ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भरता घटाने के प्रयासों में जर्मनी और यूरोप के बाकी हिस्सों में कोशिशें चल रही हैं. जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने पिछले हफ्ते कहा था कि इस साल तक जर्मनी रूसी तेल का आयात बंद कर सकता है.यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर यूरोप में रूस से ऊर्जा संसाधनों की खरीद पर बहस जारी है. इस बीच जर्मनी में बिजली, गैस और टेलिकॉम की नियामक संस्था, फेडरल नेटवर्क एजेंसी ने कहा है कि देश के पास इस साल गर्मियों तक के लिए पर्याप्त गैस है. अगर रूस से आपूर्ति रुक जाती है, तब भी जर्मनी को अगले कुछ महीनों तक कोई दिक्कत नहीं होगी. एजेंसी के प्रमुख क्लाउस मूलर ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि तीन-चार हफ्ते पहले के मुकाबले जर्मनी का मौजूदा गैस रिजर्व बेहतर स्थिति में है. यह बयान यूक्रेन में हो रही आम नागरिकों की मौत को देखते हुए यूरोपीय संघ पर रूस से ऊर्जा खरीद को प्रतिबंधित करने के बढ़ते दबाव के तहत अहम है. यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद वहां मारे जा रहे नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसे में यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी पर रूसी तेल और गैस की खरीद बंद करने का दबाव बढ़ गया है. आलोचकों का कहना है कि ऐसी खरीदारी से रूस को युद्ध जारी रखने के लिए धन मिल रहा है. क्लाउस मूलर ने भी इस दबाव की बात को स्वीकार किया. उन्होंने कहा कि यूक्रेन में लोगों पर हो रही नृशंसता से जुड़ी खबरों ईयू पर रूसी गैस आयात प्रतिबंधित करने का दबाव बढ़ाएंगी. इसके कारण जर्मनी को अपने ऊर्जा रिजर्व को खर्च करने में किफायत बरतनी होगी. ऐसे में आपूर्ति की राशनिंग हो सकती है. मूलर ने ध्यान दिलाया कि कई जर्मन इस आशंका को कम करके आंक रहे हैं. आपूर्ति में कटौती हो सकती है मार्च में जर्मनी ने गैस आपूर्ति के प्रबंधन के लिए एक आपातकालीन योजना बनाई थी. यह तीन-चरणों वाली योजना के अंतर्गत पहला कदम था. इसके कारण जर्मनी के भीतर ऊर्जा आपूर्ति में कमी की जा सकती है.
घरों और जरूरी संस्थाओं, जैसे- अस्पतालों, दवा और खाद्य कंपनियों को प्राथमिकता दी जा सकती है. हालांकि मूलर ने यह भी कहा कि लोग ऊर्जा आपूर्ति में घरों की सप्लाई को दी जाने वाली तरजीह को आसान ना समझें. क्योंकि अगर गैस आपूर्ति में राशनिंग की जाती है, तो इसका असर सॉना जैसी लग्जरी पर भी पड़ेगा. मूलर ने चेताया कि आपातकालीन स्थिति में बड़े अपार्टमेंट, जहां केवल एक किरायेदार रहता हो, उन्हें निर्बाध गैस आपूर्ति मिलना तय नहीं है.पिछले हफ्ते ईयू ने रूस पर नए आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे. इनमें कोयले की खरीद पर लगाया गया प्रतिबंध भी शामिल है. आयात पर यह रोक अगस्त 2022 से लागू होगी. साथ ही, जर्मनी ने भी रूस से खरीद घटाने की कोशिशें तेज कर दी हैं. 24 फरवरी को यूक्रेन पर हुए हमले से पहले जर्मनी अपनी तेल जरूरतों का 35 फीसदी रूस से खरीदता था. अब यह घटकर 25 प्रतिशत हो गया है. इसी तरह गैस आयात 55 फीसदी से घटकर 40 प्रतिशत हो गया है. रूसी कोयले की खरीद भी घटकर 25 प्रतिशत हो गई है. जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने पिछले हफ्ते कहा था कि इस साल तक जर्मनी रूसी तेल का आयात बंद कर सकता है. हालांकि जर्मनी ने यह भी स्पष्ट किया है कि रूसी गैस पर निर्भरता खत्म करने में 2024 तक का समय लग सकता है.यह भी पढ़ेंः रूस से मुंह मोड़ेगा तो तेल, गैस कहां से लाएगा जर्मनी यूरोप के बाकी देशों में भी प्रयास जारी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भरता घटाने के मामले में जर्मनी अकेला नहीं है. यूरोप के बाकी हिस्सों में भी ये कोशिशें चल रही हैं. इन प्रयासों में उत्तरी जर्मनी, फिनलैंड और फ्रांस में लिक्विफाइड प्राकृतिक गैस के टर्मिनल बनाने की योजना और स्पेन और भूमध्यसागर से नए सप्लाई मार्गों का निर्माण शामिल है. इसी क्रम में नॉर्वे से पोलैंड तक बिछ रही गैस पाइपलाइन परियोजना ‘बाल्टिक पाइप प्रोजेक्ट’ का निर्माण दोबारा शुरू हो गया है.
