शरद पवार मुंबई के वाईबी चव्हाण सेंटर में अपनी आत्मकथा ‘लोक भूलभुलैया संगति’ का विमोचन करने आए थे। इस्तीफे का ऐलान होते ही हॉल में मौजूद NCP कार्यकर्ता नारेबाजी करने लगे, कुछ रोते भी नजर आए। एक कमेटी बना दी गई है, जो नया अध्यक्ष चुनेगी। NCP की स्थापना के वक्त से ही शरद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, वे 24 साल से पार्टी संभाल रहे थे। राजनीति में वे 64 साल से हैं।
शरद पवार ने मुंबई के वाईबी चव्हाण सेंटर में अपनी पॉलिटिकल बायोग्राफी ‘लोक भूलभुलैया संगति’ का विमोचन किया। पार्टी नेताओं की मौजूदगी में उन्होंने पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ने का ऐलान किया।
बहुत कम लोग जानते हैं कि शरद को राजनीति अपनी मां शारदा बाई से विरासत में मिली थी। शरद ने 2017 में भी अपने संस्मरणों की एक किताब ‘अपनी शर्तों पर’ में राजनीति में आने, गलती से एक सभासद को किडनैप कर लेने और सगे भाई के खिलाफ चुनाव प्रचार करने जैसे किस्से बताए हैं।
शरद पवार ने किताब में बताया है कि 1938 में कांग्रेस के कहने पर शारदा बाई ने पुणे लोकल बोर्ड में महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर चुनाव लड़ा। 9 जुलाई, 1938 को वे निर्विरोध चुनी गईं। इसके बाद 14 साल तक इसी सीट से जीतती रहीं। उन्होंने पुणे लोकल बोर्ड में पब्लिक हेल्थ, पब्लिक वर्कर्स, बजट, पंचायत कमेटी और स्टैंडिंग कमेटी की जिम्मेदारियां निभाई थीं।
शरद पवार बताते हैं कि मेरी मां और अन्य कांग्रेसी नेता जैसे शंकर राव मोरे, केशव राव जेधे, तुलसीदास जादव और काका साहेब वाघ को लगने लगा था कि कांग्रेस महाराष्ट्र के किसानों और मजदूरों के हकों को लेकर सीरियस नहीं है।
उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़कर 1947 के आखिर में मजदूर-किसान पार्टी (पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी-PWP) बना ली। शरद की मां कांग्रेस में रहते हुए भी वामपंथी विचारधारा को मानती थीं। शुरू में शरद पवार भी कम्युनिस्ट विचारधारा को मानते थे, लेकिन उसमें डेमोक्रेटिक राइट्स को लेकर उनके मन में हमेशा शक बना रहता था।
शरद पवार ने कांग्रेस में शामिल होने का फैसला मां को बताया तो वे राजी नहीं थीं। दोनों के बीच कई घंटों तक इस पर बहस होती रही। मां शारदा ने शरद को कांग्रेस में न जाने के लिए मजबूत तर्क दिए, लेकिन शरद अड़े रहे। आखिर मां को शरद की बात माननी पड़ी।’
शरद, कांग्रेस नेता वाईबी चव्हाण और जवाहरलाल नेहरू को आदर्श मानते थे। 1958 में उन्होंने पुणे के कांग्रेस भवन में पार्टी जॉइन की। इसी दौरान वे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भाऊ साहेब शिराले और राम भाऊ तेलंग के संपर्क में आए। ये दोनों उनके राजनीतिक गुरु बने। कांग्रेस से जुड़ने के बाद शरद पहली बार 1967 में विधानसभा का चुनाव जीते और महाराष्ट्र सरकार में राज्य मंत्री बने। वे 14 बार चुनाव जीत चुके हैं।
शरद का पूरा परिवार पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया (PWP) से जुड़ा था। 1940-50 के दशक में ये पार्टी वामपंथी राजनीतिक शक्ति के तौर पर देखी जाती थी। शरद के बड़े भाई वसंत राव PWP पार्टी के एक्टिव मेंबर थे और उन्होंने 1960 के लोकसभा चुनाव में संयुक्त महाराष्ट्र समिति के टिकट पर बारामती से चुनाव लड़ा था।
दो साल तक पुणे में यूथ कांग्रेस सेक्रेटरी रहते हुए शरद को पश्चिम महाराष्ट्र की युवा विंग का सचिव बना दिया गया। 1960 में कांग्रेसी नेता केशवराव जेधे का निधन हुआ और बारामती लोकसभा सीट पर मध्यावधि चुनाव हुए।
