वार्ता विज्ञान भवन में मंत्री स्तरीय समिति के साथ होगी।
किसान संगठनों द्वारा उठाए गए कुछ मुद्दों का जवाब देते हुए सरकार ने यह पत्र लिखा है। किसान संगठनों को इस बात पर एतराज है कि सरकार के 20 दिसंबर को भेजे पत्र में आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन का कोई प्रस्ताव नहीं दिया गया है। कृषि मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि तीन दिसंबर की वार्ता के दौरान जितने मुद्दे चिह्नित किए गए थे, उन सभी मुद्दों के संबंध में लिखित प्रस्ताव दिया गया था। फिर भी सरकार उन मुद्दों पर भी चर्चा करने को तैयार है, जो इन कानूनों से संबंधित रह गए होंगे।
1- इन तीनों कृषि कानूनों के आने से MSP और उपज खरीद की व्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
2- एमएसपी और सरकारी खरीद की व्यवस्था जारी रखने को लेकर सरकार लिखित आश्वासन देने को तैयार है।
3- इस संबंध में अब कोई नई मांग रखना अथवा वार्ता में शामिल करना उचित नहीं लगता है।
विद्युत संशोधन अधिनियम और पराली जलाने संबंधी प्रावधानों को लेकर किसानों की चिंताओं के निराकरण के बारे में सरकार वार्ता करने को राजी है। पत्र में किसान संगठनों से अनुरोध किया गया है कि सरकार साफ नीयत और खुले मन से आंदोलन को समाप्त कराने के लिए वार्ता करती रही है और आगे भी इसके लिए तैयार है। जिन अन्य मुद्दों पर किसान संगठन चर्चा करना चाहते हैं, उनका विवरण दे दें, ताकि उन पर वार्ता के लिए तथ्यपूर्ण तैयारी कर ली जाए।
कृषि कानूनों को रद करने और एमएसपी की गारंटी की मांग पर अड़े किसान संगठनों और सरकार के बीच पांच दौर की वार्ता का कोई नतीजा नहीं निकल पाया है। छठे दौर की वार्ता के पहले ही किसान संगठनों ने देशव्यापी आंदोलन की घोषणा कर वार्ता तोड़ दी थी। फिर भी सरकार की ओर से चिह्नित मुद्दों की सूची के साथ वार्ता प्रस्ताव भेजा गया था। किसान नेताओं ने उसे खारिज करते हुए सरकार से कुछ ठोस प्रस्ताव लेकर आने को कहा। इसके जवाब में सरकार ने एक बार फिर उन्हें वार्ता से समस्या का समाधान तलाशने की सलाह देते हुए बुलावा भेजा है।
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आदर्श कुमार
संस्थापक और एडिटर-इन-चीफ