महाराष्ट्र की राजनीति में फिलहाल सब कुछ अस्त व्यस्त नजर आ रहा है। सियासी घटनाक्रमों को देखें तो सबसे ज्यादा खतरा ठाकरे परिवार की सियासत पर पड़ता नजर आ रहा है। क्योंकि असम के गुवाहाटी पहुंचे बागी विधायक अपने आप को असली शिवसैनिक बता रहे हैं। हालांकि, केवल महाराष्ट्र ही नहीं उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब और दिल्ली तक देश के कई बड़े सियासी परिवार संकट में फंसे नजर आ रहे हैं।
साल 2014 से लेकर अब तक कांग्रेस और गांधी परिवार ने कई सियासी झटकों का सामना किया है। हालांकि, पार्टी को साल 2018 में तीन राज्यों में जीत मिल गई थी, लेकिन हालिया उत्तर प्रदेश चुनाव में प्रियंका गांधी वाड्रा के दम भरने के बावजूद पार्टी एक सीट पर सिमट गई। वहीं, पंजाब में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के हाथों बुरी तरह हार के बाद सत्ता गंवा दी। हालात इस कदर बिगड़े की पार्टी ने यूपी उपचुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। दिल्ली विधानसभा उपचुनाव राजेंद्र नगर और पंजाब के संगरूर में पार्टी की जमानत जब्त हो गई। ये ऐसे दो राज्य हैं, जहां कभी कांग्रेस ने शासन किया है।
यूपी के दिग्गज नेता और पिता मुलायम सिंह यादव से कमान हासिल करने के बाद अब तक समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव बड़ी सफलता खोज ही रहे हैं। साल 2014, 2017, 2019 और 2022 में पार्टी लगातार पराजित हुई है। यूपी उपचुनाव में पार्टी ने आजमगढ़ औऱ रामपुर जैसी सीटें गंवा दी। कहा गया कि अखिलेश यहां एक बार भी प्रचार के लिए नहीं पहुंचे।
कभी एनडीए के साथ मिलकर पंजाब पर राज करने वाली बादल परिवार के नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल अब संकट से जूझ रहा है। परिवार और पार्टी के मुखिया प्रकाश सिंह बादल ने यहां एक दशक तक मुख्यमंत्री के तौर पर शासन किया। अब हाल ऐसे हुए कि संगरूर उपचुनाव में पार्टी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाई। वहीं, विधानसभा चुनाव में विक्रम सिंह मजीठिया समेत कई बड़े नेताओं को हार का सामना करना पड़ा।
शिवसेना पहली बार बगावत का सामना नहीं कर रही है, लेकिन इस बार हाल ज्यादा बिगड़ते नजर आ रहे हैं। खबर है इस फूट के बाद केवल पुत्र आदित्य ठाकरे ही हैं, जो मंत्री-विधायक के तौर पर अपने पिता मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ खड़े हैं। आंकड़े बताते हैं कि असम के गुवाहाटी में पार्टी के 40 विधायक बगावत कर चुके हैं। फिलहाल, विधानसभा में शिवसेना विधायकों की संख्या 55 है।