PWP ने शरद के बड़े भाई वसंतराव को टिकट दिया। उन्हें शरद के परिवार के करीबी एसएम जोशी, आचार्य अत्रे और ऊधवराव पाटिल जैसे नेताओं का समर्थन भी मिला था। वाईबी चव्हाण CM थे और कांग्रेस ने बारामती सीट का चुनाव अपनी साख का मुद्दा बना लिया था। कांग्रेस ने केशवराव के बेटे गुलाबराव जेधे को उम्मीदवार घोषित कर दिया।
फोटो में शरद पवार की मां शारदा बाई (बीच में) और भाई बसंतराव (सबसे दाएं) हैं। दोनों पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया के एक्टिव मेंबर थे।
शरद अपनी किताब में बताते हैं कि मेरा भाई कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार था। हर कोई सोच रहा था कि मैं क्या करूंगा? बड़ी मुश्किल स्थिति थी। भाई वसंतराव ने मेरी परेशानी समझ ली। उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि ‘तुम कांग्रेस की विचारधारा के लिए समर्पित हो। मेरे खिलाफ प्रचार करने में संकोच मत करो।’ इसके बाद मैंने कांग्रेस के चुनाव प्रचार में जान लगा दी और गुलाबराव जेधे की जीत हुई।
किताब ‘अपनी शर्तों पर’ में पवार बताते हैं कि कैसे चुनाव जीतने के चक्कर में अनजाने में ही उनसे एक कॉर्पोरेटर का अपहरण हो गया था। ये 1959 की बात है। पुणे म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन (PMC) की कमेटी में चेयरमैन पद के लिए चुनाव हो रहे थे।
कांग्रेस और मुख्य विपक्षी पार्टी संयुक्त महाराष्ट्र समिति (SMS) के सदस्यों की संख्या लगभग बराबर थी। रिजल्ट कुछ भी हो सकता था। चुनाव की एक शाम पहले कांग्रेस के सीनियर लीडर भाऊ साहेब ने शरद को अचानक एक कार में बैठा लिया। कुछ ही देर में उन्होंने SMS पार्टी के एक कॉर्पोरेटर को भी कार में बैठा लिया
कार पुणे से 40 किलोमीटर दूर एक डाक बंगले पहुंची। शुरू में तो वो कॉर्पोरेटर ठीक था, लेकिन रात होने लगी तो पुणे लौटने की जिद करने लगा। भाऊ साहेब उसे कोई न कोई बात बोलकर फिर बैठा लेते थे। शरद को भाऊ साहेब ने बंगले की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी थी और कहा था कि कोई अंदर न आए
शरद बताते हैं कि दूसरे दिन सुबह PMC में वोटिंग होनी थी, तब हम उस कॉर्पोरेटर के साथ पुणे वापस आ गए। SMS पार्टी ये चुनाव सिर्फ एक वोट से हार गई। स्थानीय अखबारों में एक सीनियर कांग्रेस लीडर के कॉर्पोरेटर को अगवा करने की बात छपी। तब मुझे समझ में आया कि असल में मैं क्या कर रहा था।
शरद पवार के कांग्रेस में कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हुई तो उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनाने की बात उठी थी। वे चार बार महाराष्ट्र के CM रहे। 1991-93 के दौरान केंद्र में रक्षामंत्री और 2004-14 के बीच कृषि मंत्री भी रहे।
अपनी आत्मकथा में शरद बताते हैं कि वे सिर्फ तीन दिन के थे, तो उनकी मां उन्हें पुणे महानगर पालिका की मीटिंग में ले गई थीं। 12 दिसंबर, 1940 को शरद पैदा हुए थे और 15 दिसंबर को उनकी मां शारदा की एक जरूरी मीटिंग थी। वे इतने छोटे थे कि उन्हें घर पर अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था। ऐसे में मां उन्हें मीटिंग में ले गईं।
कड़ाके की ठंड, बारामती तहसील के कस्बे से पुणे तक खचाखच भरी हुई बसों की थकाऊ यात्रा के बावजूद वे मीटिंग में पहुंची थीं। शरद पवार के मुताबिक, उनके जीवन पर उनकी मां का बहुत प्रभाव था। उनके साथ काम करने वाले उन्हें ‘सुपर वुमेन’ बुलाते थे।
शरद पवार की मां शारदा बाई 12 दिसंबर, 1911 को कोल्हापुर के नजदीक एक गरीब किसान परिवार में पैदा हुई थीं। मां-बाप उन्हें पढ़ाना चाहते थे, इसलिए पुणे में लड़कियों के हॉस्टल ‘सेवा सदन’ में रहकर उन्होंने 7वीं तक पढ़ाई की। इसी उम्र में माता-पिता नहीं रहे। बड़ी बहन के पति श्रीपत राव जादव ने उन्हें पढ़ाया।