यह 900 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन डेनमार्क से होते हुए गुजरेगी. इसका एक मकसद रूसी गैस पर पोलैंड की निर्भरता खत्म करना भी है. डेनमार्क की एनर्जी इन्फ्रास्ट्रक्टर ऑपरेटर ‘एनगीनेट’ में इस परियोजना के प्रमुख सॉर्न यूल लासन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, “बेशक इससे डेनमार्क में भी गैस आएगी, लेकिन इसका मुख्य मकसद है हमारे पड़ोसियों और हमारे दोस्त पोलैंड के गैस सिस्टम की मदद करना” पहले डेनमार्क की पर्यावरण अथॉरिटी को इस परियोजना के कारण स्थानीय चूहों और चमगादड़ों पर पड़ने वाले असर की चिंता थी. इसके कारण करीब नौ महीने तक परियोजना का काम रुका रहा. मगर यूक्रेन पर हमले के एक ही हफ्ते बाद अथॉरिटी ने निर्माण दोबारा शुरू करने की हरी झंडी दे दी. इस पाइपलाइन परियोजना को बनाने का विचार करीब दो दशक पुराना है. आखिरकार 2018 में इसका निर्माण शुरू हुआ. उम्मीद है कि 1 जनवरी, 2023 से यह पूरी तरह चालू हो जाएगी. गैस आपूर्ति की इसकी सालाना क्षमता करीब 10 बिलियन क्यूबिक मीटर है. उम्मीद है कि इससे पोलैंड की समूची गैस खपत की 50 फीसदी आपूर्ति हो सकेगी. पोलैंड को गैस सप्लाई बढ़ने से बाकी यूरोप पर असर पोलैंड ने तीन साल पहले ऐलान किया था कि 2022 में वह रूसी एनर्जी कंपनी गाजप्रोम से खरीद का कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर देगा. रूस के बाद नॉर्वे यूरोप का सबसे बड़ा गैस सप्लायर है. वह अपनी पूरी क्षमता से आपूर्ति कर रहा है. गाजप्रोम से पोलैंड की डील खत्म होने के बाद नॉर्वे से पोलैंड को गैस आपूर्ति बढ़ने का अनुमान है. ऐसा हुआ, तो यूरोप के बाकी देशों की गैस आपूर्ति में कमी आ सकती है. यह भी पढे़ंः रूस से ऊर्जा आयात को लेकर उलझन में जर्मनी आशंका है कि ब्रिटेन और जर्मनी को जाने वाली नॉर्वे की गैस सप्लाई घट जाए. इसके अलावा एक सवाल अनुबंध की मियाद को लेकर भी है. रूस और यूरोपियन सप्लायरों के बीच कई लंबे समय के अनुबंध हैं, जो अभी 10 से 15 साल तक वैध रहेंगे.
रूस से खरीद रोकने की स्थिति में इन अनुबंधों का क्या होगा, यह भी देखना होगा. यूरोप के बाहर से भी खरीद बढ़ाने की योजना यूरोपीय देश यूरोप के भीतर के सप्लायरों के अलावा ऊर्जा खरीद के और भी विकल्प तलाश रहे हैं. इनमें अमेरिका, कतर और अफ्रीका से जहाज से रास्ते लिक्विफाइड नैचुरल गैस (एलएनजी) मंगवाने के विकल्प भी शामिल हैं. मगर ऐसे आयातों के लिए बड़े एलएनजी टर्मिनल बनाए जाने की जरूरत है. इसी के मद्देनजर जर्मनी ने नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन को निलंबित करने के बाद आनन-फानन में तीन एलएनजी टर्मिनल परियोजनाएं शुरू की हैं. युद्ध के पहले इनके निर्माण को कम प्राथमिकता दी जा रही थी. इन तीन में से एक टर्मिनल 2023-24 तक बनकर तैयार होने की उम्मीद है. बाकि दोनों के बारे में माना जा रहा है कि वे 2026 से पहले तैयार नहीं होंगे. फिनलैंड और एस्तोनिया ने भी पिछले हफ्ते एक इम्पोर्ट टर्मिनल शिप लीज पर लेने के प्रॉजेक्ट का ऐलान किया. दक्षिणी यूरोप में स्पेन और पुर्तगाल भी एक वैकल्पिक सप्लाई मार्ग को मजबूत करने पर काम कर रहे हैं, ताकि रूसी गैस पर यूरोप की निर्भरता खत्म करने में मदद की जा सके.स्पेन एक पाइपलाइन के जरिये अल्जीरिया से जुड़ा है. उसके पास बड़े एलएनजी टर्मिनल भी हैं. वह यूरोप के लिए ऊर्जा आपूर्ति का एक मार्ग दे सकता है. लेकिन इसके लिए बड़े स्तर पर काम करने की जरूरत होगी. फ्रांस होते हुए बाकी यूरोप के साथ संपर्क बेहतर करने पर काम करना होगा. इसके अलावा यूरोप को पूर्वी भूमध्यसागर क्षेत्र के साथ जोड़ने के भी विकल्प पर विचार किया जा रहा है. जानकारों का कहना है कि कोशिशें तो शुरू हुई हैं, मगर इनका असर दिखने में अभी समय लग सकता है.