7वीं तक पढ़ने के बाद सेवा सदन में ही उन्होंने काम शुरू किया। समाज सुधारक रमाबाई रानाडे ने ये संस्था लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से 1915 में शुरू की थी। 1926 में शारदा की शादी गोविंद राव से हो गई ।
शरद के मुताबिक वे माता-पिता के सात बेटों और चार बेटियों में नौवें नंबर पर हैं। पढ़ने में बहुत अच्छे नहीं थे और अक्सर पिता से डांट और मार खानी पड़ती थी। वे अपने रिपोर्ट कार्ड मां से साइन करवाते थे।
मां वामपंथी विचारों वाली तेज-तर्रार सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं। 1952 में एक हादसे ने उनका करियर खत्म कर दिया। वे एक घायल सांड़ की देखरेख कर रही थीं, तभी उसने हमला कर दिया। उनकी कई हड्डियां टूट गईं और बाकी जिंदगी उन्हें बैसाखी के सहारे बितानी पड़ी। शरद के कांग्रेस जॉइन करने के 8 साल बाद पुणे के अस्पताल में उन्होंने 12 अगस्त, 1975 को अंतिम सांस ली।
शरद पवार की नई आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ मराठी भाषा में पब्लिश हुई है। किताब में शरद पवार ने भतीजे अजित पवार के BJP में जाने की कहानी बताई है। पवार लिखते हैं, ‘मैंने सोचना शुरू किया कि अजित ने ऐसा फैसला क्यों लिया, तब मुझे एहसास हुआ कि सरकार बनाने में कांग्रेस के साथ चर्चा इतनी सुखद नहीं थी। उनके व्यवहार के कारण हमें दिक्कत हो रही थी। एक मुलाकात में मैं भी आपा खो बैठा था। मुझे ऐसा देखकर पार्टी के दूसरे नेताओं को भी झटका लगा था। कांग्रेस से आगे बात करने का कोई मतलब नहीं था।’
‘अजित के चेहरे से साफ जाहिर हो रहा था कि वह भी कांग्रेस के रवैये से खफा हैं। मैं बैठक से चला गया, लेकिन सहयोगियों से बैठक जारी रखने के लिए कहा। कुछ समय बाद मैंने जयंत पाटिल को फोन किया और बैठक के बारे में पूछा, उन्होंने मुझे बताया कि अजित पवार भी मेरे (शरद पवार) तुरंत बाद चले गए।’इस किताब में शरद ने उद्धव के इस्तीफे पर भी लिखा है। शरद लिखते हैं, ‘MVA (महाविकास अघाड़ी) का गठन सिर्फ सत्ता के लिए नहीं हुआ था, यह छोटे दलों को कुचलकर सत्ता हथिया रही BJP के खिलाफ था। हमें पहले से ही अंदाजा था कि वे हमारी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करेंगे। हमें ये अंदाजा नहीं था कि उद्धव के CM बनने के बाद शिवसेना में बगावत होगी। उद्धव इस संकट को नहीं संभाल पाए और सरकार गिर गई।’
शरद आगे लिखते हैं, ‘कोविड के दौरान उद्धव के मंत्रालय के 2-3 दौरे हमें रास नहीं आ रहे थे। बालासाहेब ठाकरे से बातचीत में जो सहजता थी, उद्धव में इसकी कमी थी। सभी राजनीतिक घटनाओं पर मुख्यमंत्री की कड़ी नजर होनी चाहिए।’
पवार ने किताब में लिखा है, ‘2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान BJP 30 साल से सहयोगी शिवसेना को खत्म करना चाह रही थी। BJP को यकीन था कि महाराष्ट्र में शिवसेना के अस्तित्व को कम किए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता। शिवसेना ने BJP से अलग होकर महा विकास अघाड़ी का गठन किया तो BJP ने इसे निजी हमला माना। BJP ने शिवसेना के खिलाफ लगभग 50 सीटों पर बागी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और समर्थन दिया।’
‘BJP के कुछ नेताओं ने NCP के कुछ नेताओं से भी बात की थी। मैं इसका हिस्सा नहीं था। हमने BJP के साथ आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया था। मैंने खुद ये दिल्ली जाकर PM मोदी को बताया था। हालांकि NCP में कुछ ऐसे नेता थे, जो मानते थे कि हमें BJP के साथ गठबंधन करना चाहिए। 2014 में भी BJP ने NCP को अपने करीब लाने के कुछ प्रयास किए थे, लेकिन मेरी हमेशा से राय थी कि BJP पर भरोसा नहीं करना चाहिए